धनबाद(DHANBAD):   हमारा झारखंड अब युवा हो गया है.  15 नवंबर 2025 को यह राज्य 25 वर्ष का हो जाएगा.  राज्य के युवा होने के साथ ही चुनौतियां भी बढ़ी है. युवा झारखंड की महत्वाकांक्षा भी बढ़ी  है. युवा झारखंड अब आश्वासन नहीं, रिजल्ट मांग रहा है. आगे के वर्षो का रोड मैप मांग रहा है.   आज के युवा सबसे अधिक ध्यान अपनी शिक्षा और रोजगार पर केंद्रित किये हुए है.  जाहिर है- युवा झारखंड भी रोजगार और शिक्षा के लिए हाथ पांव मार रहा है.  रोजगार के बाद सबसे बड़ी जरूरत स्वास्थ्य की होती है.  झारखंड में स्वास्थ्य व्यवस्था भी एक चुनौती है.  सुखद बात यह है कि   झारखंड में  अस्थिर सरकार होने की समस्या 2014 के बाद से खत्म हो गई है.  2014 में रघुवर दास ने मुख्यमंत्री की शपथ ली थी और 5 साल तक उन्होंने सरकार चलाया था. 

झारखंड  में अब चले लगी है स्थिर सरकारें,क्या हो रहे फायदे  
 
फिर 2019 में हेमंत सोरेन के नेतृत्व में गठबंधन की सरकार बनी (वह भी कुछ समय के लिए अलग कर दिया जाए) तो लगभग 5 साल चली.  2024 में फिर हेमंत सोरेन के नेतृत्व में प्रचंड बहुमत के साथ महागठबंधन की सरकार बनी है.  ऐसे में सरकार को किसी भी फैसले के लिए बहुत परेशानी नहीं उठानी पड़ सकती है.  यह बात भी सच है कि शिक्षा के क्षेत्र में सुधार हुआ है ,लेकिन अभी बहुत कुछ करना बाकी है.  वर्तमान शिक्षा व्यवस्था के भरोसे झारखंड को छोड़ा  नहीं जा सकता है.  एक आंकड़े के अनुसार झारखंड में लगभग 33 विश्वविद्यालय है.  झारखंड में एक केंद्रीय विश्वविद्यालय, 12 राज्य विश्वविद्यालय, 18 राज्य निजी विश्वविद्यालय और दो डीम्ड  विश्वविद्यालय है.  इसके अलावा एक राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय और सात  केंद्रीय swayyat संस्थान भी है. 

झारखंड के प्रमुख विश्वविद्यालय, इतनी है सरकारी स्कूलों की संख्या 

राँची विश्वविद्यालय, राँची,बिरसा कृषि विश्वविद्यालय, राँची,भारतीय खनि विद्यापीठ विश्वविद्यालय, धनबाद,विनोबा भावे विश्वविद्यालय, हजारीबाग,सिद्धू कान्हू विश्वविद्यालय, दुमका,नीलांबर पीतांबर विश्वविद्यालय, मेदिनीनगर,बिनोद बिहारी महतो कोयलांचल विश्वविद्यालय, धनबाद,अर्का जैन विश्वविद्यालय, जमशेदपुर,डॉ. श्यामा प्रसाद मुख़र्जी विश्वविद्यालय, राँची,कोल्हान विश्वविद्यालय, चाईबासा,श्रीनाथ विश्वविद्यालय जमशेदपुर के नाम उल्लेखनीय है.  जानकारी के अनुसार राष्ट्रीय शिक्षा अभियान के तहत झारखंड के दो प्रमुख कॉलेज को विश्वविद्यालय का दर्जा दिया गया है.  रांची कॉलेज को अपग्रेड कर श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय बनाया गया है.  विमेंस कॉलेज ,जमशेदपुर को भी यूनिवर्सिटी का दर्जा दिया गया है.  इसके अलावा छोटानागपुर लॉ कॉलेज समेत लॉ  कॉलेज को ऑटोनोमस का दर्जा मिला है.  25 साल पहले झारखंड में कुल 23000 स्कूल थे, आज इसकी संख्या बढ़कर 44,000 हो गई है. 

उपलब्धियां है तो कमियां भी रहती चर्चे में 
 
यह बात भी सच है कि झारखंड ने अपने 25 साल की आयु में शिक्षा के क्षेत्र में कई उपलब्धियां भी हासिल की है.  सरकारी स्कूलों की संख्या बढ़ी  है.  विद्यार्थियों का नामांकन दर भी सुधारा  है.  यूनिवर्सिटी और टेक्निकल संस्थाओं की संख्या बढ़ी है.  शिक्षा के बजट में भी बढ़ोतरी हो रही है, लेकिन इस प्रगति के साथ-साथ शिक्षकों की भारी कमी प्राथमिक स्तर पर कमजोर गुणवत्ता और बुनियादी ढांचे की चुनौतियां अभी बनी हुई है.  लेकिन शिक्षकों की कमी राज्य की शिक्षा व्यवस्था को प्रभावित कर रही है.  प्राथमिक और मध्य विद्यालयों में 50,000 शिक्षकों के पद रिक्त है.  20,000 से अधिक पद कक्षा 1 से 5 के लिए और 29000 से अधिक पद 6 से 8 के लिए खाली है.  अभी भी झारखंड के हजारों स्कूल बिना स्थाई शिक्षक के चल रहे है. 

