रांची(RANCHI): राज्यसभा चुनाव की प्रक्रिया के साथ झारखंड में राजनीति तपिश बढ़ गयी है.झामुमो के फैसले से तमाम कांग्रेसी दुखी है.एक सुर में सभी मंत्री और विधायकों ने प्रभारी से कहा कि इससे बुरा कांग्रेस के लिए कुछ नहीं है. चारों मंत्री ने सामूहिक इस्तीफ़ा देने की बात प्रदेश प्रभारी से कहा है.  झारखंड में कभी भी राजनीति उथल पुथल हो सकता है. कांग्रेसी नेताओं की नाराज़गी अब सरकार से समर्थन वापस लेकर बाहर से समर्थन देने की बात तक आ गयी है. प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडे एक एक से मंत्री और विधायक से अलग से चर्चा कर रहे है. एक दो दिन में झारखंड की राजनीति में कुछ भी बड़ा हो सकता है.

कांग्रेस के पास कोई विकल्प नहीं 

राज्यसभा चुनाव में प्रत्याशी के मुद्दे पर जिस तरह सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद सीएम हेमंत सोरेन ने एकतरफा फैसला लिया, उससे कांग्रेस में बारी नाराजगी है. इस प्रकरण में कांग्रेस पूरी तरह बैकपूट पर है और उसके पास कोई विकल्प नहीं है. लेकिन जिस तरह झामुमो ने कांग्रेस को जोर का झटका धीरे से दिया, उससे कांग्रेस काफी आहत है, खासतौर पर सोनिया गांधी से सीएम की मुलाकात में प्रदेश प्रभारी की बड़ी भूमिका थी. लेकिन सीएम हेमंत सोरेन सोनिया गांधी के दबाव में नहीं आएं और अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया. उसका जबाव तो कांग्रेस को हर हाल में देना ही होगा. नहीं तो कांग्रेस की और भी मिट्रटी पलीद हो सकती है. कांग्रेस गठबंधन में रहना भी चाहती है, इसलिए सरकार को बाहर से समर्थन देकर चारों मंत्री से इस्तीफा ले सकती है. फिलहाल बैठक जारी है उसके बाद ही अंतिम फैसला से आएगा.  

हेमंत सरकार को भी चुकानी पड़ सकती है कीमत

यदि कांग्रेस सरकार से बाहर हो जाती है ,तो झामुमो को भी इसका खामियाजा भविष्य में चुकानी पड़ सकती है, हेमंत सरकार भ्रष्टाचार के मामले में फंस चुकी है, झामुमो को डबल वोल्ट का झटका लगने के आसार साफ दिखाई दे रहा है.  भाजपा की इन दोनों मामलों में पैनी निगाह जमी है और गठबंधन में होने वाले हर गतिविधि पर नजर रखते हुए  उचित समय का इंतजार कर रही है. 

महुआ माजी को देना राजनीतिक पंडित को नहीं आ रहा समझ में 

सोनिया गांधी के सलाह को दरकिनार कर महुआ माजी को आनन-फानन में टिकट दे देना राज्य के किसी भी राजनीतिक पंडितों को समझ में नहीं आ रहा है. झामुमो में कई बड़े नेता हैं, जिन्होंने अलग राज्य के निर्माण में गुरूजी के साथ अहम भूमिका निभायी है. लेकिन प्रत्याशी नहीं बनाया गया और एक साधारण कार्यकर्ता को टिकट दे दिया गया.