धनबाद(DHANBAD):  लोग बताते ही कि थाईलैंड की मांगुर मछली की तस्करी करने वाले अब सब पर भारी पड़ रहे है.  कोयला ,बालू ,पशु तस्करों से भी आगे निकल गए है.  बंगाल से लेकर उत्तर भारत के प्रदेशों में करोड़ों का यह अवैध धंधा किया जा रहा है. झारखंड भी इससे अछूता नहीं है.  इस मछली को वैज्ञानिकों ने कैंसर रोग के जन्मदाता के रूप में चिन्हित किया है.  पूरे भारत में यह  मछली साल 2000 से ही प्रतिबंधित है.  लेकिन प्रतिबंधित होने के बावजूद धंधा बंद नहीं हुआ है.  तस्कर मालामाल हो रहे है.  सस्ता  होने की वजह से लोग इस मछली को खरीद रहे है.  जिसका लाभ तस्कर उठा रहे है.  जानकार बताते हैं कि मांगुर मछली की दो प्रजातियां होती हैं, एक देसी और दूसरी विदेशी. 

देसी और विदेशी मंगल मछलियों में क्या होता है अंतर 
 
देसी मांगुर मछलियो  के विकसित होने की गति काफी धीमी होती है.  6 महीने में इनका वजन लगभग 300 ग्राम होता है, जबकि विदेशी मांगुर मछली बहुत तेजी से बढ़ती है.  6 माह में इनका वजन 1 किलो के लगभग हो जाता है.  देसी मांगुर मछली अपनी विशेषताओं के कारण बाजार में महंगी मिलती है , जबकि विदेशी मांगुर मछली सस्ती  दर पर मिल जाती है.  जानकार यह भी  बताते हैं की देसी मांगुर मछली एक सीजन में 7000 से लेकर 15000 तक अंडे देती है, जबकि विदेशी मांगुर मछलियां एक सीजन में चार लाख तक अंडे देती है.  1998 में केरल राज्य सरकार ने विदेशी मांगुर मछलियों का व्यवसाय प्रतिबंधित  कर दिया था . 

पूरे देश में प्रतिबंध है ,फिर भी धंधा चालू है 
 
फिर बाद में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की  अनुशंसा के बाद पूरे देश में इसके व्यवसाय पर रोक लगा दिया गया.  इसका मुख्य कारण पर्यावरण को खतरा बताया गया.  थाई मांगुर मछलियां  दूषित पानी और कीचड़ में भी विकसित होती हैं, लेकिन देसी मांगुर मछलियां दूषित पानी और कीचड़ में मर जाती है.  क्योंकि उन्हें पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन नहीं मिलता है.  बात इतनी नहीं है, थाई मछलियां मांसाहारी होती है तथा छोटी-छोटी मछलियों को भोजन बनाती है.  इस वजह से मछलियों के अन्य प्रजातियां नष्ट हो जाती है. 

मुनाफा अधिक कमाने के लिए सबकुछ करते है तस्कर 
 
जानकार बताते हैं कि प्रतिबंधित मछली के कारोबार में शामिल तस्करों को मुनाफा अधिक होता है.  बांग्लादेश और बंगाल के कई इलाकों से तस्कर इन मछलियों का भंडारण करते है.  ग्राहकों को भ्रमित करने के लिए कम वजन में थाई मछलियों को ही निकाल लेते हैं, ताकि निरीक्षण में यह मछलियां देसी मांगुर मछली लगे.  इन मछलियों को वाहनों से   कई राज्यों में भेजा जाता है.  लोग तो यह भी  बताते हैं कि दुर्गापुर, आसनसोल होते हुए वाहन  मैथन होकर धनबाद जिले में एंट्री लेते है.  इसके बाद अगल-बगल के जिलों में इसकी सप्लाई होती है.  जानकार यह भी  बताते हैं कि झारखंड, बिहार ,उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड में भी प्रतिबंध लागू है, लेकिन मछली तस्करो  का प्रभाव इतना अधिक है, कि कोई कार्रवाई नहीं होती.

रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो