दुमका(DUMKA): ईडी यानी प्रवर्तन निदेशालय का ख़ौफ़ क्या होता है उसकी एक बानगी झारखंड की उपराजधानी दुमका में देखने को मिल रहा है. खनिज संपदा के अवैध उत्खनन और परिवहन को लेकर समय समय पर समाचार पत्रों की सुर्खियों में रहने वाला दुमका जिला इन दिनों प्रशासनिक कार्रवाई से चर्चा में है. मनरेगा घोटाला को लेकर निलंबित आईएएस पूजा सिंघल से प्रवर्तन निदेशालय इन दिनों पूछ-ताछ कर रही है. पूछ-ताछ का दायरा मनरेगा घोटाला से आगे बढ़ाते हुए झारखंड में हो रहे खनिज संपदा के दोहन तक पहुंच गयी है. तभी तो ईडी ने झारखंड के जिन 3 जिलों के खनन पदाधिकारी से पूछ-ताछ की, उसमें दुमका के डीएमओ भी शामिल है. डीएमओ को समन जारी होते ही जिले के अधिकारी सतर्क हो गए हैं. इसी बीच 16 मई को एक खबर समाचार पत्रों की सुर्खियां बनी. हाई कोर्ट के एक अधिवक्ता ने ईडी को पत्र लिख कर दुमका में संचालित कोयला, गिट्टी और बालू के अवैध खनन और परिवहन को लेकर निलंबित आइएइस पूजा सिंघल और जिला प्रशासन की क्या संलिप्तता है, इसकी जांच का अनुरोध किया गया. जिसमें पुलिस के अधिकारी पर लगे आरोप की जांच का भी अनुरोध किया गया.
इस पत्र का असर कहें या ईडी का खौफ, 16 मई को यह पत्र सार्वजनिक हुआ और 16 मई की रात ही दुमका पुलिस ने जिले के चर्चित कोयला माफिया कलीमुद्दीन अंसारी उर्फ कलीम मिया को गिरफ्तार कर लिया. 17 मई को उसे कोर्ट में प्रस्तुत करने के बाद न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया.
कौन है कोयला माफिया कलीमुद्दीन अंसारी?
अब हम आपको बताते है जेल भेजे गए कोयला माफिया कलीमुद्दीन अंसारी के बारे में. शिकारीपाड़ा थाना क्षेत्र के खाडूकदमा निवासी कलीमुद्दीन अंसारी का नाम बार-बार कोयला के अवैध खनन से लेकर परिवहन तक मे आता रहा. दुमका के वर्तमान डीसी रविशंकर शुक्ला ने योगदान के बाद से ही जिले में संचालित अवैध खनन और परिवहन पर अंकुश लगाने का प्रयास किया. जिला टास्क फोर्स की बैठक में डीसी ने अधिकारियों को अवैध खनन और परिवहन रोकने का सख्त निर्देश दिया. निर्देश के बाद डीसी शांत नहीं बैठे. खुद उग्रवाद प्रभावित शिकारीपाड़ा, काठीकुंड और गोपीकांदर प्रखंड के सुदूरवर्ती क्षेत्र पहुंचकर अवैध कोयला और पत्थर खदान के साथ-साथ बालू घाट पर छापा मारा. जब डीसी हरकत में आएं तो जिला टास्क फोर्स द्वारा भी ताबड़तोड़ छापेमारी शुरू हो गयी. हर जगह अवैध कार्य मे कलीमुद्दीन अंसारी सहित कई अन्य का नाम सामने आया. प्राथमिकी भी दर्ज हुई, लेकिन अवैध कारोबार पर क्षणिक अंकुश ही लगा.
दुमका डीएमओ का पूर्व बयान चर्चा में
इसी बीच कुछ महीने पूर्व दुमका डीएमओ का एक बयान अचानक चर्चा में आ गया. शिकारीपाड़ा में संचालित अवैध पत्थर खदान में छापेमारी करने पहुचे डीएमओ ने मीडिया को बयान दिया कि खनन विभाग अपना कार्य कर रही है लेकिन दुमका पुलिस का अपेक्षित सहयोग नहीं मिलता. डीएमओ के इस बयान पर जब संथाल परगना प्रक्षेत्र के डीआईजी से सवाल किया गया तो उन्होंने पुलिस का बचाव करते हुए कहा कि अपने दायरे में रहकर पुलिस कार्य कर रही है. वैसे तो यह बयान भी महीनों पुराना है लेकिन वर्तमान समय मे काफी प्रासंगिक लगता है.
