'किसी भी शहर का वासी बनू
हर जन्म में राधे कृष्ण का दास ही बनूं'
कुछ ऐसी ही सोच होती है कृष्ण प्रेमी की. वैसे तो कृष्ण विष्णु जी के अवतार हैं. लेकिन हिन्दू समाज में लोग कृष्ण को लेवल भगवान नहीं, अपना प्रेम, अपना बच्चा, अपना साथी और न जानें क्या कुछ मानते हैं. लोग उनकी सेवा भी माने हुए रिश्ते के अनुसार ही करते हैं. हम सभी कृष्ण जन्म और उनकी लीलाओं के बारे में जानते ही हैं. इसलिए आज हम बात करेंगे कान्हा से जुड़े ऐसे पहलू के बारे में जिसकी सच्चाई जान आप चौक जाएंगे.

काल सर्प दोष और मोर पंख का संबंध 

कृष्ण की लंगोट, उनके पैरों की पाजानियां, हाथों में बांसुरी, बाजू में बाजूबंद और सर पर सजी मोरमुकुट देख कर पूरे गोकुलवासियों का मन मोहित हो जाता था. पौराणिक गाथा और कृष्ण के कहानियों में भी कृष्ण का रूप ऐसा ही बताया गया है. इसी के अनुसार लोगों ने भी बालगोपाल को अपनाया है. शायद आपको लगता होगा कि अपने मुकुट की शोभा बढ़ने के लिए कृष्ण सर पर मोर पंख धारण करते थे. लेकिन नहीं, उनके हर शृंगार का अपना एक महत्व है. कान्हा के मोरपंख मुकुट की बात करें तो उसके पीछे भगवान कृष्ण की कुंडली दोष का रहस्य छिपा है. ज्योतिषशास्त्री की मानें तो कुण्डली में दोष के अशुभ प्रभावों को दूर करने के लिए कृष्ण हमेशा मोर पंख को अपने सिर पर रखते थे. बता दें कि 1967 में सोलन में आयोजित एक ज्योतिषीय सम्मेलन में कृष्ण के कुंडली दोष पर विस्तार से चर्चा हुई थी. वहां पहुंचे एक जैन ज्योतिषी का मानना था कि कृष्ण अपनी कुण्डली में मौजूद कालसर्प योग के अशुभ प्रभावों को दूर करने के लिए मोर मुकट धारण किया करते थे. ऐसी मान्यता हैं की सर पर मोर पंख धारण करने से काल सर्प दोष दूर हो जाता हैं. 

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महारास लीला 

यह लीला राधा और श्रीकृष्ण के प्रेम से संबंध रखता है. महारास लीला के समय राधा-रानी ने श्रीकृष्ण को वैजंती की माला पहनाई, कृष्ण का शृंगार किया और दोनों ने ख़ुशी से नृत्य किया. इसी समय इनके साथ नाच रहे मोर का पंख गिरा, जिसे कृष्णा ने अपने सर पर सजा लिया. ऐसी मान्यता है कि मोर पंख राधा-कृष्ण के प्रेम की एक निशानी है. श्रीकृष्ण को मोर पंख राधा के करीब होने का अहसास दिलाता है. 

कॉपी: श्रेया गुप्ता