दुमका (DUMKA) : एक दौर था जब संयुक्त परिवार की अवधारणा थी. बच्चों की परवरिश में दादा दादी, नाना नानी, चाचा चाची, माता पिता सबका योगदान रहता था. बच्चे दादी नानी से कहानियां सुनते थे, जिसके माध्यम से बच्चों में संस्कार भरा जाता था. परिवार के सदस्य बड़े बुजुर्गों की सेवा करते थे.

बच्चे को नहीं मिल रहा मां का आंचल, नौकरानी सुना रही है लोरियां, दादा दादी परिवार से आउट

समय बदला, संयुक्त परिवार का स्थान एकल परिवार ने ले लिया. हम दो हमारे दो के बाद हम दो हमारे एक की अवधारणा लोगों के जेहन में शमा गया. एक तरफ जहां कामकाजी दंपत्ति के बच्चे की परवरिश नौकरानी करने लगी तो दूसरी तरफ हर शहर में वृद्धाश्रम बनने लगा. बचपन में उसे न तो मां का अंचल मिला और न ही दादा दादी, नाना नानी का स्नेह. लोरियां भी नौकरानी सुनाने लगी. नतीजा बच्चे भावनात्मक रूप से जुड़ नहीं पाते. जिसका दंश समाज झेल रहा है. ऐसा ही एक मामला गोड्डा जिला से सामने आया है. पत्नी की मौत के बाद सुदामा झा दर दर की ठोकर खा रहा है.

पत्नी की मौत के बाद बेटा बेटी ने भी किया किनारा, देवालय में सुदामा का बसेरा

इन दिनों गोड्डा सदर अस्पताल के पास बजरंग बली मंदिर में एक असहाय वृद्ध को हरवक्त देखा जा रहा है. इनका नाम सुदामा झा है. मूलरूप से ककना दियारा के रहने वाले है. कुछ वर्ष पूर्व तक इनका हंसता खेलता परिवार था. पत्नी, दो बेटा और एक बेटी के साथ जीवन खुशी पूर्वक बीत रहा था. तीनों बच्चों की परवरिश में सुदामा ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ा. इस उम्मीद में कि बच्चे जब कामयाबी के शिखर पर पहुंच जाएंगे तो इनका जीवन भी और खुशहाल हो जाएगा. लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था. जिंदगी के जिस मोड पर एक इंसान को सबसे ज्यादा जरूरत जीवन संगनी की होती है उस मोड पर पत्नी ने दुनिया को अलविदा कह दिया. पत्नी की मौत ने सुदामा को तोड़ कर रख दिया. उसके बाद बच्चों के बदलते व्यवहार ने सुदामा को बैरागी जीवन जीने पर विवश कर दिया. नतीजा घर द्वार छोड़ कर सुदामा प्रभु के शरण में पहुंच गया.

छलका सुदामा का दर्द: कहने के लिए सभी है लेकिन सभी अपने में है मगन

सुदामा का एक बेटा और एक बेटी दिल्ली में रहता है. पैतृक संपत्ति ककना दियारा में है तो कुछ जमीन डुमरिया स्थित ससुराल में है. एक बेटा डुमरिया में घर बना कर रहने लगा है. ककना दियारा में एकाकी जीवन जीते हुए कुछ महीने पूर्व सुदामा बीमार पड़ गया. घर पर कोई देख भाल करने वाला नहीं था. किसी तरह वह सदर अस्पताल पहुंचा. डॉ ने अस्पताल में भर्ती कर दिया, जहां इलाज के साथ साथ दो वक्त का खाना भी मिलता था. स्वस्थ्य होने के बाद डॉ ने अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया. अस्पताल से निकल कर सुदामा घर जाने के बजाय बजरंगबली मंदिर को ही अपना आशियाना बना लिया. पूछने पर सुदामा कहते है कि उनके जैसा दुख दुश्मन को भी न दे. भरोसा भगवान पर है, अपनों से भरोसा उठ चुका है. किसी से कोई गिला शिकवा नहीं.

द्वापर में कृष्ण के पास पहुंचा था सुदामा, कलियुग में सुदामा को है कृष्ण का इंतजार

ऐसे हालात में सुदामा को जरूरत है कृष्ण रूपी मित्र की. गोड्डा में न केवल कई सामाजिक कार्यकर्ता है बल्कि कई संगठन भी है जो मानव सेवा का दंभ भरते है. जिला प्रशासन के अधीन वृद्धाश्रम भी है जो एनजीओ के माध्यम से संचालित हो रहा है. इसके बाबजूद सुदामा का सुध लेने वाला कोई नहीं है. द्वापर में सुदामा कृष्ण के पास पहुंचा था, लेकिन उम्मीद की जानी चाहिए कि कलियुग में कोई कृष्ण बनकर सुदामा के पास पहुंच कर मदद के लिए हाथ बढ़ाए.

गोड्डा से अजित के साथ दुमका से पंचम झा की रिपोर्ट