टीएनपी डेस्क(TNP DESK): देश में राष्ट्रपति के साथ ही उपराष्ट्रपति चुनाव की भी अधिसूचना जारी हो चुकी है. 19 जुलाई को नामांकन दाखिल करने की अंतिम तिथि है. वहीं 6 अगस्त को चुनाव होंगे. इसके पहले देश के नए राष्ट्रपति का चुनाव भी हो जाएगा. ऐसे में सवाल है कि उपराष्ट्रपति चुनाव कैसे होता है? क्या राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव में कोई अंतर है? वोटिंग कैसे होती है? क्या इसमें भी राष्ट्रपति चुनाव से कोई अंतर है? तो इं सब बारे में हम आज डीटेल में जानेंगे.
राष्ट्रपति चुनाव और उपराष्ट्रपति चुनाव में अंतर
राष्ट्रपति चुनाव में देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के विधायक, लोकसभा सांसद और राज्यसभा सांसद को वोट डालने का अधिकार होता है. मगर, संसद के मनोनीत सदस्य और किसी राज्य के विधान परिषद के सदस्य को वोट डालने का अधिकार नहीं होता है. वहीं उपराष्ट्रपति चुनाव में किसी राज्य के विधायक वोट नहीं डालते. बल्कि सिर्फ सांसद ही वोटिंग करते हैं. इसके साथ ही उपराष्ट्रपति चुनाव में मनोनीत सांसदों को भी वोट करने का अधिकार होता है.
एक सांसद का वोट वैल्यू 1 ही होता है
राष्ट्रपति चुनाव में जहां एक सांसद का वोट वैल्यू 1 ना होकर 700 है, वहीं उपराष्ट्रपति चुनाव में नियम थोड़ा अलग है. इस चुनाव में प्रत्येक सांसद का वोट वैल्यू 1 ही होता है. मतलब की अगर मान लें कि 757 सांसदों ने वोट डाले हैं तो कुल वोट भी 757 ही होंगें. यही अगर राष्ट्रपति चुनाव की वोटिंग होती तो वोट वैल्यू के लिए हमें सांसदों की संख्या को 700 से गुना करना पड़ता.
वोटिंग का क्या तरीका है?
उपराष्ट्रपति चुनाव में वोटिंग का तरीका राष्ट्रपति चुनाव से मिलता-जुलता ही है. उपराष्ट्रपति चुनाव में चुनाव इलेक्शन अनुपातिक प्रतिनिधि पद्धति यानि कि election by proportional representation method से किया जाता है. इसमें वोटिंग खास तरीके से होती है जिसे सिंगल ट्रांसफेरेबल वोट सिस्टम कहते हैं. आसान शब्दों में बात करें तो प्रत्येक वोटर को एक ही वोट देना होता है. मगर, उसे प्रत्येक उम्मीदवारों को अपना प्रेफ्रेंस देना होता है. मतलब कि पसंदीदा प्रत्याशी को 1 नंबर, इसके बाद 2 नंबर और ऐसे ही आगे दिया जाता है.
वोटों की गिनती कैसे होती है....
उपराष्ट्रपति के लिए पड़े वोटों में गिनती के दौरान सबसे पहले ये देखा जाता है कि सभी उम्मीदवारों को पहली प्राथमिकता वाले कितने वोट मिले हैं. फिर पहली प्राथमिकता यानि कि जिन्हें वोटरों ने एक नंबर की पसंद पर रखा था उनके वोटों को जोड़ा जाता है. फिर पूरे वोटों को 2 से भाग दिया जाता है और उसके भागफल में फिर एक जोड़ा जाता है. अब जो संख्या मिलती है उसे वह कोटा माना जाता है जो किसी उम्मीदवार को काउंटिंग में बने रहने के लिए जरूरी है.अगर पहली गिनती में ही कोई कैंडिडेट जीत के लिए जरूरी कोटे के बराबर या इससे ज्यादा वोट हासिल कर लेता है तो उसे विजयी घोषित कर दिया जाता है. अगर ऐसा नहीं होता है तो गिनती की प्रक्रिया आगे जारी रहती है.
पहली बार में जिसे कम वोट मिलते हैं तो उसे इस रेस से बाहर कर दिया जाता है. फिर पहली प्राथमिकता देने वाले वोटों में यह देखा जाता है कि दूसरी प्राथमिकता किसे दी गई है. फिर दूसरी प्राथमिकता वाले ये वोट अन्य उम्मीदवारों के खाते में ट्रांसफर कर दिए जाते हैं. इन वोटों के मिल जाने से अगर किसी उम्मीदवार के मत कोटे वाली संख्या के बराबर या ज्यादा हो जाएं तो उस उम्मीदवार को विजयी घोषित कर दिया जाता है. अगर फिर भी कोटा के बराबर वोट किसी को नहीं मिलता है तो ये प्रक्रिया जारी रहती है, और ये प्रक्रिया तब तक जारी रहती है जब तक विजयी उम्मीदवार ना मिल जाए.
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