दुमका (DUMKA): भारतीय संस्कृति में फूल का विषेश महत्व है. आदि काल से ही हरेक फूल किसी ना किसी देवी- देवता के प्रिय माने जाते रहे हैं. आज हम बात कर रहे हैं एक ऐसे फूल की जो देवाधिदेव महादेव के ना केवल प्रिय है, बल्कि यूं कहें कि शिव खुद उस फूल में विराजमान हैं. विलुप्तप्राय इस फूल को शिवलिंगी फूल कहा जाता है. आइए जानते हैं क्या है इस फूल की खासियत. शिवलिंगीं के नाम से जाने जाने वाले इस फूल को गौर से देखिए. फूल का आधार कमल दल के समान उसके उपर सर्प का मुख और मुख के अंदर शिवलिंग.
दुमका जिला के जरमुंडी स्थित बासुकीनाथ मंदिर से सटे दारुक वन में इस फूल के कई पेड है. लोग बड़ी श्रद्धा से इस फूल को तोड़कर महादेव पर चढ़ाते है. बरसात के मौसम में ही यह फूल खिलता है. इसलिए सावन महीने में इस फूल की महत्ता और बढ़ जाती है. ऐसी मान्यता है कि इस फूल को चढ़ाने से भोले बाबा अति प्रसन्न होते हैं और भक्तों की सभी मनोकामना पूर्ण करते हैं.
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महादेव पहुंचे थे बासुकीनाथ
बासुकीनाथ स्थित फौजदारी बाबा के मंदिर से सटे दारुक वन का अलग ही इतिहास है. जनश्रुति के अनुसार प्राचीन काल में दारुक और दारुका नामक राक्षस-राक्षसी इस वन में निवास करते थे. दारुक राक्षस जब विचरण करता था, तो अपने साथ बगिया को भी लेकर चलता था. ताकि अपने आराध्य की पूजा-अर्चना में फूल की कमी ना हो. कहा जाता है कि दारुक से प्रताड़ित एक भक्त की पुकार सुनकर महादेव बासुकीनाथ आए थे. भोले शंकर जब यहां रहने लगे तो दारुक और दारूका समुद्र में निवास करने चले गए. कालांतर में इस वन को महादेव की बगिया कहा जाने लगा.
नाम की सार्थकता
वनस्पति शास्त्र में शिवलिंगी का पेड़ औषधीय गुणों से युक्त माना जाता है. जानकारों का मानना है कि यह पेड़ विलुप्ति के कगार पर है. आवश्यकता है इस पेड़ को संरक्षित करने की ताकि इस फूल के नाम की सार्थकता को आने वाली पीढ़ी भी जान सकें.
रिपोर्ट: पंचम झा, दुमका
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