रांची(RANCHI): झारखंड खनिज संपदाओं से भरा राज्य है. यहां माओवाद एक बड़ी समस्या है. लेकिन माओवाद के शक पर कई बार निर्दोष लोगों पर कार्रवाई हो जाती है. सालों जेल में सजा काटने के बाद जब बेकसूर लोग कोर्ट से बरी कर दिये जाते हैं, तो सिस्टम पर सवाल उठना लाज़मी है कि इन सब का जिम्मेवार कौन है? क्योंकि न सिर्फ उस व्यक्ति का कीमती समय बर्बाद हो जाता है, बल्कि परिवार को भी ताने, तिरस्कार और आर्थिक मजबूरी के रूप में खमियाजा भुगतना पड़ता है. समाज में छवि धूमिल हो जाती है. ऐसा दरअसल UAPA के दुरुपयोग के सबब ही होता है झारखंड में इसके सबसे अधिक शिकार पिछड़े, दलित, आदिवादसी और गरीब लोग होते हैं। चलिये हम बताते हैं कि अबतक कितने ऐसे बेकसूर लोग अबतक ऐसे केस में अपनी जिंदगी दांव पर लगाने को मजबूर हैं।
कारवां मैगजीन में छपी एक रिपोर्ट में सीपीआईएम नेता प्रकाश विप्लव बताते हैं कि एक आरटीआई में पता चला है कि राज्य में आदिवासी, दलित और अल्पसंख्यक लोगों पर पिछले 13 वर्षों(2009 से 2021तक) में 704 मामले दर्ज किए गए है. इसमें 52.3 प्रतिशत केस आदिवासियों पर दर्ज हुए हैं, जबकि 23.1 प्रतिशत ओबीसी और 6.7 प्रतिशत दलित हैं. स्पेशल ब्रांच ने UAPA(Unlawful Activities (Prevention) Act.) की धारा के तहत 458 मामलों का ब्योरा दिया है. विप्लव का मानना है कि स्पेशल ब्रांच ने पूरे मामलों की जानकारी नहीं दी है. उनके मुताबिक उन्होंने 100 से अधिक थाना से भी केस के आंकड़ों को जुटाया है, जिसमें 248 मामलों की जानकारी मिली है. विप्लव के मुताबिक राज्य में पांच हजार से अधिक लोगों पर UAPA के तहत केस किया गया है. लेकिन आरटीआई से जो सूचना दी गई है उसमें जितने केस है, उतने की आरोपी की भी संख्या बताई गई है. उनके मुताबिक हर एक केस में 4-5 लोग को आरोपी बनाया गया है.
विप्लव का मानना है कि राज्य में अब माओवाद का इस्तेमाल कर लोग खनिज संपदाओं को नियंत्रण करने के लिए भी कर रहे है. झारखंड में नक्सली घटनाएं होती रहती हैं. हमेशा पुलिस की कार्रवाई गलत नहीं होती है. लेकिन फिलहाल में जो आंकडा है, उससे यह साबित होता है कि यहां आदिवासी लोग पर अत्याचार किया जा रहा है. प्रकाश विप्लव की टीम फिलहाल यह जानकारी जुटाने में लगी है कि आखिर ऐसे कितने लोग हैं, जिनपर UAPA के तहत जेल में बंद है. उनकी पीड़ा क्या है. आरटीआई के मुताबिक वर्ष 2009-2011 के बीच 136 और 2019-2021 के बीच 119 मामले माओवादी को लेकर UAPA के तहत दर्ज किए गए है.
तीन सालों में यह आकडा अधिक है. इससे साबित होता है कि केन्द्रीय एजेंसी का दखल झारखंड में अधिक रहा है.झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम में सबसे अधिक UAPA के तहत मामले दर्ज किए गए है.
कुछ ऐसे मामले जिससे घर बार सब हुआ बर्बाद
पहला केस (Case 1)
बिरसा मांझी, 43 साल का एक संथाल है. पिता- रामेश्वर मांझी, बोकारो जिला के गोमिया प्रखंड के चोरपनिया गांव का निवासी है. बिरसा मांझी निरक्षर है. इनके परिवार में कुल 12 सदस्य हैं. बिरसा मांझी का परिवार पूर्ण रूप से मजदूरी के काम पर निर्भर रहता है. बिरसा मांझी के परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत कमजोर है. परिवार की आजीविका मजदूरी पर निर्भर है. परिवार के सभी व्यस्क सदस्य अशिक्षित है. बिरसा व इसका बड़ा बेटा मजदूरी करने ईंट-भट्ठा या बाहर पलायन करते हैं. इसके अलावा बिरसा के परिवार के अन्य सदस्य गांव में ही रहते है.
