समीर हुसैन (RANCHI):  वैसे तो झारखंड खनिज संपदा के लिए जाना जाता है. लेकिन झारखंड के कई इलाके ऐसे हैं.  जहां विभिन्न क्षेत्रों में शोध कर इतिहास की किताबे लिखी जा सकती है. ऐसा ही एक गाँव पलामू जिला मुख्यालय से 80 किलोमीटर दूर सोन और कोयल नदी के संगम पर बसा है-कबरा कला गाँव. यह गाँव कई रहस्य छुपाए है. खुदाई से मिले अवशेष साबित करते हैं कि 3500 वर्ष से भी पहले कबरा कला में बड़ी आबादी रहा करती थी.  हुसैनाबाद अनुमंडल से 15 किमी दूर हैदरनगर प्रखण्ड क्षेत्र में उत्तर और पश्चिम क्षेत्र में बसे कबरा की जमीन से हमेशा कई पुरातत्व से संबंधित अवशेष मिलते रहते हैं. सर्वेक्षण के दौरान कई ऐसे औजार मिले थे. जिसकी जांच स पता चलता है कि यह 3500 वर्ष से भी पुराना है.     

                                       

उत्तर पाषाण काल से लेकर मुगल काल तक था गाँव

कबरा कला गाँव से उत्तर पाषाण काल से लेकर मुगल काल तक के अवशेष मिलते हैं. पुरातात्विक दृष्टि से देखें तो कबरा कला गाँव कोई नया गाँव नहीं है. हर काल में यहाँ लोग मौजूद थे. यह इलाका काभी सुना नहीं हुआ है. आज भी इस गाँव में 1500 से दो हजार की आबादी है.  प्राचीन काल में यह पाटलीपुत्र और मालवा से नदी मार्ग से सीधे जुड़ा था.  यहां मिट्टी के विशाल ढूहों से जो अवशेष मिले हैं, वह इस बात को प्रमाणित करते हैं कि यहां नागर सभ्यता रही है। इसके साथ ही पत्थर के मिले औजार उत्तर पाषाण काल तक जाते हैं.

भारतीय पुरातत्व विभाग ने 2005 में अपनी पत्रिका की रिव्यू में भी कबरा कला का जिक्र किया है. पत्रिका के मुताबिक कबरा कला में मिले अवशेष से नियोलीथिक से लेकर मध्यकाल के स्पष्ट संकेत करते हैं. हुसैनाबाद निवासी तपास डे लंबे समय से कबरा कला पर शोध कर रहे हैं. उनका मानना है कबरा मध्यपुरापाषाण काल, नव पाषाण काल, ताम्रपाषाण, लौहयुग,मौर्यकाल के अवशेष मिले हैं. उनके मुताबिक यहाँ चालीस से अस्सी हजार के बीच कालखंड के पत्थरों के औजार मिले है. जिससे उस समय लोग हथियार के रूप में इस्तेमाल करते थे.  कबरा कला पाषाण काल के बाद मौर्य युग तक में एक विकासित क्षेत्र था.    

बिहार पुरत्वत विभाग ने माना 3500 वर्ष पुराना है गाँव

कबरा कला गाँव में भारतीय पुरातत्व विभाग की टीम पहली बार 16 दिसम्बर 1999 और दूसरा दल 6 अप्रैल 2000 में सर्वेक्षण के लिए पहुंचा था. सर्वेक्षण टीम को  कबरा कला में ऊपरी सतह पर कई अवशेष के टुकड़े मिले थे. जिसे देख कर यह बताया गया था कि अवशेष 2600 वर्ष पुराना था. वहीं पुरातत्व विभाग बिहार के उपाधीक्षक ने इसे 3600 वर्ष पुराना बताया था. वहीं भारतीय पुरातत्व विभाग के निदेशक डॉ . अमरेन्द्र के नेतृत्व में आई टीम ने कबरा कला में मिले अवशेषों को देख कर प्रसन्न हो गए थे. उनके मुताबिक कबरा कला देश के इतिहास में नई कड़ी जोड़ सकता है.उनके दौरे के बाद कबरा कला गाँव को एतिहासिक स्थल के रूप में चिन्हित किया गया है. लेकिन अबतक कुछ आगे कार्रवाई नहीं हो सकी. कबरा कला गाँव में चार वर्ष पहले रांची से गई टीम ने कुछ जगहों पर खुदाई की थी. जिसमे मिट्टी के रिंग घड़ा सहित कई समान बरामद हुए थे. उससे यह भी अंदाज लगाया गया था कि मुगल काल में कबरा कला गाँव एक व्यपार नगरी के रूप में था. यहाँ से समान की खरीदारी कर रोहतास के पहाड़ पर मौजूद अकबर बादशाह के किले तक सामान जाता था. ऐसा लोग मानते है. कि सोन नदी के रास्ते रोहतास जिला सामने पड़ता है. जिससे मुगल काल में कबरा कला गाँव में बड़ा व्यापार से भरा इलाका था.         

                                               

जमीन के ऊपर ही मिलते है कई अवशेष

कबराकला गांव से मिले अवशेषों को देखा जाए तो यहां से पुरापाषाण काल की विदरणी मिली हैं जिनका काल खंड 40 हजार तक जाता है.  यहां से नवपाषण काल की विभिन्न रंग एवं आकार की चार कुल्हाडिय़ा प्राप्त हुई हैं। ताम्र युग मृदभांड के टुकड़े, पूजा करने वाले जलपात्र मिले हैं.  यहां पाल, मुगल और ब्रिटिश काल के प्रचीन मिलते रहते हैं.  यहां लौह काल की लहसीलन (पिछला हुआ लौह) तथा मिट्टी भी है.  इसके साथ ही अस्थि पंजर, चूडिय़ां, मनके, टेराकोटा के खिलौने व अन्य सामान भी ऊपर सतह पर मिलते रहते हैं.  इनमें से बहुत कुछ सामानों को तापस डे ने सहेजकर रखा है.

                               

कुड़वा कला गाँव में भी मिले है कई अवशेष

इसके साथ कुड़वा कला गांव में, जो जपला-डेहरी आनसोन रोड से दस किमी भीतर स्थित है, वहां भी उत्तरकालीन मृदभांड मिले हैं.  इसके साथ ही लाल, काले पालिशदार मिट्टी के बर्तन, लाल पालिश की हुई सुराही और अंगूठे के आकार का एक सर्प का सिर मिला है। इस सर्प के दो कान बने हुए हैं। इसका एक कान खंडित हो गया है। जाहिर है, या तो यहां #शैवों की उपस्थिति रही होगी या नागवंशियों की। हालांकि झारखंड में दोनों की उपस्थिति रही है.  पर, इतने महत्वपूर्ण स्थल की खुदाई आज तक नहीं हुई जबकि तापस डे मानते हैं कि खुदाई से केवल नागर सभ्यता ही नहीं मिलेगी बल्कि मोहनजोदड़ो और सिंधु घाटी की सभ्यता से भी पहले की सभ्यता से साक्षात्कार हो सकता है.