टीएनपी डेस्क(TNP DESK):दुनिया का सबसे बड़ा सुख किसी भी महिला के लिए मां बनने का होता है. जब कोई महिला गर्भवती होती है. तो एक-एक दिन गिनती है कि, कब उसकी गोद में उसका बच्चा आयेगा. और उसका जीवन खुशियों से भर जायेगा. इस खुशी के लिए महिला को 9 महीने तक न जाने कितने ही दर्द और तकलीफ से गुजरना पड़ता है. बच्चे के इंतजार में वो खुशी-खुशी सब काट देती है. लेकिन आजकल प्रीमैच्योर डिलीवरी का खतरा बढ़ गया है.जिससे महिलाओं को काफी परेशानी हो रही है.
लाइफस्टाइल और रूटीन की वजह से बढ़ा प्रीमैच्योर डिलीवरी का खतरा
2023 के आते-आते लोगों का लाइफस्टाइल और रूटीन इतना चेंज हो गया हैं कि हजारों स्वास्थ्य संबंधी समस्या बढ़ गई है. उसमे सबसे ज्यादा समस्या गर्भवती महिलाओं को होती है. जिसमें प्रीमैच्योर डिलीवरी भी एक है. महिलाएं अपने अंदर पल रहे बच्चे का बहुत ख्याल रखती हैं. लेकिन फिर भी लाईफस्टाईल की वजह से चूक हो ही जाती है.
9 महीने से पहले बच्चे का जन्म कहलाता है प्रीमैच्योर डिलीवरी
प्रीमैच्योर डिलीवरी का मतलब समय से पहले बच्चे का जन्म हो जाना होता है. यानी 9 महीने से पहले ही बच्चे जन्म ले लेते हैं. इस स्थिति को ही प्रीमैच्योर डिलीवरी कहा जाता हैं. आज हम आपसे प्रीमैच्योर डिलीवरी की वजहों के बारे में बतायेंगे. तो वहीं इससे बचने का भी तरीका बतायेंगे.
प्रीमैच्योर डिलीवरी की वजह:
महिला के गर्भवती में एक से ज्यादा शिशु का होना-जब किसी महिला के गर्भ में एक से ज्यादा शिशु पल रहे होते है, तब महिला को प्रीमैच्योर डिलीवरी का खतरा बना रहता है.
पल रहे शिशु में संक्रमण का होना-यदि महिला के गर्भ में पल रहे बच्चे में किसी तरह का रोग या कोई संक्रमण होता है, तो भी प्रीमैच्योर डिलीवरी होती है.
बच्चेदानी के ग्रेव की बनावट में कोई विकृति- जब किसी महिला के यूटरेश की बनावट में किसी तरह की कोई समस्या होती है तो भी महिलायें बच्चे को 9 महीने से पहले जन्म देती है.
महिला ने पहले भी बच्चे को प्रीमैच्योर जन्म दिया हो-जब कोई महिला ने पहले भी बच्चे को प्रीमैच्योर डिलीवर किया हो, तो भी बहुत हद तक संभावना है कि प्रीमैच्योर डिलीवरी हो सकती है.
महिला की उम्र कम हो-जब महिला की उम्र कम होती है. तो उसके शरीर का विकास पूरी तरह से नहीं हुआ होता है. जिसकी वजह से प्रीमैच्योर डिलीवरी होती है.
महिला की ओर 35 साल से ज्यादा हो-जब किसी महिला की उम्र 35 साल से अधिक होती है तो उसके शरीर में कई तरह के स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं होती है. इससे भी प्रीमैच्योर डिलीवरी होती है.
गर्भवती महिला अंडरवेट होना-जब कोई महिला का वजन जरुरत से ज्यादा कम होता है, तो महिला प्रेगेनेंसी का दर्द नहीं झेल पाती है, और उसकी प्रीमैच्योर डिलीवरी करानी पड़ती है.
बीपी हार्ट समस्या या मधुमेह की समस्या- यदि गर्भवती महिला को पहले से ही या प्रेगनेंसी के दौरान बीपी हार्ट या मधुमेह की समस्या की समस्या होती है. तो भी प्रीमैच्योर डिलीवरी होती है.
इन तरीकों से आप प्रीमैच्योर डिलीवरी से बच सकते है:
खान-पान- मेच्योर डिलीवरी से बचने के लिए महिलाओं को कुछ खास बातों का ध्यान रखना पड़ता है. इसमें सबसे पहले खान-पान आता है. गर्भावस्था के दौरान महिला को अपने खान-पान का पूरा ध्यान रखना चाहिए. उसे अच्छी डाइट लेनी चाहिए. क्योंकि महिला जो भी खाती है, उसका सीधा असर उसके बच्चे पर पड़ता है. गर्भवती महिला को हर तरह के विटामिन जैसे कैल्शियम विटामिन फोलिक एसिड आदि लेते रहना चाहिए.
शरीर में पानी की कमी नहीं होने देना- खानपान के साथ-साथ महिला को अपने शरीर में पानी की कमी बिल्कुल नहीं होनी देनी चाहिए. महिला को जब पानी प्यास लगे, तुरंत जाकर उसे पानी पीना चाहिए.
पांच बार भोजन करना-महिलाओं को दिन में थोड़ा-थोड़ा करके पांच बार भोजन करना चाहिए. क्योंकि महिला जितना खायेगी. उतना ही ज्यादा स्वस्थ रहेगी. और यदि मां स्वस्थ रहेगी, तो ही वो अपने बच्चों को स्वस्थ रख पायेगी.
भारी चीज नहीं उठाना चाहिए-गर्भावस्था के दौरान महिला को भारी किसी भी चीज को उठाने से बचना चाहिए. क्योंकि ज्यादा भार उठाने से बच्चे के नाल पर जोर पड़ता है. जिससे गर्भपात होने का डर बना रहता है.
व्यायाम करना- गर्भावस्था के दौरान महिला को नियमित रूप से व्यायाम करना चाहिए. व्यायाम में हल्का-फुल्का योग किया जा सकता है. वही पैदल भी चलना चाहिए. जिसे खाना हजम हो सके.
पेशाब नहीं रोकना- गर्भावस्था के दौरान किसी भी महिला को बार-बार पेशाब लगता है. उसे अपने पिसाब को नहीं रोकना चाहिए. और आलस का त्याग करते हुए जितनी बार पेशाब लगे उतने बार जाना चाहिए. क्योंकि पेशाब रोकने पर इसका सीधा यूट्रस पर पड़ता है.
सामान्य दवाओं से बचना-इसके साथ भी गर्भावस्था के दौरान बिना किसी डॉक्टर के सलाह के किसी भी तरह की सामान्य दवाओं से बचना चाहिए. आपको कोई भी दवा डॉक्टर के बिना सलाहकार नहीं लेनी है.
तनाव नहीं लेना-गर्भावस्था के दौरान महिला को खुश रहना चाहिए, और अच्छे माहौल में रहना चाहिए. क्योंकि वो जैसा महसूस करेगी उसके बच्चे पर उसका प्रभाव ऐसा ही पड़ेगा. इसलिए महिला को किसी बात का तनाव नहीं लेना है.
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