रांची(RANCHI)- जमीन घोटाले को लेकर ईडी की नोटिस और भाजपा के आरोपों पर तंज कसते हुए सीएम हेमंत ने कहा है कि यह सुन कर भी विचित्र लगता है कि उस व्यक्ति पर जमीन हड़पने के बेबुनियाद आरोप लगाये जा रहे हैं, जिसके पूर्वजों में महाजनी व्यवस्था के खिलाफ लम्बा संघर्ष किया है, अपनी जवानी और बुढ़ापे इस राज्य के नाम किया है, जिसके संधर्षों के कारण महाजनों को गांव छोड़-छोड़ कर बाहर निकलना पड़ा, और उसके परिणामस्वरुप हजारों गांवों के हजारों लोगों को उनकी जमीन वापस मिली.
सरकार बनने के बाद अब तक हजारों एकड़ जमीन की हुई वापसी
और यह काफिला यहीं नहीं रुकता, जबसे हमारी सरकार बनी है, अब तक हजारों एकड़ जमीन उनके मूल रैयतों को वापस करवाया जा चुका है. सिर्फ हजारीबाग में ही सैंकड़ों एकड़ जमीन को वापस करवायी गयी है. नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज की अवधि विस्तार को रद्द किया और इस प्रकार उसके मूल रैयतों के लिए जमीन वापसी का रास्ता साफ कर दिया गया.
लैंड बैंक बनवाकर जमीन लूटने में व्यस्त थी रघुवर की सरकार
लेकिन पिछली सरकार ने क्या किया था. उसने तो लैंड बैंक बनाकर रैयतों की जमीन का बंदरबांट किया. अब हम उस सभी जमीन को वापस दिलवा रहे हैं. लेकिन परेशानी यह है कि भाजपा को यहां के मूलवासियों और आदिवासियों के हित किया जाने वाला कोई भी काम हजम नहीं होता. उनके द्वारा हर काम में अड़गा डाला जाता है. नहीं तो वे कौन हैं, जिनके इशारे पर खतियान आधारित स्थानीयता नीति पर रोक लगाया, खतियान आधारित नियोजन नीति को बाधित किया, उसे कोर्ट में चुनौती दी, ओबीसी आरक्षण विस्तार विधेयक अड़गा डाला गया. सरना धर्म कोड जो आदिवासियों का प्रमुख मुद्दा है, उसकी राह में केन्द्र सरकार खड़ी क्यों है? वह सरना धर्मलंबियों को सरना धर्म कोड देना क्यों नहीं चाहती?
हम विधान सभा से पारित कर राजभवन भेजते हैं, उसके बाद क्या होता है!
सीएम हेमंत ने कहा कि हमने तो इन सारे मुद्दों विधान सभा से बिल पारित कर राज्य सभा भेजा, अब यह राजभवन की जिम्मेवारी थी कि वह इस पर त्वरित कार्रवाई करे, आदिवासी मूलवासियों, दलित पिछड़ों को उनका हक दें, लेकिन यहां तो राजभवन अपना काम करने के बजाय उसे वापस सरकार को भेजने का काम करती है, उसमें तकनीकी खामियां खोजती और पैदा करती है, और यदि वह हो भी जाय तो उसके बाद उसे केन्द्र सरकार अपनी आलमारी में बंद कर ऱख देती है. साफ है कि उनका इरादा कुछ और है, वह किसी भी कीमत पर आदिवासी मूलवासियों को उनका वाजिब हक देने को तैयार नहीं है. लेकिन हम पीछे हटने वाले नहीं है. आदिवासी मूलवासियों के हक हकूक के लिए हर लड़ाई लड़ेंगे, और जरुरत पड़ी तो राजनीतिक ताकत का भी इस्तेमाल करने से पीछे नहीं हटेंगे.
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