धनबाद (DHANBAD) : बिहार के क्वालिटी सीटों पर सभी दलों में "मनभेद" अभी पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ है. एनडीए और महागठबंधन में टिकट के बंटवारे को लेकर खूब धींगामुश्ती हुई. दांव पर दांव खेले गए. आज की तारीख में कहा जा सकता है कि एनडीए भले ही नीतीश कुमार के चेहरे पर चुनाव लड़ रहा है, लेकिन मुख्यमंत्री कौन होगा, इसका चयन चुनाव के बाद होगा. दूसरी ओर महागठबंधन में भी सीएम फेस को लेकर तस्वीर साफ नहीं है. इधर, जनसुराज  के सूत्रधार प्रशांत किशोर का भी कहना है कि चुनाव के बाद पार्टी के लोग बैठकर मुख्यमंत्री का चयन कर लेंगे.  यानी मुख्यमंत्री का चेहरा अभी किसी दल ने पूरी तरह से साफ नहीं किया है.  इसका असर क्या और कैसा होगा, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा. 

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिलने क्यों पहुंचे अमित शाह 
 
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिलने शुक्रवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह उनके आवास पर पहुंचे. उसके बाद फिर छपरा में जनसभा को संबोधित करने के लिए निकल गए. इसकी भी बिहार में खूब चर्चा चल रही है. बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 21 विधायकों का पता काट दिया है.  इनमें से 17 विधायकों का टिकट पार्टी ने काटा है तो चार  मौजूदा विधायकों की सीट  भाजपा ने एनडीए और अन्य सहयोगी दलों को दे दी है. बता दें कि भाजपा ने अपने कोटे की सभी 101 विधानसभा सीटों पर प्रत्याशियों की घोषणा कर दी है. भाजपा बिहार में जदयू, लोजपा, हिंदुस्तान आवाम  मोर्चा और उपेंद्र कुशवाहा के साथ चुनाव लड़ रही है. भाजपा ने अपने कोटे के 101 उम्मीदवारों के चयन में सामाजिक समीकरण को साधने का प्रयास किया है. पार्टी ने सवर्ण  जाति के 49, पिछड़ा और अति पिछड़ा वर्ग से 40 और 12 दलित उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारा है. 

भाजपा की सूची में इन जातियों के उम्मीदवारों की संख्या 

एक आंकड़े के अनुसार भाजपा की सूची में 21 राजपूत, 16 भूमिहार, 11 ब्राह्मण, एक कायस्थ, 13 वैश्य ,अति पिछड़ा 12, कुशवाहा सात, कुर्मी दो, दलित 12 और 6 यादव है. 2020 में भाजपा ने यादव समाज के कुल 15 उम्मीदवार उतारे थे.  इस बार 6 को ही टिकट दिया गया है. इधर, बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा ने पूरी ताकत झोंकने की योजना तैयार कर ली है.  मिशन बिहार के तहत पार्टी ने आक्रामक चुनाव प्रचार अभियान शुरू कर दिया है. अमित शाह, योगी आदित्यनाथ, राजनाथ सिंह, जेपी नड्डा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद मैदान में चुनाव प्रचार को उतर रहे है. भाजपा का लक्ष्य है  एनडीए को वोटिंग के दिन तक एकजुट रखना, एंटी इनकंबेंसी को लगभग समाप्त करना और उन जगहों पर मोदी फैक्टर का असर बढ़ाना, जहां गठबंधन की ताकत  है. अमित शाह तो चुनाव प्रचार शुरू कर चुके है. उनका फोकस जमीन स्तर पर एनडीए की एकजुटता  को मजबूत करना है. 2020 में जीती सीटों पर एंटी इंकम्बैंसी  को रोकना भी उनकी प्राथमिक सूची में है. 
 
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कर सकते है दो दर्जन से अधिक विधानसभा में रैली 
 
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दो दर्जन से अधिक विधानसभा क्षेत्र में रैलियां कर सकते है. उनकी सभाएं मुख्य रूप से उत्तर और मध्य बिहार में होगी. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा भी सभाओं को संबोधित करेंगे.  सूत्रों की माने तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैलियो  की रूपरेखा भी तय हो गई है. उनकी सभाएं उन इलाकों में अधिक होगी, जहां पकड़ कमजोर मानी जाती है.  मोदी की व्यक्तिगत लोकप्रियता को भाजपा अभी भी सबसे बड़ी ताकत मानती है. यह तो तय है कि  टिकट के बंटवारे के बाद भी एकजुटता  बनाए रखना, नाराज कार्यकर्ताओं को एक सूत्र में बांधे रखना, एनडीए के लिए भी बड़ी चुनौती होगी तो महागठबंधन भी तमाम खींचतान के बाद अब राह पकड़ चुका है. इधर ,जनसुराज  भी कोई कसर छोड़ने के मूड में नहीं है. जनसुराज पार्टी  एनडीए और महागठबंधन के कितने प्रतिशत वोट पर चोट कराती  है, इस पर पूरा समीकरण निर्भर करेगा. 

रिपोर्ट-धनबाद ब्यूरो