टीएनपी डेस्क (TNP DESK): झारखंड में सैकड़ों ऐतिहासिक मंदिर है. जिसके पीछे आस्था के साथ ऐतिहासिक महत्व भी है. लेकिन रांची के बीचो-बीच बसे पहाड़ी मंदिर का आस्था और ऐतिहासिक महत्व के साथ राष्ट्रीय महत्व भी है. जमीन से 350 फीट की ऊंचाई पर स्थित पहाड़ी बाबा के इस मंदिर से लोगों की धार्मिक आस्था जुड़ी हुई है. लोग दूर-दूर से बाबा के दर्शन के लिए मंदिर पहुंचते हैं. भक्तों को मंदिर तक पहुंचने के लिए 468 सीढियां चढ़नी पड़ती है. सावन महीने के तीसों दिन यहां शिव भक्तों का रेला देखने को मिलता है. इसके साथ ही मंदिर समिति की ओर से शिवरात्रि के दिन शिव बारात बड़े ही भव्य तरीके से निकाला जाता है, जिसमें सूबे के सीएम के साथ तमाम मंत्री भी हिस्सा लेते हैं. यदि आपको बिना कहीं जाये पूरा रांची का दर्शन करना है तो पहाड़ी मंदिर से आपको पूरा रांची साफ दिख जायेगा. यहां से आप रांची की खूबसूरती को निहार सकते हैं.
देश का पहला मंदिर जहां शान से लहराता है तिरंगा
आपको बताये कि रांची के पहाड़ी मंदिर से लोगों की धार्मिक आस्था के साथ-साथ देश भक्ति भी जुड़ी हुई है. क्योंकि यह देश का एक ऐसा अनोखा मंदिर है. जहां 15 अगस्त और 26 जनवरी के दिन सबसे पहले झंडा फहराया जाता है. इसके साथ ही सालों भर धार्मिक झंडे के साथ राष्ट्रीय ध्वज भी शान से लहराता रहता है.
देश की आजादी से पहले स्वतंत्रता सेनानियों को दी जाती थी फांसी
झारखंड के रांची स्थित पहाड़ी मंदिर की कहानी बहुत रोचक है. भोले बाबा का ये मंदिर अपने अंदर ना जाने कितने ही ऐतिहासिक कहानियों को समेटे हुए है. आपको बता दे कि भगवान शंकर का ये मंदिर देश की आजादी से पहले अग्रेजों के लिए फांसी देने का स्थान हुआ करता था. इस स्थान को टुंगरी कहा जाता था. यहां अंग्रेज स्वतंत्रता सेनानियों को फांसी देते थे. लेकिन देश को आजादी मिलने के बाद स्वतंत्रता सेनानियों के सम्मान में यहां हर साल स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर झारखंड में सबसे पहले झंडा फहाराया जाता है .इसके साथ ही पहाड़ी मंदिर में आज भी एक ऐतिहासिक पत्थर लगा हुआ है. जिसपर जिसमें 15 अगस्त 1947 की आधी रात को आजादी का संदेश लिखा है.
ब्रिटिश काल में 'हैंगिंग गैरी' के नाम से जाना जाता था
रांची रेलवे स्टेशन से महज 7 किमी की दूरी पर स्थित भगवान शंकर का एक मंदिर है. जो पहाड़ी मंदिर के नाम से काफी प्रसिद्ध है. सैकड़ों साल पहले पहाड़ी बाबा मंदिर को तिरिबुरु के नाम से जाना जाता था. जिसको ब्रिटिश काल में चेंज करके 'हैंगिंग गैरी' कर दिया गया था. देश की आजादी के बाद स्वतंत्रता सेनानी कृष्ण चंद्र दास ने सबसे पहले झंडा फहराया था.
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