टीएनपी डेस्क (TNP DESK): झारखंड सरकार ने 2016 में एक नियोजन नीति बनाई थी. जिसके मुताबिक 13 अनुसूचित जिलों के निवासियों को ही तृतीय और चतुर्थ श्रेणी पदों पर नियुक्त करने का प्रावधान था. इसके बाद इन जिलों में 8423 और गैर अनुसूचित जिलों में 9149 पदों पर नियुक्ति प्रक्रिया शुरू हुई. लेकिन मामला तब हाईकोर्ट पहुंचा तो नीति को रद्द कर करने का आदेश कोर्ट ने दिया. उसके बाद सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई बीते दिन सुप्रीम कोर्ट ने नियोजन नीति को ही असंवैधानिक बता दिया है.
क्या कहा अदालत ने
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक राज्य सरकार अनुसूचित क्षेत्र में स्थानीय उम्मीदवारों के लिए 100 फीसदी आरक्षण तय नहीं कर सकती. यह पूरी तरह असांविधानिक है और सार्वजनिक रोजगार में गैर-भेदभाव के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है. नागरिकों को समान अधिकार हैं और एक वर्ग के लिए अवसर पैदा करके दूसरों को पूरी तरह से बाहर करने पर संविधान निर्माताओं ने विचार नहीं किया था. अदालत ने 100 फीसदी आरक्षण प्रदान करने संबंधी 2016 में जारी एक अधिसूचना को रद्द कर दिया. जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की बेंच ने कहा, संबंधित अनुसूचित जिलों व क्षेत्रों के केवल स्थानीय निवासियों के लिए प्रदान किया गया 100 फीसदी आरक्षण भारत के संविधान के अनुच्छेद-16 (2) का उल्लंघन है. यह गैर-अनुसूचित क्षेत्रों व जिलों के अन्य उम्मीदवारों व नागरिकों के अधिकारों को प्रभावित करने वाला है। राज्य विधानमंडल को ऐसा करने की शक्ति नहीं है. इसलिए अधिसूचना अनुच्छेद-16(3) और 35 का उल्लंघन है.
नहीं हटेंगे बहाल शिक्षक
बेंच ने साथ ही बहाल शिक्षकों को बरकरार रखा है। कहा कि जिन अनुसूचित जिलों में शिक्षकों की नियुक्ति हो गई है, उनकी सेवा बहाल रहेगी. क्योंकि आदिवासी बहुल इलाकों में पहले से ही शिक्षकों की कमी है. यदि शिक्षकों को हटाया गया तो वहां के छात्रों को नुकसान होगा.
जानिये 13 अनुसूचित जिले कौन-कौन
रांची, खूंटी, गुमला, सिमडेगा, लोहरदगा, पश्चिमी सिंहभूम, पूर्वी सिंहभूम, सरायकेला-खरसावां, लातेहार, दुमका, जामताड़ा, पाकुड़, साहिबगंज.
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