Patna- अपने उग्र राजनीतिक तेवर और अबूझ पैतरों के लिए जाने वाली पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और राजनीति की दुनिया में ‘दीदी’ के नाम से संबोधित होती रही है ममता बनर्जी ने 23 जून को विपक्षी दलों की पटना में आयोजित बैठक के पहले एक ऐसी शर्त लगा दी है कि सीएम नीतीश कुमार के माथे पर चिंता की लकीर साफ -साफ दिखाई देने लगी है. कांग्रेस के लिए भी दुविधा की स्थिति पैदा हो गयी है. विपक्षी दलों की बैठक के एन पहले दीदी के इस शर्त को कांग्रेस और नीतीश के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है.
सीपीएम से हाथ मिलाने के बाद हमसे मदद की उम्मीद बेकार
दरअसल ममता बनर्जी ने कहा है कि हम कांग्रेस को पूरे भारत में साथ देने को तैयार है, विपक्षी एकता के हम भी उतने ही बड़े पैरोकार हैं, लेकिन यदि कांग्रेस पश्चिम बंगाल में सीपीएम के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की सोचती भी है तो, हमसे किसी मदद की उम्मीद बेकार है.
केरल में एक दूसरे के मुकाबले खड़ी है कांग्रेस और सीपीएम
ध्यान रहे कि सीपीएम-सीपीआई की केरल में सरकार है, यहां उसका मुख्य मुकाबला कांग्रेस के साथ है. केरल में कभी कांग्रेस के नेतृत्व में यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (UDF) की सरकार बनती है तो कभी सीपीएम के नेतृत्व में लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (LDF) की. बावजूद दोनों विपक्षी एकता के इस फ्रंट में शामिल होने को तैयार है.
फिर ममता बनर्जी को क्या परेशानी है
इसके विपरित पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के नेतृत्व में तृणमूल की सरकार है, जबकि कुछ करीबन दो दशक पहले तक वहां सीपीएम की सरकार थी, आज सीपीएम प्रमुख विपक्षी दल की भूमिका में है. कांग्रेस वहां अपने आप को किसी प्रकार से तीसरे स्थान के लिए संघर्ष करती नजर आ रही है, लेकिन पिछले विधान सभा उपचुनाव में उसने सीपीएम के साथ मिलकर तृणमूल उम्मीदवार को पराजित करने में सफलता प्राप्त की थी.
कांग्रेस और सीपीएम के मिलन से सहमी हैं ममता
शायद यही कारण है कि ममता बनर्जी कांग्रेस और सीपीएम के इस मिलन से सहमी हुई है, और अब कांग्रेस के सामने सीपीएम के साथ हाथ नहीं मिलाने का आश्वासन मांग रही है. लेकिन बड़ा सवाल यह है कि जब केरल में एक दूसरे से मुकाबला करती कांग्रेस और सीपीएम विपक्षी दलों की एकजुटता के मुद्दे पर हाथ मिला सकती है तो फिर ममता बनर्जी की परेशानी क्या है. दूसरी ओर खबर यह भी है कि ममता बनर्जी की कोशिश पश्चिम बंगाल में कांग्रेस को अपने साथ लाने की है. ताकि सीपीएम के खतरे को कम किया जा सके.
अब सबकी निगाहें विपक्षी एकता के सूत्रधार नीतीश की ओर
हालांकि इस मुद्दे पर विपक्षी एकता के सूत्रधार बन कर उभरे नीतीश कुमार की अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी है, देखना होगा कि क्या नीतीश कुमार अंत समय तक इस मामले का कोई समाधान निकालने में सफल हो पाते हैं, एक संभावना यह भी व्यक्त की जा रही कि ममता बनर्जी विपक्षी दलों की इस बैठक में अपने किसी खाश सहयोगी को भेज सकती है, ताकि विपक्षी एकता की यह गाड़ी अब अपनी रफ्तार से दौड़ती रहे और पर्दे के पीछे इस मामले का समाधान खोज लिया जाय.
                            
                        
                        
                        
                
                
                
                
                
                
                
                
                
                
                
                
                
                
                
                
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