टीएनपी डेस्क(TNP DESK): बिहार के शिक्षा मंत्री प्रोफेसर चन्द्रशेखर ने जब पहली बार रामचरितमानस की पंक्तियों को उद्धृत करते हुए इसे दलित-पिछड़ा विरोधी करार दिया था, मानस को विभानकारी ग्रन्थ बताया था, तब शायद ही किसी ने सोचा था कि इसकी तपिश से पड़ोसी राज्य यूपी भी नहीं बच सकेगा. लेकिन आज यूपी की राजनीति में यह एक बड़ा मुद्दा बन कर सामने आया है. स्वामी को आगे कर सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही अपनी चुनावी रणनीतियां तैयार कर रहा है, सत्ता पक्ष को स्वामी प्रसाद मौर्या के बयान में हिन्दुओं का अपमान नजर आ रहा है, वहीं विपक्ष को स्वामी प्रसाद मौर्या के रुप में तुरुप का वह पत्ता मिल गया है, जिसके सहारे वह दलित जातियों के साथ ही दूसरे अति पिछड़ी जातियों को अपने पाले कर सकती है. यही कारण है कि मानस विवाद के बीच ही समाजवादी पार्टी ने स्वामी प्रसाद का कद बढ़ा कर सपा का महासचिव बना दिया.

स्वामी प्रसाद मौर्या के बहाने दलित अतिपिछड़ी जातियों को साफ संदेश

स्वामी प्रसाद मौर्या के बहाने अखिलेश यादव अति पिछड़ी और दूसरी वंचित जातियों को यह साफ संदेश देना चाहते है कि यह भाजपा है जो आपको शूद्र बताने और अपमानित करने वालों के साथ खड़ी रहती है. यही कारण है कि अब सपा और दूसरे सामाजिक संगठन खुल कर स्वामी प्रसाद मौर्या के साथ खड़े नजर आ रहे हैं, उन्हे महानायक बना कर पेश किया जा रहा है. समाजवादी पार्टी में स्वामी प्रसाद की बढ़ती लोकप्रियता से उनके दल के लोगों को भी हैरानी हुई है, उनकी उम्मीद थी कि अखिलेश यादव इस विवाद से दूरी बना कर रखेंगे, लेकिन अखिलेश यादव ने वहीं रास्ता चुना जो बिहार में तेजस्वी यादव ने चुना था, राजद ने अपने शिक्षा मंत्री प्रोफेसर चन्द्रशेखर के विरुद्ध कार्रवाई नहीं कर राजद के गेट पर उन चौपाइयों का पोस्टर चिपकाया, जिसे उद्धृत कर चन्द्रशेखर ने अपनी बात कही थी.

कलवार, भील, कोल, तेली और कुम्हार जैसी जातियों पर नजर, राजभर को सलटाने की कोशिश

सपा और राजद कलवार, भील, कोल, तेली और कुम्हार जैसी कथित निचली जातियों को अपने पाले में करने का कोई मौका खोना नहीं चाहती. वहीं सपा इस विवाद के बहाने बसपा के वोट बैंक में भी सेंधमारी करना चाहती है. लेकिन उसके निशाने पर पूर्वी यूपी में एमबीसी के एक प्रमुख नेता ओम प्रकाश राजभर भी हैं, कभी भाजपा के साथ रहे राजभर की हाल के दिनों में भाजपा से फिर से नजदीकियां बढ़ी है. 2022 के विधानसभा चुनावों से पहले वह सपा खेमे में चले गए थे, सपा की कोशिश इस बहाने ओम प्रकाश राजभर को भी सलटाने की है.

अखिलेश की तेजी से भाजपा में बौखलाहट

दरअसल भाजपा को यह अन्दाजा भी नहीं था अखिलेश यादव इस विवाद का इस्तेमाल अपने हित में कर लेंगे, और स्वामी प्रसाद मौर्या को अतिपिछड़ों के नायक के बतौर पेश कर देंगे, अखिलेश की इस तेजी से भाजपा में छटपटाहट है. यही कारण है कि भाजपा के द्वारा अखिलेश की तुलना महमूद गजनी और मुहम्मद गोरी की जा रही है. लेकिन सच्चाई यह भी है कि भाजपा की ओर से इस मुद्दे पर कोई सवर्ण नेता बोलने को तैयार नहीं है, स्वामी प्रसाद मौर्या के खिलाफ आग उगलने की जिम्मेवारी भाजपा ने अब अपने ओबीसी नेताओं के कंधों पर दे रखा है.

ओबीसी नेताओं पर सौंपा गया अखिलेश और स्वामी प्रसाद मौर्ये पर प्रहार का जिम्मा

केशव प्रसाद मौर्य (उपमुख्यमंत्री) और भूपेंद्र सिंह चौधरी (इसके राज्य प्रमुख) इस दायित्व का निर्वाह कर रहे हैं. इधर, अखिलेश स्वामी प्रसाद मौर्या के बहाने राज्य में जातीय जनगणना की मांग भी कर रहे हैं. उनकी कोशिश यह साबित करने की है कि यह भाजपा है जो दलित पिछड़ों को शूद्र मानती है.

पूरी बयानबाजी सोची समझी राजनीति का हिस्सा

माना जाता है कि यह पूरी बयानबाजी सोची समझी राजनीति का हिस्सा है, आजमगढ़ और रामपुर में हुए उपचुनावों में भाजपा को मिली जीत से सपा को यह संकेत मिल गया था कि सपा को सभी मुसलमानों का समर्थन हासिल नहीं हुआ, रामचरितमानस पर मौर्य की टिप्पणी पर अपने रुख के साथ, अखिलेश मुसलमानों के साथ-साथ उन दलितों और ओबीसी को अपील करने की उम्मीद करते हैं जो उच्च जातियों के साथ सहज महसूस नहीं करते हैं.

रिपोर्ट: देवेन्द्र कुमार