टीएनपी डेस्क (Tnp desk):- जल,जंगल, पहाड़ और खनीज संपदा से भरपूर झारखंड को कुदरत ने तो सबकुछ दिया है. लेकिन, इस प्रदेश की बदकिस्मती कहिए कि इसके वजूद में आने के बाद से ही राजनीतिक अस्थिरता के साथ ही गवर्नेस में भी खालीपन औऱ टोटा लगा रहता है. एक-एक आईएएस अफसरों के जिम्में कई विभाग रहते हैं. काम का बोझ और तनाव के चलते कार्यपालिका जुझती रहती है. जिसके चलते विकास की डगर बेहद अहिस्ते-अहिस्ते पग भरती है. आज भी हालत वैसे ही राज्य में बनीं हुई है. जहां एक के जिम्मे कई काम हैं
झारखंड नहीं आना चाहते आइएएस अफसर
विडंबना देखिए केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति पर तैनात झारखंडट कैडर के आइएएस अफसर झारखंड आना मुनासिब नहीं समझते. फिलहाल टॉप लेवल के आधा दर्जन आइएएस जो केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति के पांच साल कीा समय गुजार चुके हैं . नियम के मुताबिक पांच साल की अवधि पूरी होने के बाद वापस अपने कैडर में योगदान देना होता है. लेकिन, ये अफसर अब झारखंड में योगदान नहीं दे पायेंगे. आधा दर्जन आइएएस इसी साल रिटायर हो जायेंगे.
आकड़े अगर देखे तो झारखंड में आइएएस के 224 पद स्वीकृत हैं, जिसमें 182 अफसर कार्यरत हैं. जबकि, 42 पद अब तक रिक्त पड़े हैं. इससे अंदाजा लग सकता है कि कितना बोझ यहां कार्यरत अफसरों पर होगा.
पीएम मोदी को तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमंत ने लिखा था पत्र
इसे लेकर पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन , जो मौजूदा वक्त में जमीन घोटाले के आरोपों में जेल में है. उन्होंने इस मामले मे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिख कर कहा था कि झारखंड सरकार को जो केंद्र से एक प्रस्ताव मिला है, जिसमें आईएएस (कैडर) नियम, 1954 में कुछ संशोधन प्रस्तावित किए गए थे, उसमें झारखंड सरकार ने असहमति जताई थी. पूर्व मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर अखिल भारतीय सेवा से जुड़े अफसरों को बिना राज्यों की रजामंदी और एनओसी लिए पदस्थापित करने का विरोध किया था. जबकि केंद्र सरकार ने आईएएस कैडर नियमों में संशोधन प्रस्तावित किया है, जो उसे राज्य सरकारों की आपत्तियों को दरकिनार करते हुए अधिकारियों को केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर तैनात करने में सक्षम बनाएगा.
दिल्ली में ही रहना चाहते हैं अफसर !
ऐसे कई अफसर थे जिन्होंने झारखंड आने की बजाए प्रतिनियुक्ति में ही रहना मुनासिब समझा . आइएएस ज्योत्सना वर्मा रे तो केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति में गई. झारखंड वापसी के लिए राज्य सरकार ने बार-बार रिमांइर भी भेजा. लेकिन, कोई जवाब नहीं मिला. आखिर में ज्योत्सना को सरकार ने बर्खास्त कर दिया. इसी तरह ही आइएएस डॉ स्मिता चुग भी रिटायर हो गई. लेकिन, अपने कैडर वापस नहीं आई. आइएएस राजीव कुमार ने भी पांच साल से भी अधिक अवधि से केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति पर रहे. लेकिन, वे झारखंड नहीं आए. इसी तरह टी नंदकुमार और एके चुग ने भी झारखंड की बजाए दिल्ली में ही रहना उचित समझा .
अपना कैडर नहीं आने के साथ-साथ अफसरों ने वीआरएस लेने में भी आगे रहे. जिनमे मुनिगला, विमल कीर्ति सिंह, जेबी तुबिद, संत कुमार वर्मा और बीके चौहान के नाम शामिल हैं. इधर, अपर मुख्य सचिव केके खंडेलवाल ने भी वीआरएस के लिए आवेदन दिया था, लेकिन अंतिम समय में उन्होंने अपना आवेदन वापस ले लिया था.
आखिर क्यों नहीं आना चाहते हैं झारखंड ?
सवाल है कि अपने कैडर झारखंड में अफसर क्यों नहीं आते?, आखिर इसके पीछे क्य वजह है ?और क्यों इनमे दिलचस्पी गायब हो गयी है. तो कई बाते सामने आती हुई दिखाई पड़ती है. जिनमे हर बार सिस्टम में बदलाव से प्रदर्शन पर भी असर पड़ता है. इसके साथ ही झारखंड में काम करने से उतना एक्सपोजर भी नहीं मिलता, जितना राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में मिलता है. दूसरी वजह ये भी सामने आती है कि झारखंड में सुझावों पर भी अमल नहीं होता और उनकी बातों को गंभीरता से नहीं सुनी जाती है. जल्दी-जल्दी होने वाले ट्रांसफर पोस्टिंग से भी उनके प्रदर्शन पर पर्क पड़ता है. बार-बार तबादले के चलते नये कामकाज को समझने में भी एक- दो महीने का समय लगा जाता है. जिसके चलते भी निर्णय लेने में परेशानी होती है.
इस साल रिटायर होने वाले अफसर
केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति में तैनात तकरीबन आधा दर्जन झारखंड कैड के आईएएस अफसर इसी साल रिटायर कर रहे हैं. जिनके लिस्ट इस प्रकार है.
राजीव गौबा : कैबिनेट सेक्रेट्री, सेवानिवृति की तारीख 30-08-2024
एनएन सिन्हा : सचिव इस्पात मंत्रालय, सेवानिवृति की तारीख 31-07-2024
एमएस भाटियाः चेयरमैन कैबिनेट सेक्रेट्रेरियटः सेवानिवृति की तारीख 30-09-2024
एसकेजी रहाटेः सेक्रेट्री मिनिस्ट्री ऑफ लॉ एंड जस्टिसः सेवानिवृति की तारीख 30-04-2024
सुरेंद्र सिंहः एडिशनल सेक्रेट्री, मिनिस्ट्री ऑफ सोशल जस्टिसः सेवानिवृति की तारीख 30-06-2024
झारखंड सरकार में ब्यूरोक्रेसी में खालीपन से इसका असर तो विकास पर सही मायने में पड़ता है. सवाल यहां यही है कि आखिर झारखंड कैडर के अफसर क्यों नहीं आना चाहते हैं ?. आखिर इसकी वजह क्या है ?. इसका हल ढूंढना और उन कमियों को कैसे दूर किया जाए. इस पर काम करने की जरुरत है. क्योंकि बगैर इनके राज्य के विकास का खाका नहीं खींचा जा सकता . इसके साथ ही लोकतंत्र के चार स्तंभों में कार्यपालिका भी एक बड़ा स्तंभ है. जिसके बिना इसके चलने की बात सोची भी नहीं जा सकती.
रिपोर्ट- शिवपूजन सिंह
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