टीएनपी डेस्क (TNP DESK): देश में पहली बार मेडिकल की पढ़ाई हिंदी में होने जा रही है. इसकी शुरुआत मध्यप्रदेश से होगी. इसका श्रेय मुख्यमंत्री शिवराज चौहान और चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग को जाता है. सरकारी आदेश के मुताबिक MBBS पहले वर्ष के तीन विषय (एनाटॉमी, फिजियोलॉजी व बायोकेमिस्ट्री) हिंदी में पढ़ाए जाएंगे. चूंकि नेशनल मेडिकल कमीशन (NMC) हिंदी में पाठ्यपुस्तकों की अनुमति नहीं देता है, इसलिए सरकार किताबें हिंदी में छापेगी। इसके लिए एक कमेटी भी बनाई गई है.

वरिष्ठ पत्रकार डॉ. वेदप्रताप वैदिक कहते हैं कि मप्र की वर्तमान सरकार भारत की ऐसी पहली सरकार है जिसका नाम भारत की शिक्षा के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा. भारत के प्रधानमंत्री, शिक्षा मंत्री और स्वास्थ्य मंत्री म.प्र. से प्रेरणा ग्रहण करें और समस्त विषयों की उच्चतम पढ़ाई का माध्यम भारतीय भाषाओं को करवा दें तो भारत को अगले एक दशक में ही विश्व की महाशक्ति बनने से कोई ताकत रोक नहीं सकती है. विश्व की जितनी भी महाशक्तियाँ हैं, उनमें उच्चतम अध्ययन और अध्यापन स्वभाषा में होता है.

इससे होंगे ये फ़ायदे

वैदिक अपने ताजा लेख में लिखते हैं कि डाक्टरी की पढ़ाई मप्र में हिंदी माध्यम से होने के कई फायदे हैं. पहला तो यही कि फेल होनेवालों की संख्या एकदम घटेगी. दूसरा, छात्रों की दक्षता बढ़ेगी. 70-80 प्रतिशत छात्र हिंदी माध्यम से पढ़कर ही मेडिकल काॅलेजों में भर्ती होते हैं. इन्हें चिकित्सा-पद्धति को समझने में आसानी होगी. तीसरा, मरीज़ों की ठगाई कम होगी.  चिकित्सा जादू-टोना नहीं बनी रहेगी. चौथा, मरीज़ों और डाक्टरों की बीच संवाद आसान हो जाएगा. पांचवा, सबसे ज्यादा फायदा उन गरीबों, पिछड़ों, अनुसूचितों के बच्चों को होगा, जो अंग्रेजी के चलते डॉक्टर नहीं बन पातें.

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सरकार को सुझाव गर माना जाए

मेडिकल की पढ़ाई को और भी अधिक उपयोगी बनाना हो तो वैदिक ने सुझाव दिया है कि एक ऐसी नई चिकित्सा-उपाधि तैयार की जाए, जिसमें एलोपेथी, आयुर्वेद, हकीमी, होमियोपेथी और प्राकृतिक चिकित्सा के पाठ्यक्रम मिले-जुले हों ताकि मरीजों का यदि एक दवा से इलाज न हो तो दूसरी दवा से होने लगे. यदि हमारी चिकित्सा में ऐसा कोई क्रांतिकारी परिवर्तन मध्यप्रदेश की सरकार करवा सके तो अन्य प्रदेशों की सरकारें और केंद्र सरकार भी पीछे नहीं रहेगी. यह विश्व को भारत की अनुपम देन होगी. यह चिकित्सा पद्धति इतनी सुलभ और सस्ती होगी कि भारत और पड़ौसी देशों के गरीब से गरीब लोग इसका लाभ उठा सकेंगे. एक बार फिर दुनिया भर के छात्र डाक्टरी की पढ़ाई के लिए भारत आने लगेंगे, जैसे कि वे सदियों पहले विदेशों से आया करते थे.