धनबाद (DHANBAD) : झारखंड की राजनीति किसी के भी समझ से परे है. बड़े -बड़े राजनीतिक पंडित भी यहां की राजनीति प्रयोगधर्मिता पर कुछ अंदाज नहीं लगा सकते हैं. कब कौन नेता किस पार्टी का दामन थाम लेगा और कब वह किस करवट बैठ जाएगा. यह लोगों के समझ से परे है. चार राज्यों में विधानसभा चुनाव में भाजपा के बेहतर प्रदर्शन के बाद चर्चा चल उठी है कि भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व की नजर झारखंड पर गड़ी हुई है. वह येन केन प्रकारेण झारखंड के सत्ता पर काबिज होना चाहती है. पांच राज्यों के चुनाव के ठीक बाद झारखंड में सुदेश महतो के नेतृत्व में झारखंड लोकतांत्रिक मोर्चा का गठन हुआ है और इसमें पांच विधायक शामिल हैं. इस मोर्चे में चर्चित विधायक सरयू राय भी शामिल हैं. किस उद्देश्य से और अभी ही क्यों, मोर्चा का गठन हुआ है, इस पर अभी निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता. लेकिन इतना तो तय है कि यह मोर्चा किसी दुरगामी राजनीति का हिस्सा बन सकता है.
हर राजनीतिक गतिविधियों में कोई न कोई 'खेल
बता दें कि झारखंड राजनीतिक अवसरवाद का सबसे बड़ा प्रदेश बन गया है और यहां की हर राजनीतिक गतिविधियों में कोई न कोई 'खेल' होता है या होने वाला होता है. 3 राज्यों के साथ नवंबर '2000 में झारखंड का भी गठन हुआ था. बाबूलाल मरांडी पहले मुख्यमंत्री बने लेकिन उसके बाद से ही इस प्रदेश पर अवसरवाद की राजनीति इतनी ज्यादा हावी हुई कि लोग खुद के लिए कुछ भी करने को तैयार होते रहे. अगर हम केवल धनबाद की ही बात करें तो जनता दल यूनाइटेड के प्रदेश अध्यक्ष रहे जलेश्वर महतो पार्टी छोड़ दी और कांग्रेस में शामिल हो गए. उसी मुंह से जनता दल यूनाइटेड को भला- बुरा कहने लगे. सिंदरी के पूर्व विधायक फूलचंद मंडल ताउम्र भाजपा की राजनीति की लेकिन वह भी झामुमो में शामिल हो गए और जिस पार्टी के सिद्धांत और नियम मानकर युवा अवस्था से राजनीति करते रहे, उसी मुंह से भाजपा के खिलाफ बोलने लगे. ऐसा करने वालों की तो दाद देनी ही पड़ेगी, तो यह कहा जा ही सकता है कि सबको लुभानेवाली पेशा बन गई है राजनीति. सिर्फ नेता ही नहीं, नौकरशाह भी इसमें आगे आगे चल रहे हैं, जो भी यहां होता है इतिहास ही बनता है. निर्दलीय विधायक मधु कोड़ा मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान हो जाते हैं और कांग्रेस जैसी पार्टी उनका समर्थन करती है. सीएम की कुर्सी पर रहते हुए शिबू सोरेन चुनाव हार जाते हैं. 2014 में बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व वाली झारखंड विकास मोर्चा के 6 विधायकों को तोड़कर भाजपा ने राज्य में रघुवर दास के नेतृत्व में सरकार बना ली और यही वह सरकार है जो 5 साल का कार्यकाल पूरा की. लेकिन 2019 के चुनाव में भाजपा को मुंह की खानी पड़ी और अभी झारखंड मुक्ति मोर्चा ,कॉन्ग्रेस और राजद की गठबंधन की सरकार चल रही है.
आरपीएन सिंह को भाजपा में शामिल करने का कुछ तो मतलब है
इस सरकार पर भाजपा की गिद्ध दृष्टि लगी हुई है. इसका संकेत तो आरपीएन सिंह को भाजपा में शामिल करा कर केंद्रीय नेतृत्व ने दे दिया है और ऐसा लगता है कि झारखंड के कांग्रेस के विधायकों को इधर से उधर करने या झारखंड सरकार को अपदस्थ करने की मंशा से ही आरपीएन सिंह को भाजपा में शामिल कराया गया है. अभी चुकी पांच राज्यों का चुनाव था इसलिए भाजपा चुप थी लेकिन अब खुलकर खेल करेगी, ऐसा अनुमान लगाया जा सकता है. इस बीच मोर्चे के गठन ने राजनीति को थोड़ी हवा दे दी है, अब यह हवा किस रूप में ,कहां जाकर थमती है, यह तो देखने वाली बात होगी क्योंकि झारखंड की राजनीतिक हवा को राजनीतिक पंडित भी समझने में भूल कर जाते है.
अप्रैल में झारखंड के दो राज्य सभा सीट का हो सकता है चुनाव
यह भी बता दें कि अप्रैल में झारखंड के दो राज्य सभा सीट का चुनाव हो सकता है. अभी दोनों सीट पर भाजपा का कब्जा है. एक पर महेश पोद्दार तो दूसरे पर मुख्तार अब्बास नकवी राज्यसभा के सदस्य हैं. यह भी चर्चा है कि जिस तरह अर्जुन मुंडा को राज्य की राजनीति से निकाल कर केंद्र में मंत्री बनाया गया, उसी तरह पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास को भी झारखंड की राजनीति से निकालकर राज्यसभा का सदस्य बनाया जा सकता है. मतलब साफ है कि भाजपा नेतृत्व बाबूलाल मरांडी पर दांव लगा सकती है लेकिन यह सब क्या इतना आसान होगा, यह देखने वाली बात होगी.
रिपोर्ट : सत्य भूषण ,धनबाद
Recent Comments