धनबाद(DANBAD) : कोयले की "आग" ने धनबाद में वह सब कुछ कर दिया, जो आज तक नहीं हुआ था. राजनीतिक संत रहे पूर्व सांसद और महान विचारक ए के राय के कार्यालय में शनिवार की शाम भारी हंगामा और तोड़फोड़ हुआ.  यह  अलग बात है कि आज राय साहब नहीं है. अगर वह जीवित रहते और यह सब होता तो शायद यह उनकी  जिंदगी का सबसे बड़ा दुखद पल होता. सांसद रहते हुए भी जिस  "कुटिया" से उनका मोह  कभी भंग नहीं हुआ. वह अभी माले  का कार्यालय बन गया है. चुकि एके राय की पार्टी का उनके समर्थकों ने माले में विलय कर लिया है, इस वजह से उनकी "कुटिया" में माले का कार्यालय खुल गया है. दरअसल, शनिवार की शाम यह  इलाका रण क्षेत्र में बदल गया था. माले  के दो गुट आपस में भिड़ गए. 
 
विवाद  की वजह कोयले  का डिलीवरी आर्डर था 
 
विवाद की वजह कोयले का डीओ था. दोनों ओर से जमकर मारपीट हुई और कार्यालय को भी निशाना बनाया गया. मतलब पहुंचे लोगों में पूर्व सांसद एके राय के प्रति कोई सम्मान नहीं दिखा. सूत्र बताते हैं कि नॉर्थ तिसरा कोलियरी में डीओ को लेकर राजेंद्र पासवान और सुरेंद्र पासवान के बीच लंबे समय से विवाद  चल रहा था. इस विवाद को खत्म करने के लिए राजेंद्र पासवान के पक्ष से बिंदा पासवान ने शनिवार को माले कार्यालय में दोनों पक्षों की बैठक बुलाई थी. केंद्रीय सचिव हरि प्रसाद पप्पू अध्यक्षता कर रहे थे. अन्य बड़े नेता भी मौजूद थे. दोनों अपने-अपने समर्थकों के साथ पहुंचे थे. बैठक जब शुरू हुई तो माहौल शांत रहा, लेकिन धीरे-धीरे तनाव बढ़ता गया और मामला गाली -गलौज तक पहुंच गया.  इस दौरान कार्यालय में कुर्सियां समेत कई सामान को तोड़ दिया गया. एक  घंटे तक लगभग विवाद चला. मारपीट में कई लोग घायल हुए, दूसरे पक्ष के लोग भी घायल हुए. 

घटना के बाद दोनों पक्ष थाने में की है शिकायत 
 
घटना के बाद दोनों पक्ष बैंक मोड़ थाना पहुंचे. यहां पुलिस से शिकायत की गई. पुलिस ने घायलों को इलाज के लिए अस्पताल भेजा. सवाल यह नहीं है कि कोयले को लेकर मारपीट हुई, कोयले को लेकर तो कोयलांचल में हर रोज कहीं ना कहीं झड़प  होती है. यहां सवाल  यह है कि राजनीतिक संत रहे, एके  राय के कार्यालय में इस तरह की घटना हुई है. फिलहाल धनबाद ज़िले में माले के दो विधायक है. जानिए कौन थे एके राय ,शिबू सोरेन, एके राय और विनोद बिहारी महतो ने मिलकर झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन किया था. उस समय तीनों नेता बड़े  नेता माने जाते थे. यह अलग बात है कि उस समय झारखण्ड अलग नहीं हुआ था.  

जानिए कौन थे राजनीतिक संत एके राय 
 
वैचारिक मतभेद होने पर एके  राय धीरे-धीरे अलग हो गए और मार्क्सवादी समन्वय  समिति के नाम से अपनी पार्टी बनाई और पार्टी चलाने लगे.  जो भी हो, एके  राय की राजनीतिक हनक  कोयलांचल ने महसूस किया था.  तीन बार के सांसद और तीन बार के विधायक रहे एके  राय ने अपना जीवन ही कोयला मजदूरों के नाम कर दिया था. अंतिम- अंतिम समय तक उन्होंने निभाया भी.  ऐसी बात नहीं थी  कि एके  राय के परिवार वालों ने अंतिम समय में  उन्हें छोड़ दिया था. लेकिन जब वह बीमार होकर सुदामडीह में कार्यकर्ता के घर रहने लगे तो उनके परिवार वालों ने उन्हें घर चलने का आग्रह किया, लेकिन वह उसे ठुकरा दिए और धनबाद में ही उन्होंने अंतिम सांस ली.  लेकिन उनकी विरासत संभालने वाले उनके संघर्ष को जानते- समझते हुए भी कार्यालय में हंगामा और तोड़फोड़ की  है. 

रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो