धनबाद(DHANBAD): आज मजदूर दिवस है. राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आज सिर्फ और सिर्फ मजदूरों की बात होगी. लंबी-लंबी घोषणाएं होंगी, लच्छेदार बातें होंगी, लेकिन आग के बीच धरती की छाती चीर कर कोयला निकालने वाले असंगठित मजदूरों को देखने कोई नहीं पहुंचेगा. मजदूर आज भी धरती का सीना चिरेंगे और राष्ट्र के निर्माण में अपनी भूमिका निभाएंगे.
कोयला उद्योग की बात करें तो राष्ट्रीयकरण के समय कोल इंडिया में लगभग 8 लाख मजदूर थे जो अब घटकर सवा दो लाख के आस पास हो गए हैं. मजदूर घट रहे हैं और कोयला का उत्पादन बढ़ रहा है का मतलब है कि ठेका प्रथा ही कोल इंडिया पर हावी है. बात भी सच है. कोल इंडिया का 90% से अधिक उत्पादन आउटसोर्सिंग कंपनियों के भरोसे हो रहा है. जाहिर है ठेकेदारी प्रथा बढ़ी है और ठेकेदारी प्रथा जब तेज हुई है तो असंगठित मजदूरों की संख्या भी उसी अनुपात में अधिक हुई होगी. मुनाफा कमाना कंपनियों का अधिकार है, लेकिन मजदूरों की अनदेखी कर अगर कोई भी लोक क्षेत्रीय उपक्रम मुनाफा कमा रहे हैं तो यह सोचने वाली बात होगी. अन्य उद्योगों की बात छोड़ भी दी जाए तो कोयला उद्योग रोजगार का सबसे बड़ा जरिया है.
कोल सेक्टर में निजी कंपनियों के बढ़ते प्रभाव की वजह से ठेका श्रमिकों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है और विभागीय कर्मी कम होते जा रहे हैं. जिस रफ्तार से कोल सेक्टर में ठेका मजदूर बढ़ रहे हैं, उस गति से उन्हें सुविधाएं नहीं मिल रही है. उन्हें ऑनरोल नहीं किया जा रहा है. सीएमपीएफ के आंकड़ों से पता चलता है कि एक लाख से कम ठेका मजदूर ही सामाजिक सुरक्षा के दायरे में है. इसके उलट यूनियने कहती हैं कि कम से कम तीन लाख से अधिक ठेका मजदूर काम कर रहे हैं .अधिकांश को सामाजिक सुरक्षा की गारंटी नहीं है और ना हाई पावर कमिटी का वेतन मिल रहा है. कोयला क्षेत्र में आउटसोर्सिंग कंपनियों की एंट्री 2004 के आसपास शुरू हुई. इसके बाद तो बाढ़ सी आ गई. आउटसोर्सिंग कंपनियों के आने से कोयला उत्पादन तो जरूर अधिक हुआ है लेकिन जिस बेतरतीब ढंग से कोयले का उत्पादन हो रहा है ,वह पर्यावरण के लिए तो खतरा है ही, असंगठित मजदूरों के लिए भी संकट पैदा करने वाला है.
मजदूरों के हित के लिए बने कई कानून
आउटसोर्सिंग कंपनियों में 70% से अधिक ठेका मजदूर ऑफ रोल है और यही कारण है कि हाई पावर कमिटी अनुशंसित वेतन व सामाजिक सुरक्षा से ज्यादातर ठेका मजदूर वंचित है. यह बात बिल्कुल सच है कि ठेका मजदूर ही अभी कोयला उद्योग के रीड बने हुए हैं और उन्हीं की अनदेखी हो रही है. आज मजदूर दिवस के अवसर पर उनके बारे में कई चर्चाएं होगी, कई बातें होंगी, लेकिन उनकी दशा जैसे पहले थी, उसी तरह रहेगी. सरकार ने संगठित एवं असंगठित मजदूरों की हित रक्षा के लिए नियम कायदे कानून तो बनाए हैं लेकिन सबसे बड़ी समस्या उसे जमीन पर उतारने की होती है. ऐसा होता नहीं है और मजदूर अपनी जिंदगी दांव पर लगाकर राष्ट्र के निर्माण में अपनी भूमिका निभाते हैं. यह कहना गलत नहीं होगा कि कोयला मजदूरों की राजनीति कर कई लोग विधायक से सांसद, सांसद से श्रम मंत्री ,श्रम मंत्री से मुख्यमंत्री तक बने. कोयलांचल से लेकर दिल्ली तक उन की धमक बड़ी. लेकिन कोयला मजदूरों की हालत बिगड़ती चली गई.
कोयला मजदूरों के नाम पर राजनीति
आज भी कोयला मजदूरों के नाम पर खूब राजनीति होती है. रंगदारी की वसूली होती है. आउटसोर्सिंग कंपनियां चांदी काट रही है. नेता बड़ी-बड़ी गाड़ियों पर घूम रहे हैं. सब यही कहते हैं कि मजदूरों के लिए काम कर रहे हैं लेकिन कोयलांचल में यह देखा गया है कि कोई भी आंदोलन मजदूरों के हित के लिए नहीं बल्कि स्वार्थ सिद्धि के लिए चलता और चलाया जाता है. यह बात भी सही है कि बहुत दिनों तक असंगठित मजदूरों की अनदेखी नहीं की जा सकती. यूनियनों के अस्तित्व पर भी यह असंगठित मजदूर खतरा बन सकते हैं तो कोल इंडिया का उत्पादन जिस रफ्तार से आज बढ़ रहा है, भविष्य में रफ्तार बरकरार रहेगी, इसमें संदेह है.
रिपोर्ट: धनबाद ब्यूरो
Recent Comments
Shailesh Ravel
2 years agoहकीकत और सच्चाई को बयान करती रिपोर्ट