झारखंड से उच्च शिक्षा के लिए जारी है पलायन 
 
झारखंड में उच्च शिक्षा के लिए भी कई विश्वविद्यालय और कॉलेज स्थापित किए गए हैं, लेकिन अभी भी झारखंड से 10th और 12th के बाद उच्च शिक्षा के लिए बच्चों का पलायन जारी है.  शिक्षा के क्षेत्र में भारी मात्रा में राशि दूसरे प्रदेशों को जा रही है.  शिक्षा को प्रभावकारी बनाने के लिए मॉडल कॉलेज और महिला कॉलेज की स्थापना की गई है.  B.Ed कॉलेज की संख्या में तो  बढ़ोतरी दर्ज की गई hai.  गरीब बच्चों को निजी स्कूलों की तर्ज पर शिक्षा देने के लिए  स्कूल आफ एक्सीलेंस चलाए जा रहे है.  फिर भी शिक्षा की प्रगति को पर्याप्त नहीं कहा जा सकता  है.  स्कूल भवनों का हाल है कि कहीं  भवन ढह  रहे हैं तो कहीं स्कूलों में शिक्षक नहीं है.  कहीं पानी की व्यवस्था नहीं है तो कहीं फर्नीचर नहीं है.  यह कहना गलत नहीं होगा कि झारखंड के स्कूलों में पठन-पाठन के अलावा परीक्षा में बेहतर रिजल्ट के लिए प्राइवेट कोचिंग पर निर्भरता बढ़ी है. 

आंकड़े बताते है कि 40% स्कूली बच्चे कोचिंग की मदद लेते है
 
एक आंकड़े के मुताबिक लगभग 40% स्कूली बच्चे स्कूल के अलावा प्राइवेट ट्यूशन या कोचिंग की मदद लेते है.  यह भी एक चिंताजनक आंकड़ा है.  कहा जा सकता है कि शिक्षा के क्षेत्र में 25 सालों में झारखंड खाया अधिक और पाया है कम.  शिक्षा के बाद युवा झारखंड सबसे अधिक स्वास्थ्य की चिंता कर रहा है.  यह  अलग बात है कि झारखंड में मेडिकल कॉलेज की संख्या बढ़ी है.  कॉलेज अब 3 से बढ़कर 9 हो गए है.  एमबीबीएस की सीट  भी 1000 पार  कर गई है.   कैंसर जैसी बीमारियों का इलाज भी झारखंड में शुरू हो गया है.  जिस समय झारखंड का गठन हुआ था, उस समय तीन ही मेडिकल कॉलेज तब का राजेंद्र मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल, रांची, तब का पीएमसीएच, धनबाद और एमजीएम मेडिकल कॉलेज, जमशेदपुर पर ही डॉक्टर बनाने  की जिम्मेवारी थी.  एमबीबीएस की सीट  महज  350 थी, लेकिन अब यह बढ़ गई है. 

खाट पर मरीजों को ले जाने की तस्वीर दिख ही जाती है 
 
यह अलग बात है कि अभी भी झारखंड के सुदूर इलाकों में खाट पर मरीजों को ले जाने की तस्वीर कभी -कभार  देखने को मिल जाती है.  सरकारी अस्पतालों की चिकित्सा व्यवस्था भी दुरुस्त नहींहै.  दवा की कमी है.  धनबाद के मेडिकल कॉलेज अस्पताल में दवा  का टोटा  है. अभी हाल ही में झारखंड के स्वास्थ्य मंत्री  रिम्स गए थे.  तो उन्होंने अपनी नंगी आंखों से देखा कि किस तरह से दवा के लिए मरीजों को परेशानी झेलनी पड़ती है.  यह अलग बात है कि राजनेताओं को सर्दी -खांसी होने पर भी वह झारखंड से बाहर इलाज को चले जाते है.   झारखंड के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स में तक भर्ती नहीं होते है.  यह इस बात का सबूत है कि झारखंड के स्वास्थ्य व्यवस्था पर राजनेताओं को भी  भरोसा नहीं है.  ऐसे में स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को दुरुस्त करना राज्य सरकार की सबसे बड़ी चुनौती होगी. 

झारखंड से पलायन की दर नहीं कम रही 

झारखंड की बेरोजगारी दर 17% पार कर चुकी है, जो राष्ट्रीय औसत से तीन गुना अधिक है. हर साल लाखों युवा रोजगार की तलाश में दिल्ली, महाराष्ट्र, गुजरात और तमिलनाडु जैसे राज्यों में पलायन कर रहे हैं. JSSC-CGL की जनवरी और सितंबर 2024 की परीक्षाएं पेपर लीक के चलते रद्द हुईं. उत्पाद सिपाही भर्ती में नियमावली बदलने के कारण भर्ती प्रक्रिया ठप हो गयी. इसके खिलाफ आंदोलन में 12 अभ्यर्थियों की असमय मौत हुई. 7900 से अधिक प्राथमिक सरकारी विद्यालयों में केवल एक शिक्षक है, जहां 3.8 लाख बच्चे पढ़ते हैं. 17850 शिक्षक पद और 1.58 लाख से अधिक सरकारी पद खाली पड़े हैं. उच्च शिक्षा संस्थानों में 2008 के बाद से नियमित फैकल्टी नियुक्ति नहीं हुई. 4000 से अधिक शिक्षकों और कर्मचारियों के पद रिक्त हैं. निजी कंपनियों में केवल 21% रोजगार झारखंडियों को मिला है

रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो