TNPDESK: 10 मोहर्रम यानि असुरा का दिन. जब कर्बला के मैदान में हजरत इमाम हुसैन के साथ 72 साथियों को यजीद की फौज ने शहीद कर दिया था. यह समय था 61 हिजरी(680 इस्वी) का था. इस जंग में हुसैन का पूरा परिवार को यजीद के लश्कर ने खत्म कर दिया. नन्हें अली असगर को तीर मार दिया. औरतों बच्चों पर घोड़े दौड़ाये गए. बर्बरता की सारी हद को पार कर दिया. हुसैन के सर को धड़ से अलग कर कुफा में घुमाया. यजीद इसे जश्न के रूप में मना रहे थे. इस जंग में एक तरफ 22 हजार का लश्कर था दूसरी तरफ हुसैन के 72 साथी.

इस कर्बला की जंग में एक तरफ हुसैन थे दूसरे तरफ यजीद था. जंग शुरू होने से तीन दिन पहले ही पानी बंद कर दिया गया. खाने को हुसैन के कैम्प में कुछ नहीं था. बच्चे प्यासे थे. लेकिन वह हार नहीं मानें. हक और सच्चाई के लिए डटे रहे. यजीद की फौज ने 10 मुहर्रम को हुसैन के साथ जंग शुरू कर दिया. हुसैन चाहते तो वह बच सकते थे. लेकिन उन्होंने सच्चाई का साथ दिया. भूखे प्यासे रहने के बाद भी जंग में डट कर सामना किया.

10 मोहर्रम को जब जंग शुरू हुई. लेकिन इससे पहले हुसैन ने देर रात जब नमाज के  लिए मेम्बर पर खड़े हुए तो उन्होंने एक ऐलान किया. जिसमें उन्होंने अपने साथियों से कहा आप में से जो लोग जाना चाहते है चले जाइए. अब जंग की शुरुआत होने वाली है. इतना बोल कर हुसैन ने चिराग को बंद कर दिया. उन्होंने कहा कि वह नहीं देख रहे है. आप निकल जाइए. लेकिन जब चिराग दुबारा जलाया तो देखा कि सब वही थे और रोते हुए साथियों ने कहा अगर आप भाग जाएंगे तो कयामत के दिन कैसे मुंह दिखा पाएंगे. इतने सुनते ही सभी रोने लगे.    

अब 10 मुहर्रम की सुबह हुई. प्यास से हलख सुख रहे थे. लेकिन सामने यजीद का लश्कर पहुँच गया. जंग का ऐलान हुआ.यजीद आखरी समय तक चाह रहा था की हुसैन उसके सामने झुक जाए. उसके सामने अपने साथियों के साथ बैत कर ले. लेकिन हुसैन ने अल्लाह को याद किया और जालिम के सामने झुकने से इंकार कर दिया. आखिर में इस जंग में जब हुसैन शहीद हो गए. उनके 6 माह के लाल जो तीन दिन से प्यासे थे. उनके गले में तीर मार दिया. हुसैन के साथ सभी शहीद हो गए.

इसके बाद यजीद की फौज ने हुसैन के सर को एक तस्त में रख कर पूरे कुफा में घुमाया. इसके बाद इराख के शहर दमिश्क ले जाया गया. जहां यजीद के पास पेश किया गया. यजीद एक ऐसा जालिम था. जिसकी फौज ने शहीद करने के बाद उनके साथियों की लाश पर घोड़े दौड़ाये. सारी हद पार कर दी गई थी.

कर्बला की जंग हमे यह हिम्मत देती है कि कभी भी गलत के सामने झुकना नहीं है. क्यों ना सर काट दिया जाए. इस जंग पर कई शायर ने अपनी पंक्ति भी लिखा है. जिसमें वह बोलते है झुकता ही नहीं सर किसी जालिम के सामने, हिम्मत ही ऐसी दे गया हुसैन है. इसके अलावा और लिखते है कि जंग अगर जालिम से हो तो लश्कर नहीं देखा करते हैं.