टीएनपी डेस्क (TNP DESK) : छठ महापर्व की शुरुआत आज से हो चुकी है. यह पर्व सूर्य देव और छठी मैया की उपासना को समर्पित है. इस पावन व्रत को महिलाएं अपनी संतान की लंबी उम्र, स्वास्थ्य और परिवार की सुख-समृद्धि के लिए रखती हैं. इस वर्ष छठ पूजा 25 अक्टूबर, शनिवार से आरंभ होकर 28 अक्टूबर, मंगलवार को संपन्न होगी. चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व के हर दिन की अपनी अलग परंपरा और धार्मिक महत्ता होती है.
शास्त्रों में छठ का महत्व
धार्मिक मान्यता के अनुसार, कार्तिक मास में सूर्य अपनी नीच राशि में रहते हैं, इसलिए इस समय सूर्य उपासना का विशेष फल मिलता है. छठी मैया को संतान, परिवार और समृद्धि की रक्षक देवी माना जाता है. ऐसा विश्वास है कि सच्चे मन से किया गया व्रत जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लेकर आता है.
नहाय-खाय की विधि (पहला दिन)
छठ पर्व की शुरुआत “नहाय-खाय” से होती है. इस दिन व्रती महिलाएं प्रातःकाल गंगा, नदी, तालाब या किसी पवित्र जलाशय में स्नान करती हैं. इसके बाद वे शुद्ध वस्त्र पहनकर रसोई और पूजा स्थल की सफाई करती हैं. मान्यता है कि छठी मैया पवित्रता और स्वच्छता की प्रतीक हैं, इसलिए इस दिन घर और रसोई में कोई अशुद्धि नहीं होनी चाहिए.
इस दिन व्रती एक बार ही सात्विक भोजन करते हैं, जिसे “नहाय-खाय प्रसाद” कहा जाता है. यह भोजन मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ी या गोबर के उपलों से बनाया जाता है. इसमें कद्दू की सब्जी, चने की दाल और सादा चावल शामिल होते हैं. इसी दिन व्रती आगामी तीन दिनों तक संयम, शुद्धता और भक्ति का पालन करने का संकल्प लेते हैं.
खरना (दूसरा दिन)
छठ का दूसरा दिन “खरना” या “लोहंडा” कहलाता है. इस दिन व्रती पूरे दिन निर्जला उपवास रखते हैं और शाम को प्रसाद बनाकर छठी मैया को अर्पित करते हैं. इसके बाद व्रती प्रसाद ग्रहण करते हैं, जिसे ग्रहण करने के बाद ही अगले 36 घंटे का निर्जला व्रत आरंभ होता है.
संध्या अर्घ्य (तीसरा दिन)
तीसरे दिन को “संध्या अर्घ्य” कहा जाता है. इस दिन शाम के समय व्रती और श्रद्धालु घाटों पर एकत्र होकर अस्त होते सूर्य (अस्ताचलगामी सूर्य) को अर्घ्य देते हैं. दीप, फल और ठेकुआ जैसे प्रसाद से पूजा की जाती है.
उषा अर्घ्य (चौथा दिन)
चौथा दिन “उषा अर्घ्य” या “भोर का अर्घ्य” कहलाता है. इस दिन व्रती सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं और अपने 36 घंटे के कठिन निर्जला व्रत का समापन करते हैं. इसके साथ ही छठ महापर्व की विधिवत समाप्ति होती है.
यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह पवित्रता, संयम, श्रद्धा और परिवार के प्रति समर्पण की भावना को भी दर्शाता है.

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