बिहार(BIHAR): बेगूसराय के सिमरिया में जन्मे शब्दों के शिल्पकार ,खून में ओज की धारा भरने वाले, सोई जनता को जगा कर हुंकार करवाने वाले, सरकार को उखाड़ फेंकने की पृष्ठभूमि तैयार कर जनता को प्रेरित करने वाले शख्स का नाम दिनकर है. 24 अप्रैल राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की पुण्यतिथि है. भले ही दिनकर आज नहीं हों, लेकिन अपनी रचना के माध्यम से वे सुधि जनों में जिंदा हैं. रामधारी सिंह दिनकर की ख्याति देश विदेश में रही है. उनके सौम्य और शांत चेहरे के पीछे शब्दों की चिंगारी होती थी. अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ शब्द शस्त्र से दिनकर ने स्वतंत्रता सेनानियों को ऊर्जा दी और उन्हें मां भारती के लिए कुर्बानी देने के वास्ते प्रेरित किया. वे जनता के दर्द को भी समझते थे. इसलिए उन्हें जनकवि भी कहा गया.

वैसे तो छायावादोत्तर काल रामधारी सिंह ने अपनी कविताएं सामाजिक और राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में लिखीं. उनका जन्म 1908 में हुआ था. वे शिक्षाविद भी रहे. उनकी कविताओं में वह शक्ति थी कि लोग शब्द सरोकार के साथ ही उर्जान्वित हो जाते थे.

       "क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो,

        उसको क्या जो दंतहीन, विषहीन, विनीत,सरल हो"

कविता की इन पंक्तियों में कवि  यह कहना चाहते हैं कि दुश्मन को भी ताकतवर होना चाहिए तभी युद्ध का महत्व है और उसे क्षमादान करने का आनंद है.

               यह भी पंक्ति

            'सौभाग्य न सब दिन सोता है,

            देखें,आगे अब क्या होता है'

इस पंक्ति से यह प्रतीत होता है कि भाग्य पर विश्वास करने वाले की हमेशा निराश नहीं होते.

      'जब नाश मनुज पर छाता है पहले विवेक मर जाता है'

इस पंक्ति में रामधारी सिंह दिनकर ने कृष्ण के मुख से वह चेतावनी दी है जो आज भी हमेशा याद रहती है. जब कभी भी कोई दंभी कोई ऐसा निर्णय लेता है या काम करता है तो बरबस लोगों के मुंह से यह पंक्ति निकल आती है. राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की रचना रश्मिरथी, उर्वशी, कुरुक्षेत्र, परशुराम की प्रतीक्षा, मिट्टी की ओर, संस्कृति के चार अध्याय जैसी रचनाएं लब्ध प्रतिष्ठित हैं. दिनकर को साहित्य अकादमी को पुरस्कार भी मिला. 'उर्वशी' काव्य संग्रह के लिए 1972 में ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला. पुण्यतिथि पर रामधारी सिंह दिनकर को साहित्य जगत की ओर से ढेर सारी श्रद्धांजलि दी जा रही है.