धनबाद (DHANBAD) : धनबाद -बोकारो के बहाने झारखंड में बड़े पूंजी निवेश की संभावना बढ़ गई है. बोकारो स्टील प्लांट का विस्तार के साथ ही यह पूंजी निवेश होगा. स्टील प्रोडक्शन के लिए कोकिंग कोल् की जरूरत होगी और इस वजह से कोकिंग कोल की परियोजनाओं में भारी निवेश हो सकता है. शनिवार को मुंबई में इंडिया स्टील की वार्षिक अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी में देश-विदेश के विशेषज्ञ पहुंचे थे. कोयला उद्योग के अधिकारी भी थे. सम्मेलन में कोयला एवं खान मंत्री जी किशन रेड्डी भी मौजूद थे. बता दें कि बोकारो स्टील प्लांट के विस्तार में एक आंकड़े के मुताबिक 20,000 करोड रुपए का निवेश हो सकता है. इससे रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे.
उत्पादन क्षमता अगले पांच सालो में 7.61 मिलियन टन का है लक्ष्य
बोकारो स्टील प्लांट की क्षमता फिलहाल 4.66 मिलियन टन प्रति वर्ष से बढ़कर अगले 5 सालों में 7.61 मिलियन टन प्रतिवर्ष होना है. इसके लिए कोकिंग कोल् की भी जरूरत होगी. इस वजह से उम्मीद की जाती है कि कोकिंग कोल् की नई परियोजनाएं शुरू की जा सकती है और इससे झारखंड के धनबाद सहित अगल-बगल के इलाकों में भारी पूंजी निवेश हो सकता है. उक्त सम्मेलन में कोयला मंत्री ने कहा कि इस्पात सेक्टर भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है. कोयला और खनन क्षेत्र इससे भी अधिक मजबूत रीढ़ है. पिछले वित्तीय वर्ष में एक बिलियन टन कोयला उत्पादन और ट्रांसपोर्टेशन का रिकॉर्ड बनाया है. खैर, यह तो हुई आंकड़े की बात लेकिन इतना तय है कि बोकारो स्टील प्लांट की क्षमता बढ़ने से कोकिंग कोल परियोजनाएं खुलेगी और इसमें भारी पूंजी निवेश होगा. रोजगार के भी अवसर मिलेंगे.
बोकारो इस्पात कारखान सार्वजनिक क्षेत्र में चौथा इस्पात कारखाना है.
बता दें कि बोकारो इस्पात कारखान सार्वजनिक क्षेत्र में चौथा इस्पात कारखाना है. यह सोवियत संघ के सहयोग से 1965 में प्रारम्भ हुआ. आरम्भ में इसे 29 जनवरी 1964 को एक लिमिटेड कम्पनी के तौर पर निगमित किया गया और बाद में सेल के साथ इसका विलय हुआ. पहले यह सेल की एक सहायक कम्पनी और बाद में सार्वजनिक क्षेत्र लोहा और इस्पात कम्पनियां (पुनर्गठन एवं विविध प्रावधान) अधिनियम 1978 के अंतर्गत एक यूनिट बनाई गई. कारखाने का निर्माण कार्य 6 अप्रैल 1968 को प्रारम्भ हुआ. यह कारखाना देश के पहले स्वदेशी इस्पात कारखाने के नाम से विख्यात है. इसमें अधिकतर उपकरण, साज-सामान तथा तकनीकी कौशल स्वदेशी ही है. कारखाने का 17 लाख टन इस्पात पिण्ड का प्रथम चरण 2 अक्टूबर 1972 को पहली धमन भट्टी चालू होने के साथ ही शुरू हुआ तथा निर्माण कार्य तीसरी धमन भट्टी चालू होने पर 26 फ़रवरी 1978 को पूरा हो गया.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो
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