डीसी के निर्देश पर खनन टास्क फोर्स की टीम द्वारा क्षेत्र में लगातार कार्रवाई हुई. थाना प्रभारी नवल किशोर सिंह पर कार्य मे लापरवाही का आरोप लगा. सूत्रों की मानें तो इस बाबत 11 फरवरी को ही खनन टास्क फोर्स के सदस्यों ने संयुक्त रूप से हस्ताक्षर युक्त पत्र एसपी को समर्पित किया. पत्र ठंडे बस्ते में डाल दिया गया. 17 मई को अचानक शिकारीपाड़ा थाना प्रभारी नवल किशोर सिंह को निलंबित करते हुए विभागीय कार्रवाई शुरू कर दी गई है. निलंबन का आधार डीसी का वह पत्र बनाया गया, जिसमें डीसी ने एसपी को पत्र लिखकर यह जानकारी दी. थानेदार अपने कार्य के प्रति लापरवाह है. डीएफओ अभिरुप सिन्हा द्वारा कलीमुद्दीन सहित 7 कोयला माफिया को चिन्हित करते हुए सभी को जिला बदर करने के लिए डीसी को पत्र प्रेषित किया. डीएफओ के पत्र के आलोक में डीसी ने 6 मई को दो कोयला माफिया को जिला बदर करने संबंधी आदेश निर्गत किया. इसकी जानकारी भी कल 17 मई को तब हुई जब पूरे मामले में डीएफओ से सवाल किया गया. उन्होंने स्पष्ट कहा कि 6 मई को ही डीसी का पत्र प्राप्त हो गया है. जिसमें दो कोयला माफिया को 17 मई से 1 या 2 महीने के लिए जिला बदर करने का निर्देश दिया गया है.
दुमका जिला प्रशासन से जवाब चाहती है जनता
अब हम आपको बताते हैं हाई कोर्ट के वकील द्वारा ईडी को लिखे गए पत्र के आलोक में कुछ ऐसे सवाल जिसका जवाब दुमका की जनता जिला प्रशासन से जानना चाहती है. जब फरवरी में ही खनन टास्क फोर्स ने थाना प्रभारी के खिलाफ लिखित रिपोर्ट एसपी को सौंपा तो कार्रवाई में इतना विलंब क्यों? कलीमुद्दीन सहित कोयला माफिया गैंग के सभी सदस्यों को चिन्हित करते हुए जब पूर्व में ही प्राथमिकी दर्ज हो चुकी थी तो इतने लंबे समय तक उसकी गिरफ्तारी क्यों नहीं हुई? अवैध खनन हो या परिवहन रोकने की जिम्मेदारी क्या सिर्फ पुलिस प्रशासन की है? शिकारीपाड़ा में स्टोन चिप्स ट्रक पर लोड होता है और बगैर चालान के ओवरलोडेड ट्रक लगभग 100 किलोमीटर दुमका जिला की सड़कों को पार कर बिहार या अन्य प्रांतों में प्रवेश कर जाती है तो इस ओवरलोडेड ट्रक पर जिला परिवहन विभाग की नजर क्यों नहीं पड़ती? हाल के दिनों में परिवहन विभाग कभी नगर थाना के सामने तो कभी मुफस्सिल थाना के सामने बाइक चेकिंग अभियान चलाकर ही अपने कर्तव्य का अंत क्यों कर लेती है? क्या सिर्फ बाइक चालकों से ही फाइन वसूल कर सरकार का खजाना भरा जा सकता है? जिले की सड़कों से गुजर रही खनिज संपदा का चालान है या नहीं इसकी जांच खनन विभाग क्यों नहीं करती? हाल के महीनों में देखा जाए तो अवैध खनन से संबंधित है लगभग 10 मामले विभिन्न थानों में दर्ज हुए हैं और अगर आंकड़ा देखा जाए तो सिर्फ शिकारीपाड़ा प्रखंड में ही सैकड़ों अवैध खदान का संचालन हो रहा है. तो अभियान चलाकर तमाम अवैध खदान संचालकों पर एक साथ प्राथमिकी क्यों नहीं दर्ज होती? हाई कोर्ट के वकील द्वारा ईडी को पत्र लिखने के बाद जिला प्रशासन की जो कार्यवाही 24 घंटे के अंदर हुई इसे महज संयोग कहा जाए या ईडी का खौफ, यह तो पता नहीं लेकिन अगर सचमुच जिले में अवैध खनन और परिवहन को रोकना है तो सभी विभागों को एक साथ मिलकर काम करना होगा. एक विभाग दूसरे विभाग के माथे पर बेल फोड़ कर अपने आप को कब तक बचा सकता है.
रिपोर्ट: पंचम झा(दुमका)
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