टीएनपी डेस्क(TNP DESK): लंबे समय तक चले ड्रामे और कई उतार-चढ़ाव के बाद आखिरकार कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुनाव की जंग छिड़ गई है. 17 अक्टूबर को होने वाले चुनाव में राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे को लोकसभा सांसद शशि थरूर पर स्पष्ट बढ़त मिलती दिख रही है. हालांकि तीसरे उम्मीदवार झारखंड के पूर्व मंत्री केएन त्रिपाठी, ने भी अपना नामांकन दाखिल किया है, हालांकि मुख्य मुकाबला खड़गे और थरूर के बीच रहेगा. मतदाता सूची में शामिल 9100 प्रतिनिधियों के साथ मतों की गिनती 19 अक्टूबर को होगी. इस चुनाव में खड़गे शशि थरूर से आगे क्यों हैं, इसके पीछे जो महत्वपूर्ण कारण है, चलिए वो जानते हैं.

कांग्रेस के अघोषित 'आधिकारिक' उम्मीदवार खड़गे

माना जाता है कि खड़गे को नेहरू-गांधी परिवार का समर्थन प्राप्त है. वह उनके पुराने समय के पसंदीदा हैं. राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को मैदान में उतारने के नेहरू-गांधियों के प्रयासों के बाद उन्हें एक बड़ी शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा. खड़गे खुद 29 सितंबर की देर रात तक अपनी उम्मीदवारी से अनजान थे. इसका खुलासा राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह ने किया, जिन्होंने 29 सितंबर को खुद के लिए नामांकन पत्र लेने के बाद उनसे मुलाकात की थी.  हालांकि, मीडिया से पता चलने के बाद कि खड़गे भी अध्यक्ष पद की रेस में हैं, उन्होंने अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली. खड़गे को कथित तौर पर 29 सितंबर की देर रात पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि नेहरू-गांधी परिवार चाहते हैं कि वह अगले दिन अपना नामांकन दाखिल करें. अगला दिन यानि कि 30 सितंबर नामांकन की आखिरी तारीख थी.

थरूर के नामांकन दाखिल करने के समय कोई प्रमुख नेता मौजूद नहीं था, जबकि खड़गे के साथ पार्टी मुख्यालय में नामांकन पत्र दाखिल करने के लिए वरिष्ठ कांग्रेसियों का एक दल मौजूद था. खड़गे ने 14 सेट पेपर दाखिल किए, जबकि थरूर ने पांच और त्रिपाठी ने सिर्फ एक पेपर दाखिल किया. प्रत्येक सेट में 10 प्रस्तावक शामिल हैं. इसलिए, त्रिपाठी के पास केवल 10 प्रस्तावक थे.  चुनाव लड़ने के लिए बहुत पहले से निर्णय लेने के बावजूद थरूर के पास 50 प्रस्तावक थे. दोनों के खिलाफ खड़गे के पास कुछ ही घंटों में 140 प्रस्तावक थे.

प्रस्तावकों में एके एंटनी, अशोक गहलोत, अंबिका सोनी, मुकुल वासनिक, आनंद शर्मा, अभिषेक सिंघवी, अजय माकन, भूपिंदर हुड्डा, दिग्विजय सिंह, तारिक अनवर, मनीष तिवारी, पृथ्वीराज चव्हाण, विनीत पुनिया, सलमान खुर्शीद, अखिलेश प्रसाद सिंह, दीपेंद्र शामिल थे. हालांकि थरूर जी-23 का हिस्सा हैं. ये G-23, 23 असंतुष्ट नेताओं का समूह हैं, जिन्होंने 2020 में सोनिया को पत्र लिखकर नेतृत्व में पारदर्शिता लाने के लिए सुधारों की मांग की थी. इसमें आनंद शर्मा, मनीष तिवारी और भूपेंद्र हुड्डा जैसे नेता शामिल हैं. इन नेताओं ने थरूर का साथ छोड़ खड़गे का साथ दिया है.

खड़गे नेहरू-गांधियों के पसंदीदा हैं, इसका पता इसी से चलता है कि उन्हें 2014 और 2019 के बीच लोकसभा में कांग्रेस का नेता नियुक्त किया गया था. 2019 के लोकसभा चुनाव में खड़गे के हारने के बाद कांग्रेस ने उन्हें राज्यसभा की सीट दी और उन्हें उच्च सदन में विपक्ष का नेता बनाया.

