धनबाद ( DHANBAD) दोनों हाथ नहीं है फिर भी हिम्मत नहीं हारी. दिव्यांगता को मात देकर बच्चों के साथ अपनी किस्मत की डोर बांध ली और बन गई रोल मॉडल. यह कोई फिल्मी कहानी नहीं बल्कि 100 फीसदी हक़ीक़त है. धनबाद के बलियापुर प्रखंड के सिंदरी स्थित डोमगढ़ उत्क्रमित मध्य विद्यालय में पढ़ाने वाली यह पारा शिक्षिका बसंती लोगों के लिए उदाहरण बन गई है कि अगर मन में कुछ ठान लिया जाए तो कुछ भी करना मुश्किल नहीं है .बचपन से ही उसके दोनों हाथ नहीं है, फिर भी वह हिम्मत नहीं हारी और समाज के उल्लाहनों की परवाह किए बिना आगे बढ़ती चली गई. आज वह 700 बच्चों की क्षमता वाले स्कूल में पढ़ा रही है. घर का खर्च भी चला रही है और मां बहनों को भी साथ रख रही है.10 वर्ष पूर्व नौकरी शुरू करने वाली यह पारा टीचर बसंती अभी अविवाहित है लेकिन उसे इंतजार है कि कब सरकार उसकी ओर ध्यान देगी और पारा टीचर से प्रमोट कर उसे स्थाई नौकरी देगी. पिछले 10 वर्षों से इसी आस में वह मन ,क्रम, वचन और ध्यान से बच्चों को पढ़ा रही है. खासियत यह है कि दोनों हाथ नहीं होने के कारण वह सारे कार्य पैर से करती है.दर्द सहकर भी दोनों पैर से घंटो बोर्ड पर लिखती है. ताकि बच्चों का भविष्य बन सकें. घर के काम में भी पैर से ही हाथ बटाती है. वर्तमान में वैश्विक महामारी कोरोना के कारण पिछले 17 माह से स्कूल बंद रहे है. बच्चें स्कूल नहीं आ रहें है. लेकिन शिक्षकों को रोज ड्यूटी आना पड़ता हैं. स्कूल से आधा किलोमीटर दूर डोमगढ़ में दो कमरों के आवास में जिंदगी गुजारने वाली यह रोल मॉडल पारा शिक्षिका अभी मात्र ₹8000 मानदेय पाती है. पुरस्कार के नाम पर भी 2017 में उसे जिला स्तर पर सम्मानित किया गया था लेकिन राज्य स्तर पर उसे न तो कोई सम्मान मिला है और ना ही सरकार उसको कोई प्रोत्साहन दे रही है. बस अपने हालात से दुखी दिव्यांग पारा शिक्षिका बसंती अपनी सेवा का स्थायीकरण करने की मांग कर रहीं है. उसे शिक्षक दिवस पर कोई कोई पुरस्कार व दिव्यांगता के नाम पर कोई सहानुभूति नहीं चाहिए ..
बस वो अपनी नौकरी को नियमित करने की मांग कर रहीं है. जिसे सरकार ने एक दशक बीत जाने के बाद भी पूरा नहीं किया.
शिक्षक दिवस विशेष : दोनों हाथ से दिव्यांग पारा शिक्षिका बसंती दर्द सहकर गढ़ रही देश का भविष्य

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