टीएनपी डेस्क (Tnp desk):- इतिहास के पन्नों को पलटे तो जमीन को लेकर ही न जाने कितने रक्तपात हुए, कितनी लड़ाईया हुई,कितने परिवार बिखरे और न जान कितने लोगों ने अपनी जान गंवाई और आज भी कही न कहीं लोग जान गंवा रहें हैं. आज भी जमीन को लेकर जंग और खून-खराबा जारी है, वक्त बदला लेकिन, जमीन की महत्ता और कीमत नहीं घटी .
मेरे देश की धरती सोना उगले-उगले जैसे मशहूर गीत भी इसकी तस्दीक करती है. जमीन के खातिर मर मिटने और कुर्बानी के लिए अभी भी लोग तैयार है. क्योंकि मसला भूमि का है. जो लोगों के लिए दिलो जान से प्यारी है.
जमीन घोटाले के आरोप में हेमंत गये जेल
झारखंड में भी इसी जमीन के घोटाले के आरोप में हेमंत सोरेन को अपने मुख्यमंत्री की कुर्सी से इस्तीफा देना पड़ा. अभी ईडी के शिकंजे में उनसे जवाब-तलब इसी जमीन के खातिर हो रहा है. उनकी राते जेल में कट रही है. सवाल यहां ये है कि जल,जंगल,जमीन ,नदियों और पहाड़ों की धरती में जमीन को लेकर जब एक पूर्व मुख्यमंत्री गिरफ्तार हो गये , तो फिर राज्य में इसी जमीन के चलते न जाने कितनों ने जान गंवाई, खून बहे और लड़ाईयां की होगी. सालों साल निकलते ये खूनी आंकड़े डरवाने हैं, जो डराते है कि जमीन के चलते लोग अपनी बेशकीमती जिंदगी गंवा रहें हैं. इसमे भूममाफिया, अपराधी , प्रशासन और पुलिस का गठजोड़ समय-समय पर आते रहा हैं. रांची के इसी जमीन घोटले में पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत तो जेल में बंद हैं ही, उनसे पहले 14 लोग पहले ही सलाखों के पीछे पहुंचे हुए हैं. जिसमे रांची के पूर्व उपायुक्त छविरंजन भी हैं. जो अपनी बेगुनहाई के लिए हर दिन जद्दोजहद औऱ लड़ाई लड़ रहें हैं.
राज्य के भूमाफियाओं को किया गया चिन्हित
पिछले साल अक्टूबर महीने में झारखंड में जमीन के चलते होने वाली विवादों को रोकेन के लिए पुलिस ने राज्यभर में 3213 भूमाफिया को चिन्हिंत किया. इसमे सबसे ज्यादा 1100 जमीन माफिया हजारीबाग रेंज के हैं. दूसरे स्थान पर रांची रेंज है, जहां जमीन माफिया की संख्या 889 औऱ तीसरे स्थान पर पलामू रेंज है, जहां पुलिस ने 735 भूमाफियाओं को चिन्हिंत किया है.
जमीन को लेकर लगातार खून-खराबा होता रहा है , झारखंड के वजूद में आने के बाद तो सिलसिला रुका नहीं, बल्कि ओर तेज ही हुआ, चाहे सरकारे किसी भी पार्टी की आई हो, जमीन के धंधे में काफी लोगों ने वारे-न्यारे किए . जमीन से दौलत तो सफेदपोशों ने भी बनाई है. समय-समय पर उनके दामन पर लगे दाग भी उजागर होते रहें हैं.
जमीन का कारोबार काफी कुख्यात रहा है. जहां जान चले जाना मानों आम बात हो गयी है. इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि झारखंड बनने बाद सिर्फ राजधानी रांची में ही जमीन के चलते 1780 से ज्यादा लोगों की हत्याएं हो गयी. अंदाजा लग सकता है कि जब ये हाल राज्य की राजधानी का है, तो राज्य के अन्य जिलों, प्रखंडों का क्या हाल होगा.
क्या है आखिर जमीन का खेल
दरअसल, यहां जनरल और सीएनटी एक्ट से प्रभावित जमीन की बिक्री सबसे अधिक होती है. इसके चलते जमीन को विवादित बनाने का खेल चलता है. इसकी वजह से जमीन पर कब्जा दिलाने और कब्जा करने का खेल खूब फलता-फूलता है. इस खेल औऱ धंधे में अंचल के कर्मचारियों और पदाधिकारियों की भी मिलीभगत रहती है. इस खेल में पुलिस का किरदार भी रहता है, क्योंकि संबंधित थाने को आमूमन विवाद के बारे में जानकारी रहती है.
खेल ये होता है कि एक ही जमीन की रजिस्ट्री कई लोगों के साथ हुई रहती है. इसके पीछे वजह ये है कि ग्रामीण क्षेत्रों में कई पीढ़ी के बीच कानूनी बंटवारा नहीं हो पाता.इसके चलते जमीन का कोई भी हिस्सेदार किसी भी भूखंड को बेच देता है. जब खरीदार इस पर कब्जा करने जाते हैं, तो फिर अन्य हिस्सेदार इसका विरोध करत हैं. इसके बाद विवाद इतना बढ़ता है कि हत्या तक की नौबत आन पड़ती है.
एक जमीन को कई दलाल बेचते हैं !
यह भी देखा गया है कि एक जमीन को कई दलाल कई लोगों को बेच देते हैं. इस काम में रजिस्ट्री ऑफिस के पादाधिकारियों और कर्मचारियों की भी मिलीभगत होती है. इनकी मदद से आदिवासी, गैर मजरुआ जमीन की रजिस्ट्री भी आसानी से हो जाती है.
जमीन लेने के बाद खरीदर म्यूटेशन के लिए अंचल कार्यालय जाते हैं. यहां जो सबसे अधिक चढ़ावा देता है, उसके नाम से म्यूटेशन हो जाता है. म्यूटेशन के पश्चात जमीन पर दबंगई से कब्जा किया जाता है. इसमे स्थानीय , जमीन दलाल , नेता और पुलिस की भूमिका रहती है.
संपत्ति विवाद में होने वाली हत्याओं में आधे से अधिक जमीन विवाद के कारण होती है.
जमीन के घंधे में अपराधियों की एंट्री
जमीन के घंधे में खून खराबा और हत्या की वारदातों में इजाफा के पीछे इस धंधे में अपराधियों का घुसना भी है. छंटे हुए अपराधियों को इसमे बेशुमार दौलत दिखी, तो इसे ही पेशा बना लिया , छोटे से बड़े अपराधियों के लिए जमीन का कारोबार एक मुफीद धंधा दिखा. इसका नतीजा ये रहा कि छुट भैये से लेकर बड़े अपराधी जेल से छुटने के बाद इसे धंधे में मशगूल हो गये. जमीन माफियाओं के लिए जमीन कब्जा करवाने का काम करने लगे. कई तो व्यवस्थित तरीके से प्रोजेक्ट चलवा रहें हैं.
जमीन विवाद में होने वाली वारदातों को रोका जा सकता है. अगर कानून के रखवाले औऱ पालन करवाने वाले यानि प्रशासन साफ सुधरे तरीके से नियमता अपना काम करें, तो फिर दलालों, भू माफियाओं, दंबंगों, अपराधियों की चलती नहीं चलेगी . इसके बाद जमीन के चलते जो जान जा रही है या फिर विवाद और झगड़े हो रहे हैं. इस पर लगाम लगेगा.
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