बिरसा मांझी को दिसंबर 2021 में जोगेश्वर विहार थाना बुलाकर थाना इनचार्ज द्वारा कहा गया कि वह 01 लाख रु का इनामी नक्सली है और उसे सरेंडर करने को कहा गया. जबकि बिरसा मांझी ने थाना में लगातार कहा कि उसका माओवादी पार्टी से जुड़ाव नहीं है लेकिन फिर भी उसे सरेंडर करने को कहा गया.
बिरसा मांझी और गांव के कई लोगों पर 2006 में इनके रिश्तेदार ने डायन हिंसा संबंधित मामला काण्ड सं. 40/2006 पेटरवार धाना) दर्ज करवा दिया था. इन पर लगे आरोप गलत थे, उस मामले में अधिकांश लोग आरोप मुक्त हो चुके हैं. बिरसा की न्यायिक प्रक्रिया चल रही है. बिरसा के अनुसार पिछले कुछ सालों में इन पर (माओवादी घटना से संबंधित आरोप लगाया गया लेकिन मामले की जानकारी उन्हें नहीं है). 3-4 साल पहले इनकी कुर्की जब्ती भी की गई थी. आज तक बिरसा को पता नहीं कि किस मामले में कुर्की जब्ती की कार्यवाई हुई थी. उन्हें कार्यवाई से पूर्व किसी प्रकार का नोटिस भी नहीं दिया गया था. बिरसा मांझी अभी डर में जी रहे हैं कि कहीं उन्हें इस फर्जी आरोप पर गिरफ्तार न कर लिया जाए या वे किसी हिंसा का शिकार न हो जाएं.
दूसरा केस(Case 2)
24 वर्षीय हीरालाल टुडू (पिता- धनीराम माझी, गांव टूटी झरना, तिलैया पंचायत, गोमिया) भी संथाल आदिवासी हैं. वह इंटर तक पढ़ाई किया है. 2014 में रामगढ़ में 6 महीने के कंप्यूटर कोर्स में नामांकन करवाया था ताकि गांव में प्रज्ञा केंद्र खोल सके. कोर्स शुरू करने के डेढ़ महीने में उसकी गिरफ़्तारी हो गयी थी. पुलिस ने 3 सितंबर 2014 को उसके घर से उसे गिरफ्तार किया और कपड़ा खुलवा कर पीटा गया. उस पर पुलिस ने आरोप लगाया कि वह माओवादियों का बंदूक बक्सा में भर के छुपा कर रखा है. पुलिस ने उसके घर के ज़मीन को खोद दिया, बक्से की खोज में, फिर उसे गोमिया थाना ले जाया गया, जहां उसे 3 दिनों तक रखा गया और उसके बाद तेनुघाट जेल भेज दिया गया.
उसे फरवरी-मार्च 2014 में हुए एक माओवादी घटना के मामले पर गिरफ्तार किया गया था. घटना के दौरान वह अपने गांव में ही था. घटना की प्राथमिकी में वह नामजद आरोपी नहीं था, बाद में उसका नाम जोड़ा गया. हीरालाल गांव के मुद्दों को लगातार उठाता था. गांव में माओवादी आने से उनसे मुलकात होती थी लेकिन न वे माओवादी से जुड़ा था न इस घटना में उसकी कोई भूमिका थी और न ही वह अपने घर में माओवादियों का बंदूक रखा था.
उसे 2017 में उच्च न्यायालय से बेल मिला. अभी तक उसका लगभग 70-80 हजार रु न्यायिक लड़ाई में खर्च हुआ. उसे इसके लिए स्थानीय स्तर पर ऋण लेना पड़ा था. जेल से निकलने के बाद भी स्थानीय थाना, CRPF व स्पेशल ब्रांच द्वारा फोन कर परेशान किया जाता रहा. 2021 में वह अपने गांव के अन्य ग्रामीणों के साथ मिलकर उस क्षेत्र में लगने वाले हाईडल पावर प्लांट का विरोध कर रहा था, इस दौरान उसे लगातार स्थानीय पुलिस द्वारा परेशान किया जा रहा है. ऐसे कई और मामले है जिसकी जानकारी हमारे पास है.
UAPA क्या है इसे समझिए
UAPA(Unlawful Activities (Prevention) Act) वैसे लोगों पर लगाया जाता है. जो गैरकानूनी गतिविधि में संलिप्त होतें है. इस act में ज्यादातर वैसे लोगों पर कार्रवाई होती है जो देश विरोधी ताकतों के साथ मिल कर काम करते है. या फिर उसे समर्थन देते हो. UAPA की सबसे ज्यादा शक्ति NIA के पास है जो चाहे तो उस व्यक्ति का कुर्की जब्ती भी करवा सकता है.
UAPA कानून 1967 में बना था लेकिन 2019 में इसमें संशोधन कर और ताकतवर बना दिया गया. पहले इस कानून के जरिए किसी संगठन पर कार्रवाई किया जाता था. लेकिन अब सिर्फ शक के आधार पर ही किसी को भी आतांवादी घोषित किया जा सकता है.
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