पाकुड़: हिरणपुर बाजार स्थित थाना के समीप मध्य विद्यालय में एक ऐसी घटना घटी, जिसने इंसानियत को झकझोर दिया. पहली कक्षा की नन्ही छात्रा सोनम मरांडी छुट्टी के बाद स्कूल की चार दीवारी में अकेली छूट गई. किसी ने देखा तक नहीं कि वो अब भी वहीं है—एक मासूम, जिसकी उम्र खेलने-कूदने और सपने देखने की होती है, वो डर और अंधेरे में सिमटी रो रही थी.

छुट्टी होते ही स्कूल बंद कर दिया गया. शिक्षक, कर्मचारी और बाकी छात्र-छात्राएं चले गए. लेकिन सोनम... वो वहीं रह गई—कक्षा में, खामोश, अकेली. तभी राह चलते कुछ लोगों ने स्कूल की खिड़की से एक बच्ची को रोते देखा. वो सिसक रही थी, उसकी आँखों में एक ही सवाल था—"क्या मुझे कोई ले जाएगा?" लोग रुके. भीड़ जमा हुई. सूचना प्रधानाध्यापक को दी गई.  स्कूल का दरवाज़ा खोला गया. सोनम बाहर निकली... लेकिन उसकी आंखों में जो डर था, वो किसी किताब में नहीं पढ़ाया जा सकता.

वो बच्ची एक निजी हॉस्टल में रहती है. उसकी उम्र इतनी नहीं कि खुद को ढूंढ सके, या मदद के लिए दरवाज़ा पीट सके. अगर खिड़की न होती, तो क्या होता? इस घटना ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है—किसकी ज़िम्मेदारी थी सोनम की? किसी ने नहीं गिना कि सभी बच्चे निकले या नहीं. किसी ने पलटकर नहीं देखा कि कोई रह तो नहीं गया.स्थानीय लोगों का आक्रोश जायज़ है. उन्होंने विद्यालय प्रशासन की लापरवाही पर कड़े सवाल उठाए हैं.यह केवल एक लापरवाही नहीं, यह उस विश्वास का टूटना है जो माता-पिता हर सुबह अपने बच्चों के बैग के साथ स्कूल भेजते हैं.

रिपोर्ट: नंद किशोर मंडल, पाकुड़