Ranchi-एक तरफ जहां पूर्व भाजपा सांसद और आदिवासी सेंगेल अभियान के अध्यक्ष सालखन मुर्मू ने राष्ट्रपति मुर्मू को पत्र लिख कर यह दावा किया है कि हेमंत सोरेन की सरकार के द्वारा सीएनटी-एसपीटी एक्ट में थाना क्षेत्र को नये सिरे से परिभाषित करने की कोशिश आदिवासी समाज के हाथों से उसकी जमीन छिनने के समान है, और इसके बाद उनकी सारी जमीन हाथ से निकल जायेगी. वहीं झारखंड कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष और पूर्व मंत्री बंधु तिर्की ने इस तरह की खबरों को पूरी तरह से निराधार बताया है.

ट्राइबल एडवाइजरी कमेटी की बैठक  में इस बाबत नहीं हुआ है कोई फैसला

बंधु तिर्की ने दावा किया है कि ट्राइबल एडवाइजरी कमेटी की बैठक में अभी सिर्फ लोगों से इस बाबत राय मांगी गयी है, अभी तक कोई फैसला नहीं हुआ है, लोगों से इसके लाभ और हानि पर विचार करते हुए राय की मांग की गयी है, लेकिन कुछ लोग ने तो अभी से ही इस मुद्दे पर अपनी सियासत तेज कर दी है, जिन लोगों को भी लगता है कि यह गलत फैसला है, और आदिवासी समाज को इससे नुकसान हो सकता है, उन्हे सामने आ कर अपनी राय रखनी चाहिए, हेमंत सोरेन की सरकार किसी पर कोई बात थोपती नहीं है, जो भी फैसले लिये जाते हैं, उसके पहले उसके सारे आयाम पर चर्चा की जाती है, चुंकि इस बात की मांग काफी अर्से हो रही थी, इसी कारण से इस विषय पर एक चर्चा की शुरुआत की गयी है. इसके साथ  ही बंधु तिर्की ने यह सवाल भी खड़ा किया कि क्या आदिवासी समाज को अपने थाना क्षेत्र से बाहर जाकर जमीन खरीदने का अधिकार नहीं होना चाहिए, क्या यह सत्य नहीं है कि थाना क्षेत्र की वर्तमान बाध्यता के कारण आदिवासी समाज को उनकी जमीन का उचित कीमत नहीं मिल पाता, इसके साथ ही और भी कई सारे सवाल है, जिसका जवाब हमें तलाशना चाहिए, और बड़ी बात यह है कि जमीन की खरीद तो आदिवासी ही करेगा, तो फिर आदिवासी समाज के हाथ से जमीन निकलने के दावे में कितना दम है.

सालखन मुर्मू ने जतायी थी आपत्ति

ध्यान रहे कि सालखन  मुर्मू ने राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू को भेजे अपने पत्र में हेमंत सरकार के इस निर्णय पर अपनी आपत्ति जतायी है, अब इसी मामले में सारी जानकारी को सामने रखते हुए बंधू तिर्की ने दावा किया कि यह महज अफवाह है, और सच्चाई मात्र इतनी है कि ट्राइबल एडवाइजरी कमेटी की बैठक में अभी महज इस पुरानी मांग पर चर्चा करने को कहा गया है, ताकि यदि जरुरत महसूस हो तो आदिवासी समाज के व्यापक हित में बदलाव किया जा सके, किसी भी आदिवासी समाज की जमीन किसी गैर आदिवासी समाज के पास जाने नहीं जा रही है. लेकिन मीडिया के  एक हिस्से द्वारा इसे इसी रुप में रखने की कोशिश की जा रही है. जो दुर्भाग्यपूर्ण है.

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