Ranchi-लोकसभा चुनाव की रणभेरी के साथ ही पूरे देश की तरह झारखंड  में भी सियासी सरगर्मी तेज हो चुकी है, इंडिया गठबंधन हो या फिर भाजपा हर खेमें से विरोध और बगावत की खबर है. एक तरफ जहां धनबाद में ढुल्लू महतो की उम्मीवारी के एलान के बाद भाजपा के अंदर से विरोध के स्वर तेज हो रहे हैं, वहीं इंडिया गठबंधन के अंदर भी कई सीटों पर खटपट की खबरें हैं. अभी तक लोहरदगा से चमरा लिंडा के विरोध की खबर ही आ रही थी. दावा किया जा रहा है कि चमरा लिंडा कांग्रेस के घोषित प्रत्याशी सुखदेव भगत के खिलाफ मोर्चा खोलने की तैयारी में हैं. अभी  मान-मनौबल का दौर चल ही रहा था कि जैसे ही राजमहल और पश्चिमी सिंहभूम सीट से झामुमो की  ओर से उम्मीदवारों की घोषणा हुई, बोरिया विधान सभा से झामुमो के टिकट पर पांच बार विधान सभा पहुंचने वाले लोबिन हेमब्रम ने विजय हांसदा के विजय रथ को रोकने का एलान कर दिया है.

राजमहल में त्रिकाणीय मुकाबले की भविष्यवाणी में कितना दम!

विजय हांसदा की उम्मीदवारी से आहत लोबिन हेम्ब्रम ने निर्दलीय मैदान में कूदने का एलान किया है, जिसके बाद कुछ सियासी जानकारों के द्वारा राजमहल में त्रिकाणीय मुकाबले की भविष्यवाणी की जा रही है. हालांकि यह त्रिकोणीय मुकाबला कितना त्रिकोणीय होगा, अभी इसको लेकर कई संशय हैं, पहला संशय तो  लोबिन  के चुनाव लड़ने को लेकर ही है, क्योंकि लोबिन को जानने वालों का दावा है कि उनके बारे में कुछ भी दावे के साथ नहीं कहा जा सकता, कल यदि झामुमो की ओर से दवाब बनाया जाता है, खासकर यदि गुरुजी बुलाकर डांट-फटकार लगाते हैं, तो एक ही झटके में लोबिन अपने आप को  इस मुकाबले से बाहर  करने का एलान कर सकते हैं, बावजूद  इसके यदि मुकाबले में बने रहने का एलान करते भी हैं तो क्या लोबिन बोरिया विधान सभा से बाहर कोई बड़े उलटफेर करने की स्थिति में होंगे.

क्या बोरियो के बाहर लोबिन झामुमो के कोर वोटरों में सेंधमारी की स्थिति में होंगे?

क्या लोबिन हेम्ब्रम राजमहल, बरहेट,लिटिपारा, पाकुड़ और महेशपुर विधान सभा में झामुमो के कोर वोटरों का रुख अपनी ओर मोड़ सकते हैं. क्योंकि अब तक लोबिन की सियासी गतिविधियां विधान सभा चुनाव तक ही सीमित रही है. बोरियो के बाहर  कोई मजबूत सियासी गतिविधि कभी नहीं रही है. ना ही झामुमो ने अब तक लोबिन के चेहरे को किसी व्यापक फलक पर विस्तारित करने की कोशिश की, जिसके चलते बोरियो के बाहर लोबिन की पहचान स्थापित हो सके.इसके साथ ही लोकसभा चुनाव का अपना एक अलग समीकरण और सियासी गुत्थियां होती है, साथ ही संसाधनों का भी एक बड़ा खेल होता है. संसाधनों की कमी लोबिन के सियासी हसरत पर असर डाल सकता  है. यह ठीक है कि लोबिन बोरियो से पांच बार के विधायक रहे हैं, लेकिन बोरियो से बाहर उनके पास कितने कार्यकर्ता है. जिसके बूते वह चुनावी समर में ताल ठोंकेगे. निश्चित रुप से लोबिन आदिवासी-मूलवासियों के आवाज को प्रखरता के साथ उठाते रहे हैं, और इसके कारण वह सुर्खियों में भी बने रहते हैं, लेकिन जब लड़ाई ग्राउंड लेबल पर होती है तो अखबारों की यह सुर्खियां कुछ खास काम नहीं देती, वहां  कार्यकर्ताओं की  फौज की जरुरत होती है. इस हालत में यह सवाल  खड़ा होता है कि लोबिन जिस मुद्दों को उछाल चुनावी संग्राम में कूदने की तैयारी में हैं, क्या वह उन मुद्दों के सहारे जमीन पर कोई बड़ा उलटफेर करने की स्थिति में होंगे?

क्या है राजमहल का सियासी और सामाजिक समीकरण

जहां तक राजमहल लोकसभा की बात है तो इसके अंतर्गत विधान सभा की कुल छह सीटें आती है, इसमें अभी राजमहल पर भाजपा(अनंत ओझा), बोरियो-झामुमो (लोबिन हेम्ब्रम), बरहेट झामुमो ( हेमंत सोरेन), लिटिपार-झामुमो (दिनेश विलियम मरांडी), पाकुड़- कांग्रेस ( आलमगीर आलम) और महेशपुर- झामुमो (स्टीफन मरांडी) का कब्जा है, यानि कुल छह विधान सभा में  से पांच पर कांग्रेस और झामुमो का कब्जा है. क्या लोबिन के बगावत से महागठबंधन यह ताकत इस हद तक सिमट जायेगा कि जीत का वरमाला लोबिन के गले आ जायेगा,  फिलहाल इसकी कोई गुंजाईश बनती नहीं दिखती. 

10 फीसदी मतों में गिरावट से  बिगड़ सकता  है झामुमो का खेल

लेकिन  यहां सवाल दूसरा है, वह सवाल है कि क्या लोबिन पूरे राजमहल लोकसभा सभा में झामुमो के 10 फीसदी मतों में सेंधमारी करने की स्थिति में  खड़ा हो सकते हैं, यह सवाल इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि वर्ष 2019 के मुकाबले में झामुमो ने कुल 49 फीसदी मतों के साथ इस सीट को अपने नाम किया था, जबकि भाजपा के हिस्से कुल 39 फीसदी वोट आया था, जबकि 2014 में भाजपा और झामुमो के बीच कुल चार फीसदी मतों का अंतर था. इस हालत में यदि सीमित संसाधन और देशज प्रचार के साथ लोबिन यदि 10 फीसदी मतों में सेंधमारी में भी सफल होते हैं तो  ताला मरांडी का ताला खुल सकता है और इसके साथ ही विजय हांसदा के विजय रथ पर ताला लोबिन का ताला लग सकता है.

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