टीएनपी डेस्क (Tnp Desk):- मधुमक्खियों का जब भी जिक्र आता है, तो पहले बात शहद की ही होती है. वही शहद जो स्वादिष्ट होने के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए भी बेहतरीन होती है. आयुर्वेद से लेकर इतिहास तक में इसके बखान ही लिखे हुए हैं, क्योंकि यह इतना गुणकारी और लाभकारी होता है. दूसरा पहलू अगर देखे तो इसे बनाने वाली मधुमक्खियां काफी खतरनाक होती है. कभी-कभी तो इसके हमले लोगों की जान तक चली जाती है. इसलिए इनसे पंगा लेना कोई नहीं चाहता . नहीं तो इसे छेड़ने का अंजाम ही बुरा होता है. सबको ये बाते मालूम है.

सरहद पर सेना का साथ निभा रही मधुमक्खियां

 आपको हैरत होगी कि यही मधुमक्खियां सरहद पर देश की हिफाजत करने में भारतीय सेना के लिए मददगार हो रही है. ये बाते आपको थोडी अजरज भरी लग सकती है. लेकिन सच्चाई तो बिल्कुल यही है. इतिहास भी गवाह है कि मधुमक्खियों ने कई जंगों में सेना का साथ ही दिया है. आज भी भारत की सीमा पर घुसपैठियों और देश के दुश्मनों को भगा रही है. ऐसे बेतरतीब तरीके से काट रही है कि सीमा पर फटकने नहीं दे रही. डर से घुसपैठिये भाग जा रहे हैं, रात हो या दिन हर समय चौकस औऱ मुस्तेद ये मधुमक्खियां रहती है. इसे छेडने पर ऐसा भयानक काटती है कि फिर जान भी बचना कभी-कभी मुश्किल हो जाता है.

भारत में सेना की तरफ से मधुमक्खियों का इस्तेमाल अवैध घुसपैठ रोकने में किया जा रहा है. इंडो-बांग्लादेश सीमा पर BSF ने अवैध घुसपैठ और तस्करी को रोकने के लिए एक अनोखी और सोची-समझी रणनीति अपनाई है. BSF की 32वीं बटालियन ने पश्चिम बंगाल के नदिया जिले में सहरद पर मधुमक्खी पालन शुरु किया और फिर डिब्बे के बाड़े पर टांगना शुरू किया हैं. इन डिब्बों में मधुमक्खियों के छत्ते लगे होते हैं, जिससे सीमा के उस हिस्से से गुजरने की कोशिश करने वाले घुसपैठिए इधर आने से ही घबराते हैं, वही तस्कर तो यहां फटकते ही नहीं है. क्योंकि किसी तरह की हरकत करने पर रात हो या दिन मधुमक्खियां तुरंत उन पर ऐसा हमला करती है कि जान बचाकर ही भागना प़ड़ता है. उनके डंक से और काटने के बाद उठने वाले लहर से वो इस कदर खौफजदा है कि कोई जोखिम लेना ही नहीं चाहते.

घुसपैठियों और तस्करों को भगा रही मधुमक्खियां

 मधुमक्खियों को अपना सहयोगी बनाने के लिए सुरक्षा बल बहुत ही एहतियात से उनका पालन करते हैं. इसके लिए मधुमक्खियों के डिब्बे को कंटीली बाड़ के पास टांग दिए जाते हैं. इसके अगल-बगल और आसपास फूलदार पौधे लगाए जाते हैं ताकि मधुमक्खियों को प्राकृतिक आवास और भोजन मिलता रहे. इनका बसेरा लेने से फायदा यही होता कि जब कोई इन कंटीले तारों को काटकर घुसने की कोशिश करता है, तो मधुमक्खियां उन पर ऐसा हमला बोल देती है कि घुसपैठियों ऐसा भागते है कि फिर दुबारा इधर आने की जहमत नहीं करते है. सबसे मजेदार बात ये है कि BSF जवानों को बाकायदा मधुमक्खी पालन की  ट्रेनिंग दी जा रही है, क्योंकि ये मधुमक्खियां जवानों के काम में हाथ बंटा रही है. मददगार और एक साथी बनकर साथ रह रही है.

सिर्फ सीमा पर ही मधुमक्खियां अपना किरदार नहीं निभा रही, बल्कि नक्सल प्रभावित इलाकों में भी डटे पैरामिलिट्री फोर्सेज के जवानों को भी सहायता करती है. जहां घने जंगलों में जवान घुस नहीं पाते, वहां ये मधुमक्खियां स्निफर्स डॉग का रोल निभाती हैं और सुरक्षाबलों के लिए रास्ता क्लियर करती हैं.

मधुमक्खियों ने नेपोलियन को भी बनाया था विजेता 

अगर इतिहास को पलटकर देखे तो उस वक्त भी मधुमक्खियों ने सेना के साथ जंग में साथ निभाया था. 1789 में फ्रांस की क्रांति के नायक माने जाने वाले नेपोलियन जब कड़कड़ाती ठंड में आल्पस की पहाड़ियों पर चढ़ रहे थे.  तब उसके सैनिकों की हालत बदतर हो रही थी. ऐसे में इन मधुमक्खियों ने उनका साथ दिया था. इन मधुमक्खियों ने यूरोप जीतने के दौरान नेपोलियन के दुश्मनों को इतना काटा कि वो मैदान छोड़ कर भाग खड़े हुए थे.