धनबाद(DHANBAD): देश की कोयला उत्पादक कंपनी कोल् इंडिया अपनी 50 साल की ऐतिहासिक यात्रा पूरी करने जा रही है. इस दौरान यह कंपनी कई झंझाबातों को झेला. 1975 में जब कोल इंडिया की स्थापना हुई थी, तो कंपनी को 55 करोड रुपए का घाटा हुआ था. वित्तीय वर्ष 24- 25 में कंपनी को 35,302 करोड़ का मुनाफा हुआ है . कोल इंडिया की कोयले से 70% तक देश में बिजली की आपूर्ति होती है. झारखंड सहित भारत के आठ राज्यों में कोयला खनन का काम किया जाता है. इन राज्यों को कोयले से डीएमएफटी के रूप में अतिरिक्त राशि भी मिलती है. लेकिन, जिस समय कोल इंडिया की स्थापना हुई थी, उस समय कर्मचारियों की संख्या 6.75 लाख थी. आज यह संख्या 2.25 लाख रह गई है.
उत्पादन बढ़ गया है लेकिन कर्मचारियों की संख्या घट गई है
यह बात भी सच है कि कोयले का उत्पादन कई गुना बढ़ गया है. प्रकृति के खिलाफ कोयले का उत्पादन करना बहुत आसान काम नहीं है. मजदूर संगठनों का कहना है कि मजदूरों का शोषण रोकने के लिए जिस उद्देश्य से कोलियारियों का राष्ट्रीयकरण हुआ था, उस उद्देश्य को पूरा करने में कोल इंडिया विफल रही है. राष्ट्रीयकरण के समय से उत्पादन कई गुना ज्यादा हो रहा है. हर साल केंद्र सरकार टारगेट बढ़ा रही है, लेकिन कर्मचारियों की संख्या कम होती जा रही है. मैनपॉवर और संसाधन को ध्यान में रखे बगैर अंधाधुन कोयले का उत्पादन किया जा रहा है. कोल इंडिया और उसकी सहायक कंपनियों के पास हजारों आवास खाली पड़े है. उनमें अवैध कब्जा है, लेकिन जो लोग आवास में रहना चाहते हैं, उन्हें आवास नहीं मिल रहा है. फिलहाल कोल इंडिया की स्थिति यह है कि लगभग सभी व्यवस्थाएं आउटसोर्स हो गई है.
ठेका मजदूरों के शोषण पर आवाज़ तो उठती है लेकिन कमजोरी से
ठेका प्रथा हावी है, आउटसोर्स कंपनियां मजदूरों का एक तरह से शोषण करती है. कोल इंडिया और उसकी अनुषंगी कंपनियों को इससे कोई विशेष मतलब नहीं होता. उन्हें सिर्फ कोयला के प्रोडक्शन से मतलब रहता है. यह राष्ट्रीयकरण के उद्देश्यों के खिलाफ कहा जाता है. मजदूर संगठन लगातार इसका विरोध करते रहे हैं, लेकिन असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को देखने वाला शायद ही कोई है. यह अलग बात है कि धनबाद को डीएमएफटी फंड से बड़ी राशि मिलती है. एक अनुमान के अनुसार धनबाद को हर साल 300 करोड़ रुपए तक डीएमएफटी फंड से राशि मिलती है. खैर ,कोल इंडिया का उत्पादन भी बढ़ गया, मुनाफा भी बढ़ गया लेकिन राष्ट्रीयकरण के उद्देश्यों को कहां तक पूरा किया जा रहा है, यह एक बड़ा सवाल है. यह सवाल मजदूर संगठनों से भी है और सरकार से भी है.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो

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