नेहरू-गांधी परिवार के वफादार

खड़गे को नेहरू-गांधी परिवार का वफादार माना जाता है, जब राहुल को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने जून में पांच दिनों में 50 घंटे से अधिक और सोनिया को जुलाई में तीन दिनों के लिए बुलाया था, तब खड़गे ने कांग्रेस द्वारा किए गए विरोध प्रदर्शनों में सक्रिय भूमिका निभाई थी. वह सड़कों पर विरोध प्रदर्शन के दौरान मौजूद थे. विरोध प्रदर्शन के दौरान उन्हें कई बार हिरासत में भी लिया गया. उन्होंने सोनिया और राहुल का बचाव करने और दिल्ली में कई प्रेस कॉन्फ्रेंस करने का बीड़ा उठाया था.  

हाल ही में, उन्हें कांग्रेस विधायक दल (सीएलपी) की बैठक आयोजित करने और गहलोत के उत्तराधिकारी को अपने नेता के रूप में चुनने के लिए राजस्थान के एआईसीसी महासचिव अजय माकन के साथ केंद्रीय पर्यवेक्षक के रूप में जयपुर जाने के लिए चुना गया था. हालांकि, इस यात्रा का कोई फायदा नहीं हुआ, क्योंकि वफादार विधायकों ने खड़गे और माकन की अवहेलना की और दो बार बुलाई गई सीएलपी की बैठक में शामिल होने से इनकार कर दिया. दोनों केंद्रीय पर्यवेक्षकों ने इन विधायकों के व्यवहार को 'अनुशासनहीनता' करार दिया. वे दिल्ली लौट आए और सोनिया को अपनी रिपोर्ट सौंपी जिसके बाद गहलोत ने उनसे माफी मांगी.

दूसरी ओर, थरूर को नेहरू-गांधी परिवार के वफादार के रूप में नहीं जाना जाता है. उन्हें एक असंतुष्ट माना जाता है. थरूर जी-23 के सदस्य हैं. वह आंतरिक पार्टी सुधारों की मांग में मुखर रहे हैं. हाल ही में, उन्होंने मनीष तिवारी और एक अन्य लोकसभा सांसद कार्ति चिदंबरम के साथ कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव के लिए मतदाता सूची को सार्वजनिक करने की मांग की थी.

सीनियर कांग्रेस लीडर

80 वर्षीय खड़गे लंबी राजनीतिक पृष्ठभूमि वाले वरिष्ठ कांग्रेसी हैं. वह 1969 से कांग्रेस से जुड़े हुए हैं, जब वे गुलबर्गा सिटी कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष थे. वह 1972 से 2009 तक नौ बार विधायक और 2009 से 2019 तक दो बार लोकसभा सांसद रहें. इसके बाद 2019 का लोकसभा चुनाव हार गए, जिसके बाद जून 2020 में वे राज्यसभा के लिए चुने गए थे.

कर्नाटक कांग्रेस के महासचिव और एआईसीसी और कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) के सदस्य के जैसे उन्होंने पार्टी में कई पदों पर भी कार्य किया है. वहीं जहां तक ​​66 वर्षीय थरूर का सवाल है, वह खड़गे की अपेक्षा कांग्रेस में एक नए सदस्य हैं। उन्होंने 2009 में पार्टी का दामन थामा था. वह 2009 से लगातार केरल के तिरुवनंतपुरम से तीन बार के सांसद हैं. थरूर ऑल इंडिया प्रोफेशनल्स कांग्रेस (AIPC) के अध्यक्ष भी हैं.

खड़गे का लंबा प्रशासनिक अनुभव

खड़गे के पास थरूर की तुलना में सरकार में काफी लंबा प्रशासनिक अनुभव है. वह 2009 और 2014 के बीच मनमोहन सिंह सरकार में श्रम, रोजगार, रेलवे और सामाजिक न्याय जैसे विभागों को संभालने वाले केंद्रीय मंत्री थे. वह कर्नाटक में कैबिनेट मंत्री भी थे. वहीं थरूर 2009 और 2012 में दो बार केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं. दोनों ही मौकों पर उनका कार्यकाल थोड़े समय के लिए ही था.