धनबाद(DHANBAD):  देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की "स्वप्न सुंदरी" सिंदरी 1951 में शुरू होने के बाद किस्तों में मरती चली गई. या यूं कहिये किस्तों में मार दी गई. दोनों बातें सच हैं क्योंकि जिस तामझाम और जरूरत को पूरा करने के लिए सिंदरी खाद कारखाने का उद्घाटन पंडित नेहरू ने 1951 में किया था, उसे आगे के दिनों में बरक़रार नहीं रखा गया और देश का प्रतिष्ठित सिंदरी खाद कारखाना धीरे-धीरे अव्यवस्था, भ्रष्टाचार, लालफीताशाही और नेतागिरी की भेंट चढ गया. अब हिंदुस्तान उर्वरक एवं रसायन लिमिटेड (हर्ल) को फिर से उत्पादन शुरू करने की जिम्मेवारी मिली है.

दिसंबर 2002 में स्थाई रूप से बंद घोषित हुआ था खाद कारखाना

यूं तो इसकी हालत एक दशक से भी अधिक समय से बिगड़ रही थी. लेकिन अंततः दिसंबर 2002 में इस कारखाने को स्थाई रूप से बंद घोषित कर दिया गया. यह कारखाना अपने आप में अद्भुत था, इस कारखाने के पास अपनी रेल लाइन, अपना पोस्ट ऑफिस, अपना एयरपोर्ट सब कुछ था. यह देश के अन्य उद्योगों के लिए एक उदाहरण भी था. लेकिन समय के साथ सरकार की निगाहें टेढ़ी होती गई और यह कारखाना हमेशा-हमेशा के लिए बंद हो गया.  जिस समय यह कारखाना बंद हुआ, उस समय यहां कार्यरत कर्मचारियों की संख्या दो हजार से भी अधिक थी. सभी कर्मचारियों को VSS(वॉलेंट्री सेपरेट स्कीम) दे दिया गया.

बंदी के बाद खुलवाने के लिए धनबाद से दिल्ली तक हुआ था आंदोलन

इस कारखाने के बंदी के बाद इसे खुलवाने के लिए जबरदस्त आंदोलन हुआ. जोरदार धरना-प्रदर्शन हुआ, सिंदरी से लेकर धनबाद तक और धनबाद से लेकर दिल्ली तक आंदोलन हुए, प्रभावित कर्मचारियों ने जनप्रतिनिधियों से गुहार की लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला. यह कारखाना बंद ही रहा. जो कर्मचारी वीएसएस लेने के बाद भी सिंदरी छोड़कर नहीं जाना चाहते थे, उन्हें इकरारनामा के आधार पर जिन घरों में वह रह रहे थे, वह घर उन्हें आवंटित किया गया. हालांकि, उसके बाद भी उनकी समस्याएं कम नहीं हुई, समस्याएं बढ़ती ही रही. 

आवास में रहने वालो की बढ़ती रही परेशानिया

कभी पानी का संकट तो कभी बिजली का संकट तो कभी स्वास्थ्य की समस्याएं. खाद कारखाने का बेहतरीन अस्पताल खंडहर में बदल गया, उस अस्पताल को न सरकार ने टेकओवर किया और ना चलाने की कभी मंशा जाहिर की. नतीजा यह हुआ कि करोड़ों-अरबों की अत्याधुनिक मशीनें जंग की भेंट चढ़ गई. आज अगर आप खाद कारखाने के आवास को देखेंगे तो आंखों से आंसू छलक पड़ेंगे, क्योंकि आवासों की हालत देखकर ऐसा नहीं लगता कि यही देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की "स्वप्न सुंदरी" सिंदरी है. 

2016 में बनी जॉइंट वेंचर कंपनी हिंदुस्तान उर्वरक एवं रसायन लिमिटेड

सब कुछ खत्म होने के बाद 2016 में केंद्र सरकार ने सुगबुगाहट शुरू की. कोल इंडिया लिमिटेड, एनटीपीसी, इंडियन ऑयल कारपोरेशन लिमिटेड और एफसीआईएल को मिलाकर 15 जून 2016 को एक ज्वाइंट वेंचर कंपनी बनाई गई, जिसका नाम दिया गया हिंदुस्तान उर्वरक एवं रसायन लिमिटेड (हर्ल). इसका शिलान्यास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 25 मई 2018 को बलियापुर में किया था. उम्मीद की गई थी कि मार्च 2022 से इस कारखाने से यूरिया का उत्पादन शुरू हो जाएगा, 3850 टन प्रतिदिन नीम कोटेड यूरिया उत्पादन का लक्ष्य है. 90 फीसदी काम पूरा हो चुका है. सूत्र बताते हैं कि इस निर्धारित अवधि से उत्पादन शुरू होने में संदेह है. 

65 सौ करोड़ रुपए की लागत से शुरू होगा कारखाना

बता दें कि 65 सौ करोड़ रुपए की लागत से इस कारखाने में काम हो रहा है. दो बॉयलर स्थापित किया जा चुका हैं. हाल ही के दिनों में दोनों की टेस्टिंग हुई है. अधिकृत सूत्र इस टेस्टिंग को सफल बताते हैं, लेकिन जानकार कह  रहे हैं कि अभी इसमें बहुत कुछ बाकी है. क्योंकि यूरिया का जो उत्पादन होगा, उसको इकट्ठा करने के लिए जैसी जगह की जरुरत है, उसे अभी तैयार नहीं किया गया है. इसी बीच 5 दिन पहले दूसरे बॉयलर में चिंगारी विस्फोट हो गया, जिसमें 2 मजदूर झुलस गए. यह मजदूर निजी ठेका कंपनी के लिए काम कर रहे थे. घायल मजदूरों को स्थाई नौकरी, बेहतर इलाज सहित अन्य मांगों के लिए संयुक्त मोर्चा के नेतृत्व में कंपनी गेट पर लगातार चार दिनों तक धरना-प्रदर्शन भी किया गया. इस धरना-प्रदर्शन के बाद 13 जनवरी को धनबाद के सदर अनुमंडल पदाधिकारी की मौजूदगी में प्रबंधन और आंदोलनकारियों के बीच समझौता हुआ, समझौते के बाद आंदोलन समाप्त हो गया है, लेकिन समस्या अभी ख़त्म नहीं हुआ है.

रिपोर्ट- अभिषेक कुमार सिंह, ब्युरो हेड(धनबाद)