टीएनपी डेस्क (TNP DESK): वर्ष 2005 से पहले बिहार की पहचान टूटी-फूटी और जर्जर सड़कों से होती थी. राज्य के किसी भी हिस्से में सफर करना मुश्किल था. सड़क पर गड्ढा था या गड्ढे में सड़क, यह तय कर पाना कठिन था. बारिश के दिनों में कई गांवों का संपर्क टूट जाता था और मरीज अस्पताल पहुंचने से पहले ही दम तोड़ देते थे.

उस दौर में राज्य में नदियों पर पुल-पुलिया की भारी कमी थी, गंगा पर मात्र चार, कोसी पर दो, गंडक पर चार और सोन नदी पर सिर्फ दो पुल थे. पूरे राज्य में केवल ग्यारह रेल ओवरब्रिज थे. सड़कों के रखरखाव के नाम पर भ्रष्टाचार चरम पर था और अलकतरा घोटाला इसका बड़ा उदाहरण बना.

24 नवंबर 2005 को नई सरकार बनने के बाद सड़कों की तस्वीर बदलने का अभियान शुरू हुआ. नई सड़कों का निर्माण, पुरानी सड़कों का चौड़ीकरण और पुल-पुलियों का जाल बिछाया गया. राज्य में अब तक गंगा पर दस, कोसी पर तीन, गंडक पर चार और सोन पर चार नए पुल बन चुके हैं. साथ ही अठारह नए पुलों का निर्माण कार्य जारी है.

मुख्यमंत्री सेतु निर्माण योजना (2007–08) के तहत अब तक छह हजार से अधिक पुल-पुलिया बने हैं, जबकि छह सौ उनचास नए पुलों की स्वीकृति दी गई है. रेल ओवरब्रिज की संख्या बढ़कर सत्तासी हो गई है और चालीस से अधिक नए आरओबी निर्माणाधीन हैं.

ग्रामीण संपर्कता के लिए मुख्यमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत एक लाख अठारह हजार पांच किलोमीटर सड़कों का निर्माण पूरा हो चुका है. सरकार का लक्ष्य अब राज्य के किसी भी कोने से पांच घंटे में पटना पहुंचने का है, जिसे नए एक्सप्रेस-वे, बाईपास और एलिवेटेड रोड से जल्द पूरा किया जाएगा.