TNP DESK:आज हम झारखंड के लातेहार जिले में स्थित एक किला के बारे में जाएंगे, जो चेरो राजवंश की समृद्ध विरासत और स्थापत्य कला का प्रतीक है.बता दे यह किला दो भागों में बटा हुआ है—पुराना किला और नया किला—जो बेतला नेशनल पार्क के घने जंगलों में स्थित हैं .
पलामू फोर्ट
पलामू फोर्ट का निर्माण 16वीं शताब्दी में रकसेल राजाओं के द्वारा किया गया था.लेकिन बाद में, चेरो राजवंश के राजा मेदिनीराय ने वर्ष 1658–1674 में इसे एक मजबूत किले में परिवर्तित किया.बता दे उन्होंने नागवंशी राजा रघुनाथ शाह को हराकर इस क्षेत्र में अपनी सत्ता स्थापित की और किले का फिर से र्निर्माण कराया था. जहां मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल में 1574 में राजा मानसिंह ने इस पर आक्रमण किया, लेकिन मेदिनीराय के बाद भी किला चेरो राजाओं के अधीन रहा.
पुराना किला
पलामू फोर्ट का पुराना किला लगभग 3 वर्ग किलोमीटर एरिया में फैला हुआ है, जिसमें तीन मुख्य द्वार हैं.यह मुख्य द्वार "सिंह द्वार" के नाम से जाना जाता है. इस किले की दीवारें 25 फीट ऊंची और 7 फीट चौड़ी हैं. वही किला के अंदर एक दो-मंजिला दरबार हॉल है, जहां राजा आपने समय में न्याय करते थे.किले के अंदर एक जलप्रणाली थी जो अब खंडहर में बदल चुकी है.इसके अलावा दूसरे द्वार के बाद तीन हिंदू मंदिर हैं, जिन्हें बाद में मुगलों द्वारा मस्जिद में परिवर्तित किया गया था.
नया किला
पलामू फोर्ट का नया किला पुराने किले के पश्चिम में एक पहाड़ी पर है. इस किला का निर्माण 1673 में राजा मेदिनीराय ने अपने पुत्र प्रताप राय के लिए शुरू किया था, पर यह अधूरा रह गया.इस किले का मुख्य द्वार को "नागपुरी द्वार" भी कहा जाता है, जिसमें नागपुरी ढंग की नक्काशी है. यहां संस्कृत और अरबी/फारसी में दीवार पर कुछ कुछ लिखे हुए भी देखे जाते है.
वर्तमान स्थिति और संरक्षण
पलामू किला अब पलामू टाइगर रिजर्व (PTR) के अंडर आता है. बता दे किले की दीवारों पर उगी झाड़ियाँ और पेड़ साफ नहीं किए जा सकते, जिसके कारण यह धीरे-धीरे खंडहर में बदल रहा है. चेरो राजवंश के उत्तराधिकारी किले को वन क्षेत्र से मुक्त करने की मांग कर रहे हैं, ताकि इसको संरक्षण और टूरिस्ट प्लेस के रूप में बदला जा सके.
चुनौतियाँ
पलामू फोर्ट की सफाई और संरक्षण की स्थिति काफी खराब है.जहां घूमने गए लोगों द्वारा फैलाए गए कचरे के कारण परिसर में हर तरह गंदग ही फैला हुआ है.इसके अलावा, पार्किंग शुल्क के नाम पर अवैध वसूली की शिकायतें भी सामने आई हैं, जिससे टूरिस्ट न खुश रहते है.पलामू फोर्ट न केवल झारखंड की ऐतिहासिक धरोहर है, बल्कि यह क्षेत्र की सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक भी है.
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