टीएनपी डेस्क (Tnp Desk):- बारिश के मौसम में भी एंटी नक्सल ऑपरेशन नहीं रुकने वाला है, क्योंकि जिस तरह से संकल्प और जुनून इस बार सुरक्षाबलों ने दिखाया औऱ जिस तरह से अभियान चलाया. उससे माओवादियों के वजूद पर संकट आ गया है. जो कभी जंगल और पहाड़ बारूद की गंध और गोलियों की तड़तड़ाहटों से आम रहा करती थी. आज वहां बड़े-बड़े नक्सल लीडर्स के मारे जाने के बाद एक खामोशी और सन्नाटा पसरा हुआ है.
बरसात में भी चलेगा अभियान
अभी पूरी तरह बरसात का मौसम आना बाकी है. इस मॉनसून में आमूमन ऑपरेशन नहीं चलाए जाते हैं. लेकिन इस बार ऐसा नहीं होने वाला है, क्योंकि अगले साल 31 मार्च तक नक्सलवाद को खत्म करने का डेडलाइन तय कर दिया गया है. लाजमी है कि माओवादियों में इसे लेकर एक बड़ी बौखलाहट और बेचेनी पसरी है. झारखंड, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और एमपी में लगातार नक्सलियों की खोज जारी है. आए दिन कोई न कोई मुठभेड़ में नक्सलियों का अंत हो रहा है.
माना जाता है कि छत्तीसगढ़ में तकरीबन 77 प्रतिशत नक्सलियों का बसेरा है. यहां घने जंगल और पहाड़ इनके लिए सुरक्षित ठिकाना माने जाते है. बारिश के मौसम में तो नक्सल मूवमेंट नहीं ही होते हैं. ऐसे में ये मौसम सुरक्षित और शांत रहता है.
नक्सलियों के गढ़ में पहुंच गयी है फोर्स
लेकिन, इस बार की कहानी थोड़ी उलट लग रही है, क्योंकि जिस प्रकार से सुरक्षाबलों ने ऑपरेशन चलाया है और उनके लिए सेफ जगह में भी घुसपेठ कर डाली. इससे तो इनके लिए यह मॉनसून का मौसम भी काल सरीखा बनने वाला है. आमूमन बरसात के मौसम में फोर्स अपना अभियान रोक देती है. इसलिए नक्सली भी निश्चिंत रहते थे कि उनके गढ़ में जवान नहीं आने वाले . पिछले दिन छत्तीसगढ़ के नेशनल पार्क जंगल में हुई मुठभेड़ में मिली करारी हार से नक्सलियों में दहशत है. यही पर सुधाकर और भाष्कर राव जैसे खूंखार लीडर मारे गये.इस 80 किलोमीटर के दायरे में फैले पार्क को नक्सलियों का सबसे सुरक्षित ठिकाना माना जाता है. लेकिन अब इसे फोर्स ने घेर लिया है. यहां किसी भी तरह के मूवमेंट पर जवान तुरंत एक्शन ले रहे है. यहां डीआरजी , एसटीएफ और कोबरा बटालियन हरेक गतिविधियों पर बारिकी से नजर बनाए हुए हैं.
सुरक्षाबलों ने नेशनल पार्क एरिया को घेरा
दरअसल, बीजापुर के नेशनल पार्क एरिया जो लगभग 80 वर्ग किलोमीटर के दायरे में है वहां पर नक्सलियों का मूवमेंट बहुत आसानी से होते रहती थी. इसके पीछे वजह ये थी कि यहां 80 किलोमीटर के दायरे में एक भी थाना या कैंप नहीं है. जिसके चलते बेधड़क यहां उनकी सल्तनत चलती थी. नेशनल पार्क एरिया के एक छोर पर फरसेगढ़ थाना तो दूसरे छोर पर भोपालपटनम थाना पड़ता है. इसके इलाके की भौगोलिक स्थिति भी ऐसी है कि नक्सली यहां आसानी से आवाजाही करते हैं. पहले बड़े आराम से 2 राज्यों को जोड़ने वाले बॉर्डर को पार कर जाते थे. इसमे पहली सीमा तेलंगाना की है, जहां कागजनगर इलाका पड़ता है, तो दूसरा गढ़चिरौली जिला है, जो महाराष्ट्र का बॉर्डर पड़ता है. लेकिन, इस बार का समीकरण बिल्कुल बदल गया है, इनके सुरक्षित गढ़ में फोर्स घुस गई है और कहीं भी किसी भी गतिविधि की इनपुट मिलने पर तुरंत एक्शन ले रही है.
माओवादियों के लिए बढ़ी मुश्किलें
नक्सलियों के लिए सबसे सुरक्षित नेशनल पार्क अब सेफ जोन नहीं, बल्कि एनकाउंटर जोन बन गया है. उनके लिए छुपना-बचना मुश्किल हो गया है. बरसात में भी अगर एंटी नक्सल ऑपरेशन चलाया जाता है, तो फिर बड़ी मुश्किल माओवादियों के लिए होने वाली है.सुरक्षाबलों के लिए सबसे मुफीद बात ये है कि जंगल के भीतर कैंप बनाए जा रहे हैं और नये थाने खोले जा रहे हैं. इससे फोर्स को काफी मदद मिल रही है. इसके साथ ही डीआरजी जवानों के जुड़ने और जिला रिजर्व गार्ड के आने से फोर्स काफी मजबूत हुई है. इनका स्थानीय सूचना तंत्र भी मजबूत हुआ है. इसके साथ ही यहां की आबोहवा से भी अच्छे तरीके से वाकिफ हो रहें हैं.अगर देखा जाए तो जिस तरह से फोर्स नक्सलियों के सफाये के लिए अभियान चलाए हुई है. इससे नहीं लगता कि मॉनसून के मौसम में भी उन्हें कोई दिक्कतें आयेगी, बरसात के समय में भी सुरक्षाबल कार्रवाई करने में सक्षम दिखते हैं.
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