सरायकेला (SARAIKELA) - शहीदों के मजारों पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का बाकी यही निशां होगा. यह पंक्तियां देश की आजादी के बाद के सबसे पहली और बड़ी एक जनवरी 1948 को घटित खरसावां गोलीकांड के शहीद स्थल पर आकर पूरी तरह चरितार्थ होती है. हर साल जहां पूरी दुनिया नववर्ष में खुशियां मनाती है, वहीं खरसावां शहीद स्थल पर आकर लोग अपने शहीदों की याद में नम आंखों से श्रद्धांजलि देते हैं. इस घटना के बीते 73 वर्षों से यही क्रम जारी है. लेकिन खासतौर पर झारखंड बनने के बाद यहां की श्रद्धांजलि सभा में काफी ज्यादा भव्यता और व्यापकता आयी है. यहां न सिर्फ कोल्हान के बल्कि पूरे झारखंड के सामाजिक संगठन के लोग तथा राजनीतिक क्षेत्र के लोग पहुंचते हैं और शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं.
लगाया जाएगा हाईटेक डिस्प्ले सिस्टम
आने वाले दिनों में खरसावां शहीद स्थल को विश्व स्तरीय पर्यटक स्थल बनाने की पहल होगी. यहां आने वाले लोगों की जानकारी के लिए खरसावां शहीद स्थल के इतिहास को प्रदर्शित करने के लिए हाईटेक डिस्प्ले सिस्टम लगाया जाएगा. जैसा कि जालियांवाला बाग तथा अन्य शहीद स्थल पर होता है. करीब 16 करोड़ की लागत से यहां आधारभूत संरचना व अत्याधुनिक सुविधा का विकास होगा. जिसमें लोगों के रहने, ठहरने तथा शहीद स्थल की सुविधा और खूबसूरती को बढ़ाने का प्रयास होगा. इसको लेकर जिला प्रशासन ने विस्तृत डीपीआर तैयार कर लिया है. ऐसी उम्मीद है कि आने वाले 1 जनवरी 2022 के श्रद्धांजलि सभा के कार्यक्रम के दौरान सीएम हेमंत सोरेन खुद इस शहीद स्थल के विश्वस्तरीय पर्यटक स्थल बनाने के की संकल्पना को साकार करने के लिए घोषणा करेंगे.
खुलेगा शहीद पार्क, लगेंगे चार्ज
जिला प्रशासन द्वारा सीएसआर फंड से खरसावां शहीद पार्क के अंदर सौंदर्यीकरण और सुविधा के लिए कई कार्य किए गए हैं. लेकिन यह शहीद पार्क 1 जनवरी के कार्यक्रम के बाद अक्सर बंद ही रहता है. रखरखाव के लिए कमेटी नहीं रहने और केयर टेक करने के लिए आवंटन के अभाव में ऐसा होता है. लेकिन अब इस शहीद पार्क के प्रबंधन के लिए एक कमेटी का गठन किया गया है. जिसमें सांसद, विधायक के अलावा विभिन्न राजनीतिक दलों के लोग, शहीद परिवार के लोग और यहां पूजा करने वाले पुजारी यानी पाहन को कमेटी में रखा गया है. इस प्रबंधन कमेटी के जरिए अब शहीद पार्क का रखरखाव होगा और सबसे बड़ी बात यह है कि 1 जनवरी 2022 के कार्यक्रम के बाद यह जनता के लिए खोल दिया जाएगा. अब आम लोग सालों भर इस पार्क में अंदर प्रवेश कर घूम सकेंगे और शहीद के इतिहास के बारे में जान सकेंगे. इसको लेकर जनता से प्रवेश शुल्क के रूप में कुछ रकम भी ली जाएगी. हालांकि कितनी रकम ली जाएगी यह अभी तय नहीं हुआ है.
प्रशासन की है पुख्ता तैयारी
वहीं 1 जनवरी 2022 को होने वाले कार्यक्रम को लेकर प्रशासन ने पुख्ता तैयारी की है. खुद डीसी अरवा राजकमल इस पूरे कार्यक्रम के आयोजन की कमान संभालें हैं. वह रोज खरसावां शहीद स्थल जाकर कार्यक्रम की प्रगति का मुआयना कर रहे हैं. इसके साथ ही पदाधिकारियों को दिशा निर्देश भी दे रहा है. श्रद्धांजलि के कार्यक्रम में सीएम हेमंत सोरेन समेत झारखंड सरकार के कई मंत्री और नेता इस दौरान मौजूद रहेंगे. साथ ही खूंटी सांसद और केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा समेत भाजपा, अन्य दलों के कई बड़े नेता भी श्रद्धांजलि सभा में शामिल होंगे. इस कार्यक्रम को लेकर इस बार खरसावां शहीद स्थल को खूब सजाया गया है. हर तरफ शहीद स्थल की बगिया खूबसूरत फूलों से चहक और महक रही है. दूधिया रोशनी की चकाचौंध शहीद स्थल में चार चांद लगा रहा है.
शहीदों को सम्मान देने का सपना है अधूरा
शहीदों की याद में यहां श्रद्धांजलि अर्पण करने की भावना तो हर किसी के जेहन में रहती ही है. पर साथ ही साथ इस दौरान नेताओं की राजनीति भी खूब चमकती है. दशकों से यहां विभिन्न दलों के नेता आते हैं और श्रद्धांजलि सभा के बाद शहीद परिवारों को वास्तविक न्याय और सम्मान दिलाने की ढेरों वादे करते हैं. लेकिन सभी दलों के तमाम प्रयासों के बाद गिनती के कुछ प्रयासों को छोड़ दिया जाए तो अधिकतर वादे अभी अधूरे ही हैं. सबसे ज्यादा कारगर प्रयास वर्ष 2016 में रघुवर दास के शासनकाल में हुए जब सरकार के निर्देश पर प्रशासन द्वारा विशेष टीम बनाकर इस घटनाक्रम के साक्ष्य तथा शहीद लोगों की पहचान के लिए पहल की गई और अफसरों ने इसके दस्तावेज की खोज में चाईबासा, रांची, पटना, कोलकाता, उड़ीसा जैसे सभी संभावित जगहों पर पड़ताल की. लेकिन बहुत कुछ सफलता नहीं हासिल हो पाया. लेकिन शहीदों को सम्मान देने के सरकारी वादे को पूरा करने को लेकर सरकार ने प्लान बी पर काम करते हुए स्थानीय स्तर पर बुजुर्ग लोगों से सर्वे के आधार पर काफी मेहनत कर दो शहीदों को की पहचान की और फिर उन्हें शहीद दिवस के मौके पर शहीद स्वर्गीय डोले सोय के आश्रित बिट्टूराम सोय और शहीद स्वर्गीय सिंगराय बोदरा के आश्रित नंदू बोदरा को एक एक लाख रुपया सम्मान के तौर पर दिया गया. इस प्रयास के पहले और बाद में अब तक कोई वैसा कारगर प्रयास नहीं हुआ. हां यह जरूर है पहले जहां यह शहीद स्थल खरसावां हाट के बीच में लगता था. वहां अब खरसावां हाट को दूसरे जगह पर शिफ्ट करते हुए इस स्थान को सौंदर्यीकरण और संरक्षित करते हुए खूबसूरत बना दिया गया. वहीं इस घटना के प्रत्यक्षदर्शी और गोली खाकर भी जीवित बचे मांगू सोय और दशरथ मांझी के जीवित रहने के दौरान उन्हें कोई बड़ा सम्मान तो नहीं मिला. लेकिन कुछ वर्ष पूर्व हुए उनकी मृत्यु के बाद उनके गांव में उनकी प्रतिमा स्थापित कर श्रद्धा जरूर दिखाई गई है.
फिर शहीदों के मजारों पर लगेंगे नेताओं के मेले और जमकर होंगे दावे और वादे
1 जनवरी 2022 को खरसावां शहीद स्थल पर श्रद्धांजलि सभा के दौरान ऐसा नहीं है कि सिर्फ सरकार के लोग ही यहां पहुंचेंगे. मुख्य विपक्ष यानी भाजपा व अन्य दलों के लोग भी यहां पहुंचेंगे और अपने अपने तरीके से शहीदों के सच्चे हितैषी होने की बातें करेंगे और सत्ताधारी दल व नेताओं पर आरोप मढेंगे. ऐसे ही एक जनवरी की सुबह से शाम समाप्त हो जाएगी और फिर 364 दिन के चुप्पी के बाद फिर अगले साल एक जनवरी को वही चकाचौंध हो और हलचल होगी।
खरसावां गोलीकांड का इतिहास
बता दें कि 15 अगस्त 1947 में भारत की आजादी के बाद देशी रियासतों का भारतीय लोकतंत्र में विलय का कार्य चल रहा था. इसी दौरान खरसावां राजा ने इस क्षेत्र को उड़ीसा राज्य में विलय करने की अपनी सहमति जताई थी. लेकिन यहां की स्थानीय बहुल जनता इसके खिलाफ थी और इस क्षेत्र को बिहार में सम्मिलित कराना चाहती थी. स्थानीय लोगों ने अपनी इस भावना की आवाज को बुलंद करने तथा खरसावां राजा को एहसास दिलाने के लिए मरांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा के नेतृत्व में एक जनवरी 1948 को इसी खरसावां शहीद स्थल पर एक सभा का आयोजन किया था. जिस सभा का मकसद इस क्षेत्र को उड़ीसा राज्य में शामिल करने की राज परिवार की मनसा का विरोध करना तथा बिहार में सम्मिलित कराने की मांग करना था. तय समय पर यहां हजारों लोगों का जमावड़ा लगा लेकिन किसी कारणवश इस सभा के नेतृत्वकर्ता जयपाल सिंह मुंडा नहीं पहुंच सके. ऐसे में नेतृत्व विहीन जनता अपनी भावना से खरसावां राजा को अवगत कराने के लिए राजमहल की ओर कुच करने का मन बनाया. उधर खरसावां राजा के सुरक्षा में पहले से तैनात उड़ीसा पुलिस को यह लगा कि लोगों का जमावड़ा खरसावां राजा को कोई नुकसान पहुंचाने के उद्देश्य से आ रहा है. इसी उधेड़बुन के बीच उड़ीसा पुलिस द्वारा लोगों पर अंधाधुंध गोलियां चलाई गई. जिससे सैकड़ों की संख्या में लोग शहीद हुए. हालांकि इस घटना में कितने लोग शहीद हुए इसका कोई पुख्ता दस्तावेज सरकार के पास अब तक उपलब्ध नहीं. इस घटना के बाद भारत सरकार ने बहुल जनता की भावना को सम्मान करते हुए खरसावां राजा के फैसले को बदलते हुए इस क्षेत्र को बिहार राज्य में सम्मिलित कराया. तब से लेकर आज तक एक जनवरी को इस स्थान पर उन वीर शहीदों की याद में श्रद्धांजलि का कार्यक्रम होता है.
रिपोर्ट : विकास कुमार, सरायकेला
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