लोहरदगा (LOHARDAGA)- सुसरिता एक ऐसा नाम जिससे जिला मुख्यालय का हर कर्मी और पदाधिकारी वाकिफ है. हमेशा मुस्कुराकर हंसकर लोगों से मिलने और बात करने वाली यह युवती 70% से अधिक दिव्यांग है. अपनी बातों को वह मुश्किल से रख पाती हैं. लेकिन कभी भी इसने अपनी दिव्यांगता को अपनी कमजोरी नहीं मानी. बीटेक से इसने ग्रेजुएशन किया और आज लोहरदगा जिला मुख्यालय स्थित जिला निर्वाचन कार्यालय में बतौर कंप्यूटर ऑपरेटर के रूप में कार्यरत हैं.

जीवन से कभी कोई शिकायत नहीं- सुसरिता

सुसरिता के पिता हरिपाल भगत मिजोरम में बिजली विभाग में कार्यरत थे, जो अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं. इसलिए लोहरदगा निवासी सुसरिता की पढ़ाई मिजोरम में ही पूर्ण हुई. 2016 में मिजोरम यूनिवर्सिटी से 4 वर्ष का बीटेक कोर्स पूरा किया.  2 मई 1992 की जन्मी सुसरिता जन्म से ही दिव्यांग हैं. चार भाई बहन में सरिता का स्थान तीसरा है. शहरी क्षेत्र के रघु टोली स्टेशन के समीप यह अपने माता पिता  के साथ रहती है.  दिव्यांगता को इन्होंने कभी भी कमजोरी नहीं मानी.  बल्कि इसे ही ढाल बनाकर अपने शिक्षा दीक्षा पूर्ण कर आज एक अच्छे माहौल में यह कंप्यूटर ऑपरेटर का काम कर रही हैं. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर सुसरिता कहती हैं कि इन्हें अपने जीवन से कभी कोई शिकायत नहीं रही. हमेशा आगे बढ़ने की लालसा और शिक्षा के प्रति समर्पण ने आज इन्हें इस मुकाम तक पहुंचाया है.  कंप्यूटर कीबोर्ड पर सुसरिता की उंगलियां खटाखट और तेज गति से चलती हैं. कंप्यूटर के स्क्रीन पर आए हर निर्देश का यह बेहतर तरीके से पालन करते हुए निर्वाचन कार्य को पूर्ण करती हैं. इनका कहना है कि महिला होना श्राप समझा जाता है. लोग कोख में ही बच्चियों को मार डालते हैं. ऐसी बातें सुनकर इन्हें बहुत दुःख होता है. सुसरिता ने अपने आप को इतना मजबूत कर लिया कि आज विकट परिस्थिति में रहते हुए भी अपने घर अपने परिवार को संभालने और एक अच्छे माहौल में कार्य करना इनकी पहचान बन गई है.  इसके कार्य से पदाधिकारी से लेकर कर्मी तक काफी प्रसन्न रहते हैं.

रिपोर्ट : गौतम लेनिन, लोहरदगा