गोड्डा (GODDA): झारखंड एक आदिवासी राज्य है और आदिवासी समाज के उत्थान के लिए कई तरह के नियम और कानून भी बनाए गए हैं. हम किसी भी समाज के उत्थान की बात करते तो सबसे पहले उस समाज की महिलाओं के उत्थान और विकास पर जोर दिया जाता है. लेकिन यदि आपको कहा जाए कि झारखंड की आदिवासी महिलायें खासकर संथाल की आदिवासी महिलायें समाज में विकास की रेस में काफी पीछे रह गई हैं तो?, नहीं, हम ऐसा बिल्कुल भी नहीं कह रहे. बल्कि ये कहना है गोड्डा कॉलेज के समाजशास्त्र विभाग की व्याख्याता रजनी मुर्मू का. रजनी मुर्मू वैसे पेशे से तो लेक्चरर हैं लेकिन आदिवासी महिलाओं के कल्याण के लिए वे लगातार संघर्षशील रही हैं. द न्यूजपोस्ट से बात करते हुए उन्होंने आदिवासी महिलाओं से जुड़े कई मामलों पर सवाल खड़ा किया है. हम उन विभिन्न मुद्दों पर आपको रजनी मुर्मू की बात सुनाएंगे.

क्या कहती हैं रजनी मुर्मू ?

रजनी मुर्मू कहती है कि हिन्दू महिलाओं को उनकी पैतृक संपत्ति में अधिकार मिलता है जबकि आदिवासी महिलाओं के लिए ऐसे किसी अधिकार का जिक्र कानून में नहीं है. साथ ही वे आगे कहती है कि महिलाओं के काम करने की आजादी का प्रलोभन देकर आदिवासी महिलाओं से ज्यादा काम लिया जाता है और उनका शोषण किया जाता है. गैर आदिवासी पुरुषों से शादी करने पर आदिवासी महिलाओं को मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है. महिलाओं के पूजा पाठ पर बताते हुए रजनी कहती है कि आदिवासी महिलाओं को पूजास्थल आदि पर पूजा करने का अधिकार नहीं है. इसलिए कुछ आदिवासी महिलायें हिन्दू धर्मस्थलों पर पूजा करने जाती हैं. आदिवासी महिला अगर किसी गैर-आदिवासी पुरुष से बात भी कर लें तो उनके बारे में गलत-गलत अवधारणाएँ बनाई जाने लगती हैं. रजनी इसे ट्रोल का नाम देती हैं. रजनी बताती है कि अंधविश्वास में आकर कई आदिवासी महिलाओं की हत्या कर दी जाती है. लोग अक्सर ओझा और तांत्रिक के चक्कर में आकर औरतों को डायन मानने लग जाते हैं.

आदिवासी महिलाओं के बारे में जो रजनी बताती हैं अगर वो सत्य है तो ऐसी स्थिति के सुधार के लिए कठोर कदम उठाने चाहिए. आदिवासी महिलाओं की हालत बेहतर होनी चाहिए और सभी को चाहे वो पुरुष हो या महिला, आदिवासी हो या गैर आदिवासी, सभी को समान हक मिलना चाहिए.