टीएनपी डेस्क(TNP DESK); ईडी यानी कि प्रवर्तन निदेशालय ने नेता और देश के बड़े-बड़े लोगों के नांक में दम कर रखा है. ईडी को पॉवर प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (PMLA) के विभिन्न प्रावधानों के तहत मिली हुई है. इन्ही प्रावधानों की संवैधानिकता को सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाल चुनौती दी गई थी. जिसपर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया है.   

कोर्ट ने PMLA के तहत प्रवर्तन निदेशालय (ED) को मिले गिरफ्तारी के अधिकार को जस का तस बरकरार रखा है. इस फैसले के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मनी लॉन्ड्रिंग के तहत गिरफ्तारी मनमानी नहीं है. इस मामले में जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच सुनवाई कर रही थी. उन्होंने PMLA के उन प्रावधानों की वैधता को कायम रखा है, जिनके खिलाफ आपत्तियां लगाई गई थीं.

241 लोगों ने दायर की थी याचिका

सुप्रीम कोर्ट ने विजय मदनलाल चौधरी v/s यूनियन ऑफ इंडिया केस में ये फैसला सुनाया है. इसके अलावा भी ईडी के खिलाफ 241 याचिकाकर्ताओं ने याचिका डाला था. इसमें पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम के बेटे कार्ति चिंदबरम, महाराष्‍ट्र सरकार के पूर्व मंत्री अनिल देशमुख, जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती समेत और भी लोग शामिल थे.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि शिकायत ECIR को FIR के बराबर नहीं माना जा सकता है. ये ED का इंटरनल डॉक्यूमेंट है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ECIR रिपोर्ट आरोपी को देना जरूरी नहीं है. गिरफ्तारी के दौरान केवल कारण बता देना ही काफी है.

याचिका में की गई थी ये मांग

याचिकाकर्ताओं की ओर से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी समेत कई वकीलों ने अपना पक्ष रखा. इस याचिका में कहा गया था कि गिरफ्तारी, कुर्की, जब्ती का अधिकार गैर-संवैधानिक PMLA के तहत अधिकार क्रिमिनल प्रोसीजर एक्ट के दायरे से बाहर है. इस याचिका के माध्यम से मांग की गई थी कि PMLA के कई प्रावधान गैर संवैधानिक हैं, क्योंकि इनमें संज्ञेय अपराध की जांच और ट्रायल के बारे में पूरी प्रोसेस फॉलो नहीं की जाती है, इसलिए ED को जांच के समय CrPC का पालन करना चाहिए.