धनबाद(DHANBAD): झारखंड के करीब 8000 स्कूल केवल एक शिक्षक के भरोसे चल रहे है. इन स्कूलों में साढे तीन लाख से अधिक बच्चे पढ़ते है. यह आंकड़ा झारखंड सरकार का है. झारखंड के शिक्षा मंत्री विधानसभा में एक सवाल के जवाब में यह चौंकानेवाली बात कही है. शिक्षा मंत्री ने मंगलवार को कहा कि राज्य में 7930 सरकारी स्कूल ऐसे हैं, जिनमें केवल एक-एक शिक्षक की कार्यरत है. विधानसभा में भाजपा विधायक राज सिन्हा के प्रश्न के लिखित उत्तर में उन्होंने कहा कि इन स्कूलों में 3.81 लाख बच्चे दाखिल है. इसके अलावा उन्होंने यह भी कहा कि 103 स्कूल ऐसे हैं, जिनमें कोई छात्र नहीं है. लेकिन 17 शिक्षक कार्यरत है. शिक्षा मंत्री ने कहा कि सरकार ने स्कूल चलो अभियान जैसी मुहिम शुरू की है. जो खास तौर पर उन इलाकों में चलाई जा रही है, जहां स्कूलों में बच्चे नहीं आ रहे है. छात्रों को फिर से स्कूल से जोड़ने का यह प्रयास है. मंत्री ने कहा कि 26000 सहायक अध्यापकों की भर्ती की प्रक्रिया चल रही है. बता दे कि पिछले साल झारखंड के सरकारी स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति बढ़ाने के लिए शिक्षा एवं साक्षरता विभाग ने अनूठी पहल की थी. सिटी बजाओ, उपस्थित बढ़ाओ अभियान चलाया था.
इस महाअभियान में लोगो को किया गया था शामिल
इस महाअभियान में राज्य के प्रत्येक जिले के जिला शिक्षा पदाधिकारी, जिला शिक्षा अधीक्षक, क्षेत्र शिक्षा पदाधिकारी, अनुमंडल शिक्षा पदाधिकारी ,प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी, प्रखंड कार्यक्रम पदाधिकारी, प्रखंड साधन सेवी , संकुल साधन सेवी , शिक्षक, छात्र, अभिभावको ने भाग लिया था. इस अभियान का कितना असर हुआ , यह तो आंकड़ा बताएगा , लेकिन शिक्षा मंत्री का मंगलवार को विधानसभा में दिया गया बयान, यह बताता है कि अभियान का कोई असर जमीन पर नहीं दिखा है. इधर , झारखंड में कार्यरत 62 000 पारा टीचर ( सहायक शिक्षक) नई सरकार की ओर टकटकी लगाए हुए है. स्थाई करने की मांग कर रहे है. एक आंकड़े के मुताबिक झारखंड के प्राथमिक विद्यालयों में अभी भी एक लाख से अधिक पद खाली है. वह कहते है कि 22 वर्षों से लगातार सेवा देने के बाद भी राज्य के 62000 सहायक अध्यापक आज सुरक्षित नहीं है. रिटायर्ड होने पर कोई लाभ नहीं दिया जाता. किसी की मृत्यु हो जाने पर भी अनुकंपा का लाभ नहीं मिलता.
पारा शिक्षकों की क्या है परेशानी
किसी प्रकार की मेडिकल सुविधा की व्यवस्था नहीं मिलती. अधिकतर पारा शिक्षकों की उम्र 50 साल या तो पहुंच गई है या पहुंचने वाली है. झारखंड के मिडिल से लेकर प्राथमिक विद्यालयों में पारा टीचर काम कर रहे है. कई नए प्राथमिक विद्यालय तो पारा शिक्षकों के भरोसे ही चल रहे है. उन्हें सेवा देते हुए लगभग 22 वर्ष गुजर गए, फिर भी उन्हें सामान्य शिक्षकों की तरह वेतन नहीं मिल रहा है. वेतन के नाम पर सरकार उन्हें मानदेय देती है. पारा शिक्षक भी सामान्य शिक्षक की तरह वेतनमान देने की लगातार मांग कर रहे है. इसके बाद भी सुविधा नहीं मिल रही है. झारखंड के पारा टीचर अब बिहार की तरह नियोजन की मांग कर रहे है. उनका कहना है कि झारखंड में पारा शिक्षकों की स्थिति अच्छी नहीं है. उनकी मांग "नक्कारखाने में तूती की आवाज" साबित हो रही है. न सरकार ध्यान दे रही है और ना जनप्रतिनिधि रुचि दिखला रहे है. समान काम के बदले समान वेतन का सिद्धांत सिर्फ स्लोगन बनकर रह गया है.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो
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