रूह को छू जाते थे मजरूह सुल्तानपुरी के गीत, रोमांटिक गीत लिखने में महारत हासिल थी , पहले संगीतकार थे मजरूह सुल्तानपुरी जिन्हें दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से नवाजा गयाप पुण्यतिथि पर मजरूह सुलतानपुरी को श्रद्धांजलि


मुंबई- हिंदी सिने जगत के प्रसिद्ध गीतकार और शायर मजरूह सुल्तानपुरी की आज यानी 24 मई को पुण्यतिथि है.वे बेशक हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके लिखे गीत आज भी दर्शकों के बीच काफी पसंद किये जाते हैं.

उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर  हुआ था जन्म

गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी का जन्म 1 अक्टूबर 1919 को उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर में हुआ था. उन्होंने अपने नाम में सरनेम के रूप में  सुल्तानपुरी जोड़ लिया था. मजरूह सुल्तानपुरी को लिखने और मुशायरे सुनाने का बड़ा शौक था और इसलिए वह अक्सर मुशायरा कार्यक्रमों में हिस्सा लेने लगे.इसी दौरान साल 1945 में मुंबई में आयोजित एक मुशायरे के दौरान फिल्म प्रड्यूसर ए के करदार की नजर उन पर पड़ी.मजरूह के मिसरे सुनकर करदार उनके गुरु जिगर मुरादाबादी के पास पहुंच गए और फिल्मों के लिए गीत लिखने की सिफारिश करने को कहा. लेकिन मजरूह ने फिल्मों के लिए गीत लिखने से मना कर दिया, उस वक्त अदबी तबके में इस तरह के काम को  बहुत अच्छा नहीं माना जाता था.फिर बहुत समझाने पर मजरूह माने और कारदार की फिल्म ‘शाहजहां’ के लिए लिखा, ‘जब उसने गेसू बिखराए, बादल आए झूम के’.

सरकार विरोधी भी आरोप लगे 

साल 1949 एक ऐसा समय आया कि मजरूह सुल्तानपुरी को सरकार विरोधी माना जाने लगा.सरकार ने उन पर ऐसे आरोप लगाकर दो साल के लिए जेल में डाल दिया.जब मजरूह सुल्तानपुरी 2 साल जेल में रहे तो उनके परिवार की माली हालत बेहद खराब हो गई. ऐसे में बॉलीवुड के  ग्रेट शोमैन राज कपूर उनकी मदद के लिए आगे आए. लेकिन मजरूह सुल्तानपुरी ने उनसे मदद लेने से इंकार कर दिया.तब राज कपूर ने इसका भी तोड़ निकाल लिया और मजरूह से कहा कि वे उनके लिए एक गीत लिखें.इसके बाद उन्होंने फेमस गाना ‘एक दिन बिक जाएगा माटी के मोल’ लिखा और इस गीत के लिए राज कपूर ने उन्हें 1 हजार रुपया दिया.बाद में राज कपूर ने इस गाने का इस्तेमाल अपनी फिल्म ‘धरम करम’ में किया था.

चार दशकों तक बॉलीवुड पर किया राज

मजरूह सुल्तानपुरी चार दशक तक हिंदी सिनेमा में काम करने के दौरान उन्होंने ‘तेरे मेरे मिलन की ये रैना’, ‘हमें तुमसे प्यार कितना’, ‘गुम है किसी के प्यार में’, ‘एक लड़की भीगी भागी सी’, ‘ओ मेरे दिल के चैन’, ‘चुरा लिया है तुमने जो दिल को’, ‘इन्हीं लोगों ने ले लीन्हा दुपट्टा मेरा’, ‘बाहों में चले आओ जैसे एक से एक शानदार और सुपरहिट गाने लिखे थे. साल 1964 में फिल्म ‘दोस्ती’ के यादगार गाने ‘चाहूंगा मैं तुझे सांझ सवेरे’ के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फिल्मफेयर पुरस्कार दिया गया. वर्ष 1993 में मजरूह को प्रतिष्ठित दादासाहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया.वह बॉलीवुड के पहले ऐसे गीतकार थे जिन्हें इस अवॉर्ड से सम्मानित किया गया.

हिंदी फिल्मों को दिया था एक नया आयाम

हिंदी सिनेमा को एक नया आयाम देने वाले मजरूह सुल्तानपुरी ने अपने समय में लगभग हर बड़े संगीतकार के साथ काम किया. मजरूह सुल्तानपुरी के लिखे गीत आज भी दर्शकों के बीच बड़े शौक से सुने जाते हैं. हिंदी सिनेमा में एक से बढ़कर एक नग़मे और मुशायरे देने वाले मजरूह सुल्तानपुरी का 81 साल की उम्र इंतकाल हो गया. पुण्यतिथि के मौके पर बॉलीवुड और आम संगीत प्रेमी ने नमन कर रहे हैं.