जमशेदपुर(JAMSHEDPUR)-आम तौर पर मेंस्ट्रूरेशन के दौरान महिलाएं द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाला सैनिटरी नैपकिन आमतौर पर पर्यावरण के अनुकूल नहीं होता हैं. बता दें कि ये पैड प्लास्टिक औऱ सिंथेटिक मैटेरियल से बने होते हैं जिन्हें नष्ट होने में 60 साल लग जाते हैं. ऐसे में ग्रीन मेंस्ट्रुरेशन की सख्त ज़रूरत है. ‘प्रोजेक्ट माही फॉर नेचर’ इस दिशा में काम कर रही है जो महिलाओं को बायो कंपोस्टेबल पैड्स यानि सहज भाषा में कहें तो बायो फ्रेंडली पैड्स के इस्तेमाल के प्रति जागरूक करने में जुटी है. प्रोजेक्ट माही फॉर नेचर की संस्थापक डॉ श्रद्धा सुमन ने ग्रीन मेंस्ट्रुरेशन को लेकर महिलाओं के साथ ही किशोरियों को एकत्रित कर एक अनोखे जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया. जिसका नाम “लेट्स टॉक अबाउट ग्रीन मेंस्ट्रूरेशन” दिया गया. यह पहल अपने-आप में अनोखा इसलिए क्योंकि अब तक जमशेदपुर में ऐसे कार्यक्रम का आयोजन पहले कभी नहीं हुआ था.

प्लास्टिक औऱ सिंथेटिक से बने पैड्स हैं पर्यावरण के लिए खतरनाक

अब तक यहां बीपीएल महिलाओं के बीच, विभिन्न स्कूलों-कॉलेजों में सामान्य सैनिटरी नैपकिन वितरित किए जाते रहे हैं. यानि जो ग्रामीण महिलाएं या गरीब महिलाएं पुराने कपड़े नैपकिन के तौर पर इस्तेमाल करती रही थीं उन्हें धीरे–धीरे नैपकिन की आदत डालने में मदद किया जाता रहा है. लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया कि प्लास्टिक औऱ सिंथेटिक से बने ये पैड्स या नैपकिन पर्यावरण के लिए कितने खतरनाक हैं. पुराने कपड़े का इस्तेमाल महिलाओं के स्वास्थ्य लिए खतरनाक होते हैं तो सामान्य नैपकिन का इस्तेमाल पर्यावरण के लिए खतरनाक होता है जो इंसान के लिए खतरनाक साबित कैसे होता है इससे सभी वाकिफ हैं. यानि पिछले कुछ सालों में पीरिएड्स को लेकर महिलाओं के स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ी और उन्हें सुरक्षित रखने के उद्देश्य से नैपकिन या पैड्स के इस्तेमाल के प्रति जागरूक किया गया लेकिन ये पैड्स पर्यावरण के लिए घातक साबित हुए.

जानिए कुछ महत्वपूर्ण तथ्य

सैनिटरी नैपकिन या पैड्स प्लास्टिक औऱ सिंथेटिक से बने होते हैं जिन्हें नष्ट होने में 60 साल लग जाते हैं. सैनिटरी नैपकिन ज्यादातर खाली जमीनों पर फेंके जाते हैं.ये जल्दी नष्ट नहीं होते औऱ जहां फेंके जाते हैं वहां की मिट्टी पर बुरा असर करने के साथ साथ पूरे पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं.औसतन एक महिला अपनी जिंदगी में कुल 11 हजार सैनिटरी पैड्स का इस्तेमाल करती है जो लगभग 125 से 150 केजी प्लास्टिक पैदा करता है.

क्या बायो फ्रेंडली पैड्स र्माकेट में हैं उपलब्ध..?

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए डॉ श्रद्धा सुमन ने जानकारी देते हुए बताया कि ऐसे पैड्स ऑनलाईन उपलब्ध हैं. साथ ही उड़ीसा, असम समेत कुछ राज्यों में इसका उत्पादन होता है, लेकिन ग्राहक न होने की वजह से इसका वितरण जमशेदपुर में बड़े पैमाने पर नहीं किया जा सका. जागरूकता के अभाव में इसका बाजार विकसित नहीं हुआ है. हालांकि प्रोजेक्ट माही फॉर नेचर की संस्थापक डॉ. श्रद्धा सुमन कुछ ग्रामीण औऱ शहरी इलाकों में जागरूकता के उद्देश्य से उड़ीसा से पैड मंगाकर महिलाओं को देती हैं. लेकिन उनका मुख्य मकसद है कम से कम सैनिटरी नैपकिन खरीदने की सामर्थ्य रखनेवाली महिलाओं को बायो फ्रेंडली पैड्स के प्रति जागरूक करना ताकि वे ग्रीन मैंस्ट्रुरेशन के जरिए पर्यावरण सुरक्षा के प्रति अपना अहम रोल निभाएं. जहां तक बीपीएल महिलाओं का सवाल है तो बड़े पैमाने पर जागरूकता के लिए सरकार औऱ प्रशासन की मदद की जरूरत पड़ेगी.

आखिर कैसे ये बायो फ्रेंडली पैड्स पर्यावरण के लिए फायदेमंद हैं

बता दें कि बायो फेंड्ली पैड्स जल्दी नष्ट होते हैं. इनको मिट्टी में गाड़ने से ये जल्द ही खाद के रूप में परिवर्तित हो जाते हैं. जहां ये गाड़े जाते हैं वहां पौधारोपण किया जा सकता है. यानि एक ऐसी जगह जहां बायो फेंड्ली पैड्स लगातार गाड़ा जाए वहां कम से कम एक पेड़ उगाया जा सकता है. अगर ऐसी एक बड़ी जगह निर्धारित हो जाए तो अनगिनत पेड़ उगाए जा सकेंगे. डॉ श्रद्धा सुमन कहती हैं---‘अब तक हमने पर्यावरण को कितना नुकसान पहुंचाया है इस पर ज्यादा बात करके भी कोई फायदा नहीं, महत्वपूर्ण है कि अब हम कौन सा कदम बढ़ा रहे हैं.’ मौके पर डॉ श्रद्धा सुमन ने बताया कि शहरों में जहां अपार्टमेंट कल्चर है औऱ जगह का अभाव है मिट्टी का एक काफी बड़ा सा गमला बॉलकनी या किसी जगह पर रखकर उसकी मिट्टी में इस्तेमाल किए जा चुके बायो फेंड्ली पैड्स को गाड़ा जा सकता है.

रिपोर्ट:अन्नी अमृती,जमशेदपुर