देवघर (DEOGHAR) : पहले जमाने में जब टीवी, कंप्यूटर, इंटरनेट, मोबाइल नहीं थे, उनदिनों रामलीला का आयोजन किया जाता था. अपार भीड़ उमड़ती थी. मंच पर रामायण देखने के लिए लोग दूर दूर से आते थे. मंचन के जरिए समाज तक सकारात्मक संदेश पहुंचता था. लेकिन अब सोशल मीडिया के मकड़जाल में लोग ऐसे फंस चुके हैं कि रामलीला विलुप्ति के कगार पर पहुंच चुका है. रामलीला के किरदार भूखमरी के हालात से जूझ रहे हैं. इन कलाकारों को प्रोत्साहित करने और समृद्ध संस्कृति की वापसी के लिए देवघर में एक पहल की गई है. कई वर्षों बाद बाबा नगरी में रामलीला का आयोजन किया जा रहा है. पुनासी दुर्गा पूजा समिति द्वारा आयोजित रामलीला का पूर्व मंत्री और राजद नेता सुरेश पासवान ने फीता काटकर इसकी शुरुआत की. दशमी तक लोग यहां रामायण का मंचन देख सकेंगे.

भूखमरी की हालत

 इस मौके पर इलाहाबाद, वाराणसी से आये कलाकारों ने पहले रामलीला की प्रस्तुति दी. द न्यूज पोस्ट से हुई बातचीत में इस दौर में हो रही कठिनाई को भी  साझा किया. कलाकार बबलू ठाकुर कहते हैं कि आज इस कला के कद्रदानों की कमी होने से रामायण के हर चरित्र को जीवंत दर्शाने वाले कलाकर भूखे सोने को विवश हैं. वहीं कलाकार साेमप्रकाश कहते हैं कि रामलीला के किरदार भूखमरी के हालात से जूझ रहे. ऐसे ही हालात रहे तो हमें कटोरा लेकर भीख मांगनी पड़ेगी. ज्यादातर कलाकार दूसरे रोजगार को अपना चुके हैं.

याद आते हैं वे दिन

उनदिनों हर कोई रामलीला देख कर रामायण की जानकारी प्राप्त कर लेते थे. देवघर के वयोवृद्ध देवकी नंदन शर्मा उनदिनों को याद करके भावुक हो उठते हैं. कहते हैं, बच्चों को रामलीला दिखाने ले जाने के लिए कई दिनों पहले से तैयारी शुरू हो जाती थी.  बच्चों के उस दिन में सुला दिया जाता था, ताकि रात में तंग न करे. वहीं,समाजसेवक महेश सिन्हा कहते हैं कि  रामलीला के मंचन से समाज में फैली बुराइयों से मुक्ति दिलाने वाली लीलाओं को दिखाने की परम्परा थी.  लोग दूर-दूर तक जाकर देखते थे, और उसकी अच्छाइयों को ग्रहण करते थे. रामलीला में धार्मिक भावनाओं के साथ बुराई पर अच्छाई की जीत को दर्शायी जाती थी. भगवान द्वारा किस तरह से विश्व कल्याण के लिए कार्य किया गया, इसका जीवंत मंचन होता था. पूरा  क्षेत्र भक्तिमय हो जाता था. रात में रामलीला देख लोग हर किरदार की अगले दिन विस्तृत चर्चा करते थे. फिर आगे की कहानी देखने के लिए सपरिवार रामलीला आयोजित स्थल पर पहुंचते थे.

 

 रिपोर्ट :ऋतुराज सिन्हा (देवघर )