धनबाद(DHANBAD):  झारखंड में कोयला, बालू तस्करी की तरह मानव तस्करों का भी दल मजबूत होता जा रहा है.  अगर केवल धनबाद और जमशेदपुर की घटनाओं का  ही जिक्र किया जाए, तो ऐसा लगता है कि मानव तस्कर अपनी जड़े गहरी जमा चुके है.  दरअसल, काम दिलाने, अच्छा जीवन जीने की लालच देकर यह तस्कर बच्चों  को लेकर झारखंड से बाहर चले जाते हैं और उसके बाद उनके साथ क्या होता है, इसके कई उदाहरण सामने आ चुके है.   धनबाद में अभी हाल ही में 11 नाबालिकों को मानव तस्करों से बचाया गया था.  तीन मानव तस्कर गिरफ्तार भी किए गए थे.  सभी को देवघर से  ट्रेन  में चढ़ाया गया था. 

टाटानगर रेलवे स्टेशन से बचाये गए तेरह बच्चे 
 
इधर, बताया गया है कि टाटानगर रेलवे सुरक्षा बल ने रविवार को बच्चों की तस्करी के आरोप में दो मानव तस्कर को अरेस्ट किया है.  जिनके कब्जे से 13 नाबालिक बच्चों को छुड़ाया गया है.  आश्चर्य की बात है कि इनमें 12 नाबालिक बच्ची  और एक बच्चा भी शामिल है.  रविवार को टाटानगर रेलवे स्टेशन की घेराबंदी की गई और दो तस्करों को 12 नाबालिक बच्ची और  एक नाबालिक बच्चे  की तस्करी के आरोप में पकड़ा गया.  आरोप  है कि इन बच्चों को मजदूरी कराने  के लिए राज्य से बाहर ले जाने की कोशिश में थे.  सभी बच्चे पश्चिमी सिंहभूम के आसपास के क्षेत्र के रहने वाले है.  पकड़े गए तस्कर हाट  गम्हरिया क्षेत्र के रहने वाले है.

धनबाद रेलवे स्टेशन से बरामद किये गए थे 11 नाबालिग
  
इसके पहले धनबाद रेलवे स्टेशन पर 11 नाबालिग  बच्चों को बचाया गया था. सूचना थी कि वास्कोडिगामा साप्ताहिक एक्सप्रेस से 16  को  दूसरे राज्यों में ले जाया जा रहा है.  इसी आधार पर कार्रवाई की गई.  जैसे ही ट्रेन धनबाद प्लेटफार्म पर पहुंची, टीम ने बच्चों को रेस्क्यू किया और तीन तस्करों को गिरफ्तार कर लिया.  पूछताछ में पता चला कि सभी बच्चे जसीडीह स्टेशन से ट्रेन में सवार हुए थे.  उन्होंने नौकरी के बहाने ले जाया जा रहा था.  दरअसल, झारखंड मानव तस्करी का बड़ा हब बनता जा रहा है.  यहां से हर  साल हजारों बच्चों को महानगरों में ले जाया जाता है.  जहां घरेलू काम के अलावे भी गलत काम करवाए जाते है.  वैसे यह काम एक संगठित गिरोह  कराता है.   

झारखंड आखिर मानव तस्करों के सॉफ्ट टारगेट में क्यों है ?

झारखंड उनके  सॉफ्ट टारगेट में है.  मानव  तस्करों द्वारा कभी काम दिलाने के नाम पर तो कभी शादी का झांसा देकर, तो कभी बड़े शहरों की जिंदगी का सपना  दिखाकर यहां से ले जाया जाता है.  फिर वहां जाकर उनकी जिंदगी "विवश" हो जाती है.  यह भी दुखद बात है कि अगर किसी एनजीओ या फिर पुलिस की सहायता से बच्चे लौट भी आते हैं, तो  उनके पुनर्वास की ठोस व्यवस्था नहीं रहने के कारण उन्हें परेशानी होती है. ऐसा नहीं है कि मानव तस्करी पर लगाम लगाने के लिए राज्य सरकार द्वारा पहल नहीं की गई. एंटी ह्युमन ट्रैफिकिंग यूनिट की स्थापना, सीआईडी द्वारा ऑपरेशन मुस्कान चलाना, बच्चियों के पुनर्वास के लिए किशोरी निकेतन और बालाश्रय जैसी संस्था की स्थापना, विभिन्न एनजीओ की मदद से कार्यशाला का आयोजन कर कई प्रयास किए गए हैं. लेकिन ये सब कागजी खानापूर्ति मात्र बन कर रह गई है. 

रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो