दुमका|मेला शब्द सुनते ही आंखों के सामने क्या आता है वो भीड़ भाड़ वाली जगह जहां छोटे बड़े  महिला पुरुष बच्चों, और बाजारों से भरी कोई जगह इस तरह के मेलों का आनंद तो आपने उठाया होगा और देखा भी होगा पर आप क्या कभी ऐसे मेले से वाकिफ हुए हैं  जहां पुरुषों का आना पूरी तरह से वर्जित है  तो चलिए आज आपको हम बताने जा रहे है एक ऐसे मेले के बारे में जहां पुरुषों के प्रवेश पर पूरी तरह से रोक है।


एक ऐसा मेला जहां पुरुषों का आना वर्जित है
दुमका जिला के रानीश्वर प्रखंड के सादिकपुर गांव में एक ऐसा मेला लगता है जिसमें पुरुषों का प्रवेश पूरी तरह से वर्जित है. प्रतिवर्ष मुहर्रम के मौके पर लगने वाला यह मेला चूड़ी मेला के नाम से जाना जाता है. लेकिन दुमका जिला के रानीश्वर प्रखंड़ के सादिकपुर में लगने वाला एक मेला इस मामले में बिल्कुल भिन्न है. इस मेला का नाम है चूड़ी मेला। प्रतिवर्ष मुहर्रम के मौके पर बीबी फ़ातेमा माँ के मजार पर लगने वाले इस मेले में पुरुष प्रवेश नहीं कर सकते हैं. यहां महिलाएं ही क्रेता होती है और महिलाएं ही विक्रेता.


महिलाएं ही क्रेता होती हैं और विक्रेता भी
साल में एक बार लगने वाले इस मेले में  महिलाएं ही क्रेता होती है और महिलाएं विक्रेता होती है,, इस मेले में जो भी बाजार लगते है  ये मेला सिर्फ और सिर्फ महिलाएं ही लगाती है और खरीदार भी महिलाएं होती है
कोई पुरुष मेला परिसर में प्रवेश करता है तो उसे पहनाया जाता है जूतों का हार। इस मेले एक अनोखी बात ये भी है की अगर चूड़ी मेला में कोई पुरुष गलती से भी प्रवेश कर जाये तो  उसे जूतों का हार पहनाया जाता है साथ ही एक हजार रुपया आर्थिक दंड भी लगाया जाता है. इस मेले में झारखंड़ के अलावा बिहार और पश्चिम बंगाल से भी लोग आते है. मुख्य सड़क पर पुरुष लाठी के साथ पहरेदारी करते हैं. 


सौ वर्षों  से लगता आ रहा है ये मेला
लगभग सौ वर्ष से यह मेला लगते आ रहा है. महिलाओं को बड़ी बेसब्री से इस मेले का इंतजार रहता है क्योंकि इस मेले में बेफिक्री से घूमती है, जमकर खरीददारी करती है और लुफ्त उठातीं हैं । ऐसी मान्यता है कि बीबी फ़ातेमा  माँ के मजार पर लोगों की मन्नतें पुरी होती है. यहां से कोई खाली हाथ नहीं लौटता. मन्नतें मांगने तथा मन्नतें पुरी होने पर शीश झुकाने के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है.झारखंड़ में अपने  आप में इस तरह का यह अनोखा मेला है।