धनबाद (DHANBAD) - बीसीसीएल सिजुआ क्षेत्र के मोदीडीह कोलियरी के 22/12 बस्ती की भूमिगत आग जानलेवा हो गई है. इसकी रफ़्तार बढ़ती जा रही है. इसे नियंत्रित करने और लोगों को सुरक्षित जगहों पर बसाने के काम अब तक नहीं हो पाई है. यहां बसे सैकड़ो अल्पसंख्यक (मुस्लिम) परिवारों का जीवन दांव पर लगा हुआ है. भूमिगत आग और भू धंसान की वजह से इंसानो का घर तो क्या ख़ुदा का इबादत स्थल भी सुरक्षित नहीं है. यहां दो बार मस्जिद जमींदोज हो चुका है. हाल ही में 01 दिसंबर को 22/12 बस्ती में भू धंसान की घटना हुई. जामा मस्जिद का एक बड़ा हिस्सा गुम्बद सहित 40 फीट धरती के अंदर जमींदोज हो गया. उस वक्त हादसा के 10 मिनट पहले ही मुस्लिम भाइयों ने सामूहिक नमाज़ पढ़ी थी. अल्लाहताला के फ़जल से इस घटना में कोई हताहत नहीं हुआ.  ख़ुदा की रहमत ने लोगों को सलामत रखा.

पुनर्वास के सभी दावे निकले खोखले

पुनर्वास के जितने भी दावे और प्रयास किए गए. उन के सही परिणाम नहीं मिले.  नतीजा है कि धंसान की घटनाएं लगातार हो रही हैं और सरकारी संस्थाएं केवल लफ़्फ़ाजी जमा खर्च कर रही हैं. बीसीसीएल के कोयला उत्पादन और कोलियरी की सुरक्षा को देखने के लिए डीजीएमएस है, लेकिन केवल इलाके को डेंजर जोन घोषित करने के सिवा कोई दबाव नहीं बना पाता. अब तो धनबाद में लोग भूमिगत आग के कारण बन रहे गोफ में सीधे समा जा रहे हैं.

आशंका तो पहले से ही थी

इस 22\ 12 बस्ती के बारे में कहा जाता है कि किस्तों में इसे मारा गया है. इस इलाके में रह रहे लोगों का पुनर्वास कराने के लिए 2016 में पूर्व मंत्री ओपी लाल के नेतृत्व में बीसीसीएल एरिया 5 जीएम कार्यालय के समक्ष 135 दिन का सत्याग्रह आंदोलन हुए हैं. धरना प्रदर्शन किए गए, कोयला अधिकारियों का ध्यान इस ओर खींचा गया लेकिन परिणाम कुछ नहीं निकला.

6\10 बस्ती को बसाया गया था यहां पर

द न्यूज़ पोस्ट  ने जब इस इलाक़े का जायज़ा लिया तो पाया कि राष्ट्रीयकरण से पूर्व बीसीसीएल की जगह यहां निजी मालिकों द्वारा कोयला खनन किया जाता था. बर्ड्स कंपनी कोयला खनन करती थी. बाद में इसे बीसीसीएल ने टेक ओवर कर लिया. इंक्लाइन 22 \12 बस्ती को कोयला खनन के लिए इंक्लाइन 6\10 बस्ती से हटाकर बसाया गया था. उस समय 6\10 बस्ती से कोयला निकालने के बाद 22 \12 बस्ती के लोगों पर कोई ध्यान नहीं दिया गया. सब कुछ वैसा ही चलता रहा. नतीजा हुआ कि डेंजर जोन घोषित होने के बाद भी विस्थापित लोगों को सही पुनर्वास पैकेज नहीं मिलने के कारण लोग इलाके को छोड़कर नहीं गए. यहां बसे लोगों में रैयत और गैर रैयत दोनों है. जबकि इस जगह को लोग खाली करने को तैयार है. भला कौन भूमिगत आग और ज़हरीली गैस के बीच अपने परिवार बाल बच्चों के साथ तिल तिल कर मरना चाहेगा. सुंदर पक्के मकान और तमाम सुविधाएं होने के बावजूद लोगों की रात दहशत में बीतती है. हर आंखों में दर्द और हर शख़्स को सरकार से शिकायत होती है. अधिकारियों की बेरुख़ी से परेशान हाल 75 वर्षीय बुजुर्ग से लेकर 35 साल के नौजवान बस यहीं कहते हैं. इस घुटनभरी जिंदगी से हर कोई निकलना चाहता है, लेकिन सरकार ईमानदार प्रयास करें तब ना. झरिया पुनर्वास एव विकास प्राधिकार (JRDA) ने अब तक ढंग की कोई पुनर्वास नीति नहीं बनाई, यहीं कारण है कि रोजगार के अभाव में लोग इस जगह को छोड़कर जाना नहीं चाहते. जबकि कुछ दिन पहले ही बगल की बस्ती में भू धंसान घटना हुई थी और घर जमींदोज हुए थे, फिर भी सब कुछ सामान्य ढंग से चलने दिया गया. 

1919 में पहली बार भूमिगत आग की जानकारी

बता दें कि आज से 100 साल पहले वर्ष ब्रिटिश राज में वर्ष 1919 में पहली बार कोयलांचल धनबाद के झरिया में भूमिगत आग का पता चला था. उसके बाद कितनी योजनाएं बनी, बोरहोल करके नाइट्रोजन डालने की कोशिश हुई. बालू और पानी की भराई हुई लेकिन आग पर काबू नहीं पाया जा सका. वहीं 2009 में देश की सबसे बड़ी पुनर्वास योजना में शुमार झरिया पुनर्वास योजना बनी. अब तक इस पर करोड़ो रुपए बहाये गए, कमीशन के पैसे से अधिकारी मालामाल हो गए, लेकिन ताज़ा सर्वे में धनबाद कोलियरी क्षेत्र में एक लाख से ज्यादा विस्थापित रह रहें है. जबकि बेलगाड़िया में लगभग 5 हजार परिवारों का ही पुनर्वास हुआ है. बीसीसीएल और जरेड़ा द्वारा जिन विस्थापितों को बेलगाड़िया में आवास देकर बसाया गया उनका हाल देख लीजिए. रोजगार और सुविधाओ के अभाव में लोग रोज़ सरकार को कोस रहें है. इधर पुनर्वास के मुद्दे पर सोमवार को क्षेत्रीय कार्यालय में बीसीसीएल एरिया 5 के जीएम पीके दुबे के नेतृत्व में 22/12 बस्ती के ग्रामीणों और बीसीसीएल अधिकारियों की बैठक हुई जिसमें आर आर पॉलिसी के तहत विस्थापितों को निचितपुर टाउनशिप में बसाने पर सहमति बनी है, लेकिन देखना है कि कहीं इसका भी हस्र 2016 की तरह ना हो जाये. अंग्रेजी हुकूमत की तरह बीसीसीएल अधिकारी अक़्सर अपने वादों से पलटने के लिए जाने जाते हैं.

रिपोर्ट : अभिषेक कुमार सिंह, ब्यूरो हेड, धनबाद