रांची (RANCHI) : राजधानी रांची में दुर्गा पूजा कितनी भव्य तरीके से मनाई जाती है यह बात पूरे देश में विख्यात है. पर दुर्गा पूजा सिर्फ पंडाल, बाजार और मेलों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि पूजा और अनोखी परंपरा का भी समागम है. और बात जब परंपरा की हो रांची के रातू किले से बेहतर उदाहरण नहीं हो सकता. रांची स्थित रातू किले का इतिहास जितना विख्यात है उतनी ही यहाँ की परंपरा भी खास है.
खासकर दुर्गा पूजा के मौके पर रातू किले में भव्य पूजा का इतिहास सदियों से चलता आया है. साथ ही दुर्गा पूजा के दौरान महानवमी के दिन रातू किले में भैंसे की बलि दी जाती है. और तो और बलि के बाद उसके रक्त से सना कपड़ा प्रसाद के रूप में भक्तों के बीच बांटा जाता है.
रातू किले में नवरात्रि की पूजा षष्ठी को बेलवरण के साथ होती है. इसी दिन यहां मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित की जाती है और इसके अगले दिन सप्तमी को रातू महाराजा तालाब के पास पारंपरिक विधि-विधान से पूजा होती है. वहां के पुजारी का कहना है कि किला में तांत्रिक पद्धति से विशेष पूजा होती है. यही कारण है कि संधि बलि से पहले रातू किला का दरवाजा आम जनों के लिए बंद कर दिया जाता है. वहीं नवरात्र के नौवे दिन यानि की महानवमी पर रातू किला में भैंसे की बलि दी जाती है. जो एक अनोखी परंपरा है.
वहीं महानवमी के दिन भैंसे की बलि के बाद उसके रक्त को एक कपड़े में संजोया जाता है. इसके बाद रक्त से सने उस कपड़े को श्रद्धालुओं के बीच प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है. श्रद्धालु इस कपड़े को अपने घर के कोने में रक्षा कवच के रूप में रखते हैं. उनकी मान्यता है कि इस कपड़े को घर में रखने से बुरी शक्तियां दूर होती है. साथ ही इस दौरान 5 दिनों के लिए रातू किला आम जनों के लिए खुलता